यग्य करते हुये इन्द्रियों को विश्यमुक्त कर पवित्र बनें

यग्य करते हुये इन्द्रियों को विश्यमुक्त कर पवित्र बनें
हम सदा प्रतिदिन दो काल यग्य करें। यग्य से हमारे घर का वातावाण स्वच्छ होता है, अनुशासन आता है, बडों का आग्यापालन करने की भावना बलवती होती है तथा सब इन्द्रियां वश में होती हैं । जब सब इन्द्रियों के घोडे वश में हो जाते हैं , नियन्त्रित होने से हम पवित्र होते हैं । इस प्रकार का आश्य रिग्वेद के सप्तम मण्ड्ल के सुक्त संख्या एक के मन्त्र संख्या १७ में इस प्रकार बताया गया है : –
त्वे अग्नाहवनानि भूरीशानास आ जुहुयाम नित्या ।
उभा क्रण्वन्तोवहतू मियेधे ॥ रिग्वेद .१.१ ॥
हे यग्य की अग्नि ! हम प्रतिदिन दो काल तेरे में आहुतियां देते रहें , आहुत करते रहे । यह सब हम एश्वर्यशाली होते हुये भी करें । हमारे पास धन एश्वर्य है या नहीं किन्तु हम अपने निवास पर यग्याग्नि को जलाने तथा एश्वर्य रूपि आहुतियों को देने का कार्य प्रतिदिन दो काल निरन्तर करते रहें ।
हे अग्नि देवे आप की यग्य अग्निको जलाते हुये हम प्रतिदिन यग्य काते हुये हम अपनी इन दोनों इन्द्रियों के घोडों को मार लेने वाले हों अर्थात हम अपनी इन्द्रियों को सब प्रकार की विष्य वासनाओं से अपनी इन इन्द्रियों को अलग कर लेम, दूर कर लें । इन्हें किसी प्रकार केरग आदि से कुच भी चस्का न रह जावे । इस प्रकार हमारी इन्द्रियों के यह गोडे पवित्र बन जावें ।
नियमित अग्निहोत्र से वायुमण्डल शुद्ध होता है
जब हम अपने यहां प्रतिदिन नियमित रुप से दो काल हवन करते हैं , यग्य करते हैं तो हमारे घर तथा आसपास का वायु मन्डल शुद्ध , पवित्र हो जाता है । इस बात पर इस मन्त्र में इस प्रकार विचार किया ग्या है : –
इमो अग्ने वीततमानि हव्याजस्त्रो वक्शि देवतातिमच्छ ।
प्राति न ई सुरभीणि व्यन्तु ॥ रिग्वेद ७.१.१८ ॥
हे यग्याग्नि देव ! तुं निरन्तर जलता रह, अन्वरत जलते हुये कभी न बुझे । इस प्रकार निरन्तर जलते हुये अग्नि देव तुझे जो हव्य पदार्थ दिये जाते हैं , तुझ में डाले जाते हैं , भेंट किये जाते हैं , उन सुन्दर पदार्थों को तुं ग्रहण कर तथा इन्हें वायु आदि देवों को पहुंचा , दे अथवा भेण्ट कर दे । हे यग्याग्नि देव ! आप को जो जो आहुति भेंट की गयी है , वह सब आप सीधे ही सुर्य देव को दे देते हो । इस प्रकार आप को भेट की गयी यह आहुतियां अग्नि के योग से सूक्शम कणॊं में बंट जाती हैं । इस प्रकार सूक्शम कणॊं में बंटे यह हव्य पदार्थ आकाश मण्डल में सर्वत्र , सब ओर फ़ैल कर सारे के सारे वायु मण्ड्ल का शोधन करते हैं । वायु मण्डल को शुद्ध कर देते हैं ।
