ब्रह्माकुमारी संस्था की ढोल की पोल : श्री स्वामी आनन्दबोध सरस्वती

ओ३म्॥

सिन्ध के दादा लेखराज द्वारा संस्थापित मण्डली का परिवर्तित नामकरण संस्कार विभाजन के पश्चात् भारत में ‘ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय’ के नाम से किया गया। इनकी शाखायें भारत के अनेक नगरों में स्थापित हो चुकी हैं। इनका प्रधान केन्द्र आबू पर्वत पर ‘पोकरान हाउस’ में है जहाँ ग्रीष्म ऋतु में दादा लेखराज अनेक शिष्य शिष्याओं के साथ स्वयं निवास करते हैं। 

. लगभग १० वर्ष से विभाजन के पश्चात् यह ,संस्था ब्रह्माकुमारी नाम से चुप-चाप काम करती रही है। दिल्ली एवं अन्य नगरों की सम्भ्रान्त घरानों की देवियाँ घरबार छोड़कर जब दादा लेखराज के सम्पर्क में आबू पर चली गई तो उस समय यह संस्था जनता में चर्चा का विषय बन गई। कुछ लोगों ने इनका वास्तविक आचरण जानने का प्रयत्न किया और उनका भेद खुलने पर जनता आश्चर्यचकित हो गई। 

इनका कहना है कि सृष्टि को उत्पन्न हुए ५ हजार वर्ष बीते हैं, और दादा लेखराज के वृद्ध शरीर में भगवान अवतरित हुए हैं। अत: पिता श्री दादा लेखराज जी स्वयं भगवान् हैं। पांच हजार वर्ष पहले कृष्ण ने गीता नही कही। इसके रचयिता भी स्वयं ब्रह्मा दादा लेखराज ही हैं इस सम्बन्ध में ‘पोकरान हाउस’ से प्राप्त आदि देवी ब्रह्माकुमारी सरस्वती मातेश्वरी के पत्र की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जाती हैं। यह पत्र दिनांक १६ जुलाई सन् १९५९ ई. को उनके प्रधान कार्यालय से मेरे नाम रजिस्टर्ड भेजा गया था 

तारीख १९ दैनिक वीर अर्जुन में आपका एक प्रवचन छपा था, जो निम्न प्रकार है 

ब्रह्माकुमारी संस्था कीढोल की पोल

हमारे और आपके साथ जगत के परम प्रिय निराकार ज्ञान स्वरूप गीता के भगवान् त्रिमूर्ति परमात्मा शिव स्वयं ही पिता श्री ब्रह्म हैं जिन्हें कि लौकिक नाम अर्थात् दादा लेखराज जी के नाम से याद करते हैं। 

इससे प्रकट होता है कि ब्रह्माकुमारी संस्था दादा लेखराज को ही सृष्टि का कर्ता-धर्ता तथा प्रलय करने वाला मानती है। ब्रह्माकुमारियाँ शब्दाडम्बर में हिन्दू जनता को फंसाने के लिए गीता का नाम लेकर अनेक प्रकार के भ्रममूलक विचार बड़ी चालाकी से फैलाने का यत्न करती हैं। वस्तुतः यह संस्था दादा लेखराज के अतिरिक्त अन्य किसी भी वेद, शास्त्र, उपनिषद, राम, कृष्ण, गीता तथा देवी देवता पर विश्वास नहीं करती। ____ अपने उपर्युक्त कथन की पुष्टि में त्रिमूर्ति पत्र दिसम्बर-जनवरी सन् १९५७-५८, पृष्ठ ४० अंक ९, १०, ११ से निम्न पंक्तियाँ उदधृत की जाती हैं 

(९) अत: स्पष्ट है कि-महाभारत और श्रीमद्भागवत के आधार पर जो यह मान्यता प्रचलित है कि गीता ज्ञान श्रीकृष्ण ने दिया, उसने महाभारत का युद्ध कराया उसने केवल अर्जुन को ही ज्ञान दिया-इत्यादि यह केवल भ्रममूलक है। 

(१०) जबकि वास्तविकता तो यह है कि गीता का ज्ञान परमात्मा शिव ने संगम युगे ब्रह्मा द्वारा धर्म स्थापनार्थ संसार का साधारणतया तथा भारतवासियों को विशेषतया दिया। परन्तु आज इन रहस्यों को कोई नहीं जानता। 

