क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा – ऋषि उवाच

महर्षि दयानंद की विचारधारा ने सोयी हुई हिन्दूजाति को जगाने का काम किया। देश और घर्म को लिए अपने प्राणों की आहुति देनेवाले क्रांतिकारीओ का सैन्य खडा किया।

उसमें से एक है – क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा

गुजरात के कच्छ जिले के मांडवी शहरमें इनका जन्म हुआ। वर्माजी संस्कृत अच्छी जानते थे। उनकी संस्कृत के प्रति निष्ठा देखकर स्वयं महर्षि दयानंद ने उनहें संस्कृत व्याकरण पढाना शुरु किया।

महर्षि की विचारधारा से प्रभावित होकर श्यामजी कृष्ण वर्माजी राष्ट्रवाद और वैदिक धर्म के रंग में रंग गये।

वह मुंबई आर्यसमाज के प्रमुख भी बने और वैदिक धर्म पर विविध व्याख्यान देते थे।

महर्षि दयानंद के कहने पर वह लंडन गये। विदेश में वैदिकधर्म का प्रचार करना और भारत की स्वतंत्रता कि लिए उद्यम करना, मुख्य उद्धेश्य था।

लंडन में भारतीयो के साथ भेदभाव होता था। इसी कारण से उनहोंने लंडन में “India House” की स्थापना करी। उनका यह घर भारत के क्रांतिकारीओ का बडा अड्डा बन गया था। महात्मा गांधी, लेनीन, लाला लजपतराय यह सब यह संस्था की प्रवृत्ति में भाग लेते थे।

श्यामजाकृष्ण वर्माजीने लंडन में भारत की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश राजनेताओ का प्रभावित करना प्रारंभ किया। वह भारतीय होमरुल सोसायटी के सदस्य थे।

उनकी प्रवृत्तिने ब्रिटिश सरकार की निन्द उडा दी। उन के पीछे जासूस लगाये गये। ब्रिटिश सरकार का विरोध करने पर उनके विरुद्ध कार्यवाही होने लगी।

तब वह इन्डिया हाउस का प्रबंध वीर सावरकर को सोंप कर पेरिस चले गये। वहां से वह भारत की स्वतंत्रता के लिए कार्यरत रहे। ब्रिटिश सरकारने उनहें फ्रांस से प्रत्यार्पण कराने का बहुत यत्न किया, लेकिन विफल रहे।

जब उनकी सन १९३० में मृत्यु हुई तब वह विदेश में थे। उनकी एक ही इच्छा थी की भारत जब स्वतंत्र हो तब ही उनकी अस्थिया भारत भेजी जाय और विसर्जित करी जाय।

हमारा दुर्भाग्य था की भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी सन २००३ तक यह महापुरुष की अस्थि वापस लाने का कोई प्रयत्न भारत सरकार ने नहीं किया।

नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका अस्थि वापस लाने का प्रयत्न शुरु किया और सन २००३ में उनकी अस्थि भारत पहुंची। मोदी जी ने पूरे गुजरात में उनकी गौरवयात्रा निकाल कर दिवंगत महापुरुष को सन्मान दिया। कच्छ विश्वविद्यालय को भी क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा नाम मिला और उनकी स्मृति में कच्छ में एक भव्य स्मृतिस्थल का भी निर्माण हुआ।

इस प्रकार महर्षि दयानंद ने जो चरित्र का निर्माण किया था उनको योग्य स्थान मोदीजी ने दिलवाया।

राष्ट्रवाद की ज्योत जलाने वाले महर्षि दयानंद को नमन हो। उनके शिष्य क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्ण वर्मा को नमन हो। वंदे मातरम्।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *