ज़कात-कोष का उपयोग
कुरान के अनुसार ज़कात-कोष उन लोगों के लिए है जो ”गरीब और मोहताज“ (फुकरा और मसकीन) हों, जो बँधुआ और कर्जदार हो, और जो राह चलते मुसाफिर हों।“ ये सब दान के परम्परागत पात्र हैं। इस कोष का उपयोग ”अल्लाह की सेवा“ (फीसबी लिल्लाह) और इस्लाम के वास्ते ”दिल जीतने (या अनुकूल बनाने अथवा झुकाव बढ़ाने) के लिए (मुअल्लफा कुलूबुहुम)“ भी किया जाता है (कुरान 960)।
इस्लाम की मज़हबी शब्दावली में, पहले मुहावरे अर्थात ”अल्लाह के रास्ते में या सेवा में“ का अर्थ है मज़हबी युद्ध या जिहाद। ज़कात-कोष को हथियार, सैनिक उपकरण और घोड़े खरीदने में खर्च किया जाता है। दूसरे मुहावरे अर्थात् ”दिल जीतने अथवा अपनी तरफ झुकाने“ का अलंकार-रहित अर्थ है ”घूस देना“। मतान्तरित नये लोगों के ईमान को उदार ”भेंटों“ की मदद से पक्का करना चाहिए और विरोधियों के ईमान को इसी माध्यम से उखाड़ना चाहिए। पैगम्बर के मज़हबी अभियान और उनकी कूटनीति का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग था और, जैसा कि कुरान की आयतें बतलाती हैं, इसके लिए पैगम्बर को वह दैवी स्वीकृति प्राप्त थी, जिसका दावा उनके अनुयायी आज भी करते हैं।
author : ram swarup