सहज ज्ञान और सहज योग के पृष्ठ ८ पर लिखा है 

(११) भगवान कहते हैं- ५ हजार वर्ष पहले भी गीता ज्ञान एवं योग की शिक्षा मैंने (भगवान् ज्योतिर्लिंगमय शिव अर्थात् दादा लेखराज)दी थी और अब भी मैं पुनः वह शिक्षा , दे रहा हूँ। गीता का ज्ञान दिव्य गुणकारी देवता अथवा मनुष्य श्रीकृष्ण ने नहीं दिया था। __ इससे स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्माकुमारियाँ न वेद मानती हैं, न शास्त्रों को, न गीता के उपदेष्टा भगवान् श्रीकृष्ण हैं। यदि सभी कुछ है तो वह केवल दादा लेखराज ही हैं। . इस प्रकार आज इस जागृति के युग में एक व्यक्ति अपने महापाखण्ड द्वारा हजारों देवियों तथा पुरुषों को बहकाने में सफल हो रहा है। ब्रह्माकुमारियाँ मानती हैं कि ईश्वर निराकार है, सर्वव्यापक नहीं किन्तु परमात्मा शिव ब्रह्मा के साकार साधारण वृद्ध मनुष्य तन में अवतरित हो लोगों को अपनी पहचान देता है। इस प्रकार ईश्वर को सर्वव्यापक न मानने वाली ये ब्रह्माकुमारियाँ भी अपने आपको आस्तिक कहने का दुस्साहस करती हैं, यह कितनी बड़ी विडम्बना है। 

यह सभी प्रकार के सन्देहों से रहित होकर कहा जा सकता है कि संसार के समस्त आस्तिक एवं ईश्वर विश्वासी चाहे वे मुसलमान हों, ईसाई हों अथवा हिन्दू, परब्रह्मा परमात्मा को सृष्टिकर्ता एवं सर्वव्यापक मानते हैं, वे भी उसकी सर्वव्यापकता को अस्वीकार नहीं करते, ब्रह्माकुमारी संस्था का ईश्वर को एकदेशी मानना सम्पूर्ण आस्तिक जगत के विरुद्ध है तथा सनातन वैदिक मर्यादा के तो सर्वथा ही विपरीत है। 

       संसार के आरम्भ में ज्ञान का प्रसार तक एक पुरुष विशेष के द्वारा होता है और वर्तमान समय में मानवी पिता श्री लेखराज जी हैं, इसको, प्रमाणित करने का कोई आधार नहीं हो सकता और सम्भवतः इसीलिए किसी ग्रन्थ को प्रामाणिक मानने का झंझट अपने ऊपर पिता श्री दादा लेखराज जी ने  हीं लिया अतः यह विश्वास केवल कपोल-कल्पित एवं दम्भपूर्ण ही कहा जा सकता है। 

           सृष्टि की आयु केवल ५ हजार वर्ष है, यह ऐसी बात है जिसे एकान्त सत्य कहकर प्रसारित किया जा रहा है। जरा विचार तो कीजिए कि यह बूढा हिमालय क्या केवल ५ हजार वर्षों पुराना ही है? क्या समुन्द्र की उम्र केवल ५ वर्षों की ही है? ब्रह्माकमारियों के अनसार क्या आकाश प्रलय के मुख में जाता दिखाई दे रहा है? क्या जंगलों का इतिहास ही क्षुद्र अवधि वाला है? क्या ज्ञान-विज्ञान एवं पुरातत्व के आज तक प्राप्त अनुभवों के द्वारा उपर्युक्त बात को सत्य रूप में स्वीकार किया जा सकता है? 

                   स्थानाभाव के कारण इस संस्था की केवल संक्षिप्त जानकारी देना ही इस समय अभीष्ट था। पुस्तिका के अन्त में कुछ प्रश्न ब्रह्माकुमारियों से किये हैं। मुझे विश्वास है कि जनता उन पर मनन करेगी और उनका उत्तर उनसे मांगेगी। ____ मैं पहले बता चुका हूँ कि ब्रह्माकुमारी संस्था ओम . मण्डली के भयंकर घोटाले एवं दादा लेखराज जी स्वय कृष्ण बनकर और मण्डली की देवियों को गोपिकाएं बनाकर रासलीला जैसी दूषित घटनाओं के विरुद्ध साधु टी0एल0 वास्वानी जैसे लोक सेवक को धरना देना पड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप दादा जी को जेल जाना पड़ा। उस समय सिन्ध में दादा लेखराज की अनैतिक कार्यवाहियों के कारण धार्मिक जनता में किस प्रकार खलबली मच गई थी? उसके कुछ उदाहरण उस समय के पत्रों से उद्धृत करके जनता के समक्ष रखना उचित होगा। मुझे आशा है जन-साधारण इन पत्रों को पढ़कर अपनी सत्य धारणा निश्चित करने में सफल हो सकेंगे। 

