सुन्दर नर तन मन मधुवन को।
प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।
सुखकर दीर्घ आयु फिर पायें,
फिर प्राणों का ओज जगायें।
फिर से आत्मबोध अपनायें।
मंगल दृष्टिकोण के धन को।
प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।१।।
होवें सक्षम श्रोत्र हमारें,
तज कर जग को प्रेय पुकारें।
फिर से साधन श्रेय सुधारें।।
विज्ञान विमल के दर्पण को।
प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।२।।
दु:ख दुरित दूर उर करो मधुर,
हो हृदय अहिंसक सर्व सुखर।
हे जठर अनल हे वैश्वानर।।
कर्मठ ललाम नव परपन को।
प्रभुवर! पुन: पुन: दो हम को।।१।।
स्रोत- पुनर्मन: पुनरायुर्मऽआगन्पुन: प्राण:,
पुनरात्मामऽआगन्पुनश्चक्षु: पुन:
श्रोत्रंमऽआगन्। वैश्वानरोऽअदब्ध
स्तनूपाऽअग्निर्न: पातु दुरितादवद्यात्।।
– (यजु. ४.१५)