परमात्मा का गौणिक नाम ब्रह्मा क्यों है? क्योंकि ब्रह्म शब्द बहुवाचक है, जबकि ईश्वर एक है और ऋषि का नाम भी ब्रह्मा आया है, वह भी एक ही मनुष्य था। अग्रि, वायु, आदित्य और अंगिरा ऋषियों को ब्रह्मा नाम देने में क्या दोष है, क्योंकि वे सबसे महान् भी थे और यथार्थ में एक से अधिक भी थे।?
आपकी यह दूसरी जिज्ञासा भाषा को न जानने के कारण है। यदि संस्कृत भाषा को ठीक जान रहे होते तो ऐसी जिज्ञासा न करते। ‘ब्रह्मा’ शब्द एक वचन में ही है, बहुवचन में नहीं। ब्रह्म शब्द नपुंसक व पुलिंग दोनों में होता है। नपुंसक लिंग में ब्रह्म और पुलिंग में ब्रह्मा शब्द है। यह ब्रह्मा प्रथमा विभक्ति एक वचन का है। मूल शब्द ब्रह्मन् है, राजन् के तुल्य। ब्रह्मन् शब्द का बहुवचन ब्रह्मण: बनेगा, इसलिए ब्रह्मा शब्द को जो आप बहुवचन में देख रहे हैं सो ठीक नहीं। परमात्मा एक है, इसलिए उसका गौणिक नाम ब्रह्मा एक वचन में ही है। जब यह शब्द एक वचन में ही है तो इससे अग्रि, आदित्य आदि बहुतों का ग्रहण भी नहीं होगा। यदि ग्रहण करेंगे तो दोष ही लगेगा। और यदि ‘‘ब्रह्म शब्द बहुवाचक है’’ इससे आपका यह अभिप्राय है कि ब्रह्म शब्द ‘बहुत’ अर्थ को कहने वाला है और चूँकि परमात्मा एक है, अत: उसके लिए ब्रह्म शब्द का प्रयोग उचित नहीं है, तो यह कहना भी आपका ठीक नहीं है, क्योंकि ब्रह्म शब्द ‘बहुत’ अर्थ का वाचक नहीं है। ब्रह्म का अर्थ तो ‘बड़ा’ होता है। परमात्मा सबसे बड़ा है, अत: उसे ब्रह्म कहा जाता है। ‘सर्वेभ्यो बृहत्वात् ब्रह्म, अर्थात् सबसे बड़ा होने से ईश्वर का नाम ब्रह्म है।’
– स.प्र. १
ऐसे ही ब्रह्मा नाम के ऋषि सकल विद्याओं के वेत्ता होने के कारण ज्ञान की दृष्टि से सबसे बड़े थे, अत: उन्हें ब्रह्मा कहा गया। और ब्रह्मा परमात्मा का नाम इसलिए है-
योऽखिलं जगन्निर्माणेन बर्हति (बृंहति) वद्र्धयति स ब्रह्मा
जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढ़ाता है, उस परमेश्वर का नाम ब्रह्मा है। – स.प्र. १