        ओ३म् मण्डली हैदराबाद (सिन्ध) की ‘ओउम मण्डली’ उस प्रान्त के हिन्दुओं के लिए एक टेढी समस्या हो गई है। कुछ दिनों से उसका वहाँ बड़ा विरोध हो रहा है। यह संस्था क्या है और इसके कारण कैसी विभीषिका है, इस विषय पर पटना के ‘योगी’ नामक समाचार-पत्र में एक ज्ञातव्य लेख प्रकाशित  • हुआ, जिसका मुख्यांश नीचे दिया जाता है:- . 

__हैदराबाद की ओ३म मण्डली का दावा है कि गीता शिक्षण पर आधारित यह स्त्रियों का एक नया आन्दोलन है और इसका मूल सिद्धान्त है-मनष्य त अपने को पहचान। दादा लेखराज सिन्ध का नया ‘मसीहा’ हैं जिसे कृष्ण का अवतार बतलाया जाता है। वह अपने समाज के आदमियों के द्वारा उत्पीडित हो रहा है। इन आदमियों ने अपने पारिवारिक जीवन के बिखर जाने के भय से और इस भय से कि स्त्रियों की अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा से समाज का सत्यानाश हो जायेगा। ओ३म मण्डली पर पिकेटिंग शुरू कर दी है। नतीजा यह हुआ कि सी0पी0सी0 की १०७वीं धारा के अनुसार सिटी मजिस्ट्रेट की अदालत में पिकेटिंग करने वालों के अलावा ओ३म मण्डली के संस्थापक और उनकी चार सदस्याओं पर मुकद्दमा चल रहा है। 

दादा लेखराज अर्थात् खूबचन्द एक अवकाश प्राप्त व्यवसायी हैं। उन्होंने ओ३म मण्डली नाम से एक ट्रस्ट कायम किया है। ओ३म राधे इसकी अध्यक्षा हैं। संस्था के प्रबन्ध में स्त्रियों की कमेटी उसकी सहायता करती है। संस्था की ओर से रोज सत्संग या धार्मिक वाद-विवाद होते हैं और पीछे भजन होते हैं।

            हैदराबाद के भाई-बन्द (व्यापारी) समाज की स्त्रियाँ बहुधा-धर्मगुरूओं के फेर में पड़ जाती हैं। इस संस्था का उद्देश्य यह है कि उन स्त्रियों को उनके चंगुल से छुड़ाया जाये। अपंगों को सिलाई का काम सिखाया जाता है, ताकि वे अपनी जीविका कमा सकें। जोर इस बात पर दिया जाता है कि विवाहित जीवन में प्रवेश करने से पहले “ज्ञान” हासिल कर से अधिक से अधिक लाभ उठाने के ख्याल से स्त्रियों को कहा जाता है कि यह “ज्ञान” अपने पतियों में भी फैलाओ ताकि एक सुसंस्कृत और सुन्दरतर समाज की नींव डाली जा सके। 

      मण्डली के इस रूप के कारण ही समाज का विरोध उठ खड़ा हुआ है। लोगों का कहना है कि स्त्रियाँ हड़ताल कर रही हैं। पंचायत के पास ऐसे तीन निराश पतियों के प्रार्थना पत्र पहुँचे जो दूसरी शादी करना चाहते हैं। 

       मण्डली के खिलाफ दूसरा लांछन यह किं स्वर्ग में अपना स्थान ‘सुरक्षित’ रखने की इच्छा से स्त्रियाँ अपने पति, घरबार और बाल-बच्चों को त्याग कर चलती बनती हैं। भाई बन्द समाज की जनसंख्या ६०००० है। ये व्यापारी हैं।’ हिन्दस्तान स्थान के बाहर संसार के और देशों में १२००० पुरुष व्यापाररत हैं। तीन साल से लेकर पांच साल तक वे घरों से गैर हाजिर रहते हैं, कम से कम छ: महीने भी घर में आराम नहीं करते। 

        सत्संग के अवसर पर ओ३म मण्डली की सदस्याएं बेहोश हो जाती हैं। इसे दादा लेखराज का जादू-टोना बतलाया जाता है। दादा लेखराज शान्त और गम्भीर रहता है। कहता है कि उत्पीड़ना और बलिदान साथ-साथ चलते हैं। अज्ञानी जो कुछ करना चाहें करने दो उचित अवसर पर ही वे ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। 

       ओ३म् मण्डली का भवन भी २१ जून को गिर पड़ा। एक हजार आदमियों की भीड़ ने उसे घेर लिया, भवन और माल असबाब का सत्यानाश कर धूम मचा दी। फिर ओ३म् मण्डली ओ३म् निवास में चली गई। मण्डली की यह एक शाखा है। विरोधी वहाँ भी पहुंचे और पिकेटिंग शुरू कर दी। भीड़ दिनों दिन बढ़ती जा रही थी इसलिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। ५ पिकेटिंग करने वाले और ५ मण्डली की मालिकाएं गिरफ्तार की गई। मर्दो- औरतों की संयुक्त बैठकों पर अडंगा डाल दिया था। इस अडंगे के विरोध स्वरूप मुकद्दमा होने तक मण्डली ने अपने तमाम सत्संगों को स्थगित कर दिया। 

(सरस्वती संख्या , भाग ३९, पृष्ठ १६३ दिसम्बर १९३८

(सम्पादकदेवीदत्त शुक्ल, श्रीनाथ सिंह)

      जब दादा लेखराज पर मुकदमा चला ब्रह्माकुमारी आन्दोलन के समर्थकों का कहना है कि दादा लेखराज और उसकी मण्डली पर कोई मुकद्दमा नहीं चला। इस सम्बन्ध में प्रयाग की सुविख्यात हिन्दी मासिक पत्रिका ‘सरस्वती’ भाग ३९ संख्या, ६ खण्ड, १ मई सन् १९३८ ई.के एक लख का आर ध्यान आकृष्ट किया जाता है। इसमें पटना के ‘योगी’ नामक पत्र के निम्न शब्द उद्धृत किये गये हैं जो द्रष्टव्य हैं। 

          ओ३म् मण्डली पर पिकेटिंग शुरू कर दी है। नतीजा यह हुआ है कि सी0पी0सी0 की १०७वीं धारा के अनुसार सिटी मजिस्ट्रेट की अदालत में पिकेटिंग करने वालों के अलावा ओ३म् मण्डली के संस्थापक और चार अन्य सदस्यों पर मुकद्दमा चल रहा है। __ इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि दादा लेखराज और उनकी ओ३म् मण्डली के सदस्यों पर मुकद्दमा चल चुका है। 

उसी पत्रिका में सन् १९३६ ई. में एक सम्पादकीय लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक है : 

   धर्म के नाम पर हमारी धर्मान्धता पर जब कोई मिस मेयो कटाक्ष करती है तब तिलमिला उठते हैं और धूल का जवाब कीचड़ से देने को तैयार हो जाते हैं, पर यह सोचना गवारा नहीं करते कि हमारा धर्म जिसे हम प्राचीन व्यापक और उदार समझते हैं, अपने अन्दर कितना कडा-करकट छिपा सकता है? 

           राम और कृष्ण के नाम की आड़ लेकर दिन दहाड़े समाज में जो लीलाएं होती रहती हैं उनका भण्डा-फोड़ होने पर भी कभी-कभी ऐसे रहस्यों का पता लग जाता है जिन्हें देख सुनकर दाँतों तले उंगली दबानी पड़ती है, पर इतने पर भी हमारी निद्रा भंग नहीं होती। . हम देखते हुए भी अन्धे और सुनते हुए भी बहरे बने रहते हैं। हमारी बछिया के ताऊ वाली मनोवृत्ति से लाभ उठाने के लिए देश के किसी न किसी उपर्युक्त क्षेत्र में कृष्ण या राम के एक आध अवतार होते ही रहते हैं और हम अपनी विवाहित या अविवाहित बहू-बेटियों को उनके पास धर्म की दीक्षा लेने के लिए नि:संकोच भेज देते हैं। . 

          संकोच का प्रश्न ही क्या? हम तो ऐसा करने में अपना गौरव मानते हैं, यही तो हिन्दुत्व की उदारता है। यही तो उसकी महत्ता है। पिछले कई महीनों से हम कराची के दादा लेखराज और उनकी ओ३म् मण्डली की चर्चा अखबारों में पढ़ रहे हैं। उनकी कृष्ण लीला के विरोध में कराची के सुधार प्रेमी नागरिकों को सत्याग्रह तक करना पड़ा। 

         यहाँ तक कि श्री टी0एल0 वास्वानी सरीखे लोक सेवी सन्यासी भी जेल में बन्द हो गये। यही नहीं सिन्ध प्रान्त की सरकार के दो हिन्दू मंत्रियों ने भी विरोध प्रदर्शनात्मक इस्तीफा भी दे दिया। इतने आन्दोलन के बाद सरकार ने इस ओर ध्यान दिया और उसने ओ३म् मण्डली के दादा लेखराज और उनकी हरकतों पर नियंत्रण लगाया है और अब अदालती कार्यवाही करना आरम्भ किया है। ___ दादा लेखराज की प्रमुख शिष्या ओ३म् राधे ने अदालत में ओ३म् मण्डली के सम्बन्ध में जो ब्यान दिया है उससे पता लगता है कि ओ३म् मण्डली में यह शिक्षा दी जाती थी कि स्त्री पुरुष में कोई भेद नहीं। 

           वहाँ विवाहित स्त्रियों को अपने पतियों को छोड़ देने और अविवाहिताओं को आजन्म कुमारी रहने की शिक्षा दी जाती थी। यह भी सिखलाया जाता था कि दादा लेखराज कृष्ण के अवतार हैं और मण्डली की समस्त स्त्रियाँ उनकी गोपिकाएं हैं। 

            हमें शिकायत है कि अपनी उन पर्दानसीन बहू-बेटियों से जो घर से बाहर निकलने में तो लाज से गड़ जाती हैं, पर धर्म के नाम पर भेड़ की तरह अन्धे कुएं में जा गिरती हैं। 

             बीसवीं सदी के द्वितीय चरण में भी यदि यह धर्म मण्डलियाँ दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती और फलती-फलती रहें तो इसका श्रेय हम अपनी धर्मभीरू, माताओं, बहनों, बन्धुओं और कन्याओं को छोड़कर फिर किसे दें। 

                                  सरस्वती भाग ४०, संख्या , खण्ड, मई सन् १९३६ ., पृष्ठ ५३० 

-सम्पादक, देवीदत्त शुक्ल तथा उमेशचन्द्र देव

मेरे नाम शिवानी से एक देवी का पत्र 

           दिनांक १२ जुलाई, सन् १९५९ ई० – आपको यह पत्र आर्य भाई-बहन के नाते लिख रही हूँ। आप जैसे भाई से आशा करती हूँ कि इस समय देवियों की जो हालत है, उसे सुधारने की चेष्टा करेंगे। इस समय ब्रह्माकुमारियों के नाम पर प्रचलित मत में देवियों को खूब बहकाया जाता है। मैं इनकी हालत देखने के लिए ब्रह्माकुमारियों में सम्मिलित हुई। 

         इस समय ब्रह्माकुमारी के साथ आबू पर्वत पर गई जहाँ इनका अखिल भारतीय प्रधान केन्द्र है जब हम वहाँ पहुंचे तो उनका नौकर हमारा सामान अन्दर ले गया और कुछ देवियाँ बाहर आ गई। बाबा और मातेश्वरी (दादा लेखराज और सरस्वती) भी बाहर आ गये मैने उनको नमस्ते की। मुझे ऐसे देखने लगे, जैसे कोई अनपढ़ आ गई है- क्योंकि वहाँ कोई नमस्ते नहीं करता, फिर एक टोली वहाँ आई। टोली की सारी देवियाँ बाबा की गोद में गई और मुझे कहा कि यहाँ नमस्ते नहीं की जाती, बाबा की गोद में जाना होता है। । जब हम खा-पीकर खाली हुई तो कुछ देवियाँ मेरे पास आई और कहने लगी कि तुम बाबा की गोद में क्यों नहीं बैठी? मैने कहा कि मैं पर परुष की गोद में कैसे बैठ सकती हैं। तो कहने लगी कि बाबा जब गद्दी पर बैठता है तब भगवान हो जाता है। हम उनको भगवान समझकर उनकी गोद में बैठती हैं। मैने कहा जब तक मैं इनको भगवान् न समझं तब तक पर पुरुष ही समझंगी। प्रात:काल जागने पर वहां एक रिकार्ड बजता है- ‘जाग सजनिया जाग।’ उसके पश्चात् सब एक बड़े हॉल में चले जाते हैं और मातेश्वरी गद्दी पर बैठ जाती है। १५ मिनट बाद फिर रिकार्ड बजता है और फिर बाबा गद्दी पर बैठ जाते हैं। ऊपर लाइट के कुछ चक्कर लगाये होते हैं जो खिडकियां बन्द करके बाबा पर डाले जाते हैं। फिर कहते हैं- देखो बाबा का कितना तेज है। 

                      वस्तुत: वह तेज नहीं लाइट की करामात होती है। थोड़ी देर में बाबा कुछ बोलते हैं जिसे मुरली कहा जाता है। कुछ समय बाद बाबा सब देवियों के मुंह में अपने हाथ से बादाम और इलायची डालता है। मेरी जैसी कि मुश्किल थी। बाबा का प्रवचन जिसे मुरली कहा है, सारे केन्द्रों में छापकर भेजा जाता है। १० से १२ बजे तक विचार विमर्श होता है-जिसमें मैने कई शंकाएं की किन्तु उनका कोई समाधान नहीं हुआ । फिर भोजन विश्राम आदि। फिर ५ बजे के बाद सब लड़कियाँ बाबा के साथ बैडमिंटन खेलती है। सात से साढ़े सात बजे तक योग की क्लास होती है। फिर सैर इत्यादि। 

              रात को सब बाबा के साथ ताश खेलते हैं, जिसे गधा कहते हैं। जिसमें अक्सर लड़कियाँ होती हैं। जो औरत गधा बनेगी उसे बाबा प्यार करेगा, ऐसा कहा जाता है तथा उसके मुंह में बादाम इत्यादि डालेगा और थापी देगा। वीरवार को वहाँ भोग लगता है-यहाँ एक देवी जिनको मातेश्वरी कहा जाता है, ब्रह्म लोक में आंख मूंदकर चली जाती हैं और वहाँ से आज्ञाएं लेकर आती है। उसको सन्देश पुत्री भी कहते हैं। 

            वह सबके नाम सन्देश लाती है। फिर वह देवी कहती है-भगवान को भोग लग गया है। तदन्तर बाबा अपने हाथ से सबको प्रसाद देते हैं। फिर बाबा को सब लोग गले मिलते हैं। मैने बाबा को गले मिलने से इन्कार कर दिया। इस पर मातेश्वरी कहने लगी कि इसमें त्रुटि है, इसलिए बाबा की गोद में नहीं आ सकती। 

          कई बार बाबा सबको सैर करने के लिए ले जाते हैं। एक जवान लड़की उनके एक तरफ और दूसरी लड़की दूसरी तरफ बाहों में बाहें डालकर खूब तेज चलती है। इस प्रकार से वहाँ की अव्यवस्था देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। 

            बाबा को भगवान माना जाता है और कहा जाता है कि बाबा कलयुग का खात्मा करके सत्युग की स्थापना करने आये हैं। सत्युग में मातेश्वरी रानी और बाबा राजा बनेंगे। बड़ा भारी पाखण्ड करके कहते हैं कि बाबा जी में भगवान प्रवेश करते हैं, इसलिए हम भगवान को मानते हैं, वेदों को नहीं। इस समय यहाँ इतनी निर्लज्जता है कि करनाल के एक मास्टर ने अपनी पत्नी को अपने सामने बाबा की गोद में चले जाने को कहा वह इस पर बहुत प्रसन्न था। एक लड़की धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) से एकं गोरखा लड़की को लाई, जिसने बाबा के सामने नाच किया। ____ मैं एक सप्ताह वहाँ रही। आशा करती हूँ कि आप इस ओर ध्यान देंगे और इस पाखण्ड को दूर करने का यत्न करेंगे। 

           १. आप कहते हैं कि सृष्टि को उत्पन्न हुए ५ हजार वर्ष हुए हैं जब कोई शास्त्र और किसी प्रकार का इतिहास इस बात का समर्थन नहीं करता। ‘सूर्य सिद्धान्त’ जो कि ज्योतिष का सबसे पुराना एवं सर्वसम्मत ग्रन्थ है, जिसे भारत तथा यूरोप के सभी बड़े-बड़े विद्वान प्रमाणिक स्वीकार करते हैं, के अनुसार इस सृष्टि को उत्पन्न हुए १ अरब ९७ करोड़ २९ लाख ४९ हजार ८७ वर्ष हो चुके हैं। इस बाकायदा गणना को निर्रथक नहीं कहा जा सकता और कहने का सामर्थ्य आज को नहीं हआ। प्रसिद्ध इतिहास के अनुसार रामायणकालीन समय लगभग ८ लाख वष सभा विद्वान स्वीकार महाभारत काल को ५ हजार वष हो चुके हैं। ऐसी अवस्था में ब्रह्माकुमारियों को यह कहना है कि सृष्टि को ५ हजार कोरी कल्पना है। न्यायदर्शन के अनुसार

 लक्षण प्रमाणाभ्यां वस्तुसिद्धः तु प्रतिज्ञा मात्रेणा‘ 

             अर्थात किसी बात की सिद्धि लक्षण और प्रमाणों से ही होती है. केवल कह देने मात्र से नहीं। अत: किसी गणित शास्त्र का कोई प्रमाण हो तो उपस्थित करो। कोरी प्रतिज्ञा करने मात्र से आपकी बात की सिद्धि नहीं हो सकती। अतः आपकी ५ हजार वर्ष वाली बात कहना, कोरी गप्प है। हमारी उपर्युक्त सृष्टि सम्वत् काल की गणना को आज का विज्ञान भी स्वीकार करता है एवं पुरातत्व विशारद अपनी खोज के आधार पर भी सृष्टि की आयु लगभग इतनी ही मानते हैं। . २. सृष्टि को उत्पन्न करने वाला परमात्मा है, यह आप भी स्वीकार करते हैं। कृपया बतलाने का कष्ट करें कि सृष्टि उत्पन्न होने के पूर्व अपनी कारणावस्था में किस प्रकार की स्थिति में थी? कृपया यह भी बतलाइये कि सृष्टि के उत्पन्न होने का क्रम क्या है? 

         ३. यदि ईश्वर सर्वव्यापक नहीं, तो सृष्टि उत्पत्ति किस प्रकार हुई? बनाने वाला बनने वाली वस्तु के साथ रहा करता ए या उससे अलग होकर बनाता है? सृष्टि किससे बनाता है? कस बनाता है? पंच महाभूतों के सूक्ष्म तत्व परमाणु रूप में आकाश की तरह व्यापक रहते हैं तो एक देशी परमात्मा जो कि व्यापक नहीं है, उन फैले हए तत्वों को किस प्रकार की गति दे सकता है? उन तत्वों की आकाश में किस प्रकार की स्थिति होती है? जड़ होने के कारण उनमें स्वयं बनने की सामर्थ होती नहीं, सर्वव्यापक न होने से परमात्मा किस प्रकार उनकी रचना करने में समर्थ हो सकता है? 

       ४. आकाश नाश रहित है या नाशवान्? आकाश की परिभाषा करिए, आप आकाश किसे कहते हैं, वह एक देशी है या व्यापक? 

       ५. जीवात्मा और परमात्मा में क्या भेद है? दोनों को लक्षण बताकर स्पष्ट करिए। 

        ६. क्या कोई एक देशी पदार्थ सर्वत्र हो सकता है? यदि नहीं, तो किसी शरीरधारी, एकदेशी जीवात्मा को ईश्वर मानना क्या जनता को धोखा देना नहीं है? 

         ७. आपके मन्तव्यानुसार यदि दादा लेखराज स्वयं ईश्वर हैं तो दर्शन के इस सूत्र के अनुसार कि – क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टःपुरुषविशेष ईश्वरः। अविद्या-अस्मिता-राग-द्वेष-अभिनिवेशी: पंच्च क्लेशाः। . क्या इन पांचों क्लेशों से शरीरधारी होने के कारण मुक्त है? जबकि संसार में अब तक किसी शरीरधारी का ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिला। 

          ८. हमें प्राप्त सूचना के अनुसार दादा लेखराज ब्रह्माकुमारियों को अपनी गोद में बिठाते हैं। क्या मनु द्वारा कहे हुए अष्ट मैथुनों के अन्तर्गत आने से यह मर्यादा का अतिक्रमण नहीं है? 

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