हे अग्नि देव ! हम यह जो प्रतिदिन यग्य करते हैं , उससे निकलने वाले यह सूक्शम कण प्रतिदिन यग्य के द्वारा उन सब देवों के पास पहुंचे , जो इन के द्वारा वायुमण्डल के शोधन का कार्य करते हैं ,पवित्र करने का कार्य करते हैं , स्वच्छ करने का कार्य करते हैं , पर्यावरण को शुद्ध करते हैं ।
हम सुस्न्तान, वस्त्र,बुद्धि आदि दिव्य्भावों से युक्त सर्वत्र सुरक्शित हों
हम प्रतिदिन यग्य करते हुये उत्तम सन्तान वाले बनें , प्रतिदिन शुभ व पवित्र वस्त्रों को धारण करें, हमारी बुद्धि भी शुभ हो , हम सदा त्रिप्त रहें ,दिव्य्भावों को प्राप्त करें । हमारे रित की प्रभु रक्शा करें तथा हमारी सब स्थानों पर रक्शा हो। इस भाव को मन्त्र ने इस प्रकार प्रकट किया है :
मा नो अग्ने॓वीरते परा दादुर्वाससे॓मतये मा नो अस्यै ।
मा न: शुधे मा रक्शस रितावो मा नो दमे मा वना जुहूर्था:॥ रिग्वेद ७.१.१९ ॥
हे परम्पिता परमात्मा ! हम नि:सन्तान न हो , हमें अपुत्रत्व को न दें । हमें सन्तान्युक्त करें । हमें मैले कुचैले कपडों में मत डालिये, हम सदा स्वच्छ व सुन्दर कपडों क वर्ण करें, पह्नें । इअतना ही नहीं हे प्रभु हमें निर्धन्मत बनाएये, एश्वर्य से युक्त बनाइये । हमा कभी निर्बुधि न हों , प्रभो हमें उत्तम बुद्धि भीदो । इस के साथ ही साथ हमें भूख को मत देवेम , हम सदा उत्तम भोजन करें, क्भी भूखे न हों । इस के साथ ही साथ हे प्रभो हम में रक्श्सीप्रव्रितियों क प्रवेश मत करायिये , हम सदा देवत्व की ओर बधें । हे रित तथा सत्य क रक्शण करने वाले अग्ने ! हम अपने घर मेम क्भी हिसित न हों, केवल्घर में हीनहीं हम वन में भी अर्थात बाहर भी क्भी हिसक न बनें । इस प्रकार आप की उपासना करते हुये , आप की समीपता में रहते हुये हम सब स्थानों पर सर्वदा सुरक्शित रहें ।
हम प्रभु से ग्यानोपदेश ले यग्य्शील के कश्तों को दूर कर शुभ मार्ग पर चलें
प्रभु से हमें ग्यान क उपदेश मिलता रहे । हे प्रभु हम यग्य्शीलों के कश्टों को दुर कीजिये । हम अभ्युदय व निश्रेयस को सिद्ध करते हुये सदा सन्मार्ग पर, शुभ मार्ग पर चलें । इस क वर्णन इस मन्त्र मे मिलता है : –
नू मे ब्रह्माण्यग्न उच्छशाधि त्वं देव मघवद्भय: सुषूद: ।
रातॊ स्यामोभयास आ ते यूयं पात स्वस्तिभि: सदा न:॥ रिग्वेद ७.१.२० ॥
हम प्रभु से ग्यानोपदेश ले यग्य्शील के कश्तों को दूर कर शुभ मार्ग पर चलें
प्रभु से हमें ग्यान क उपदेश मिलता रहे । हे प्रभु हम यग्य्शीलों के कश्टों को दुर कीजिये । हम अभ्युदय व निश्रेयस को सिद्ध करते हुये सदा सन्मार्ग पर, शुभ मार्ग पर चलें । इस क वर्णन इस मन्त्र मे मिलता है : –
नू मे ब्रह्माण्यग्न उच्छशाधि त्वं देव मघवद्भय: सुषूद: ।
रातॊ स्यामोभयास आ ते यूयं पात स्वस्तिभि: सदा न:॥ रिग्वेद ७.१.२० ॥
हे प्रभो ! आप मेरे लिये ग्यान की जितनी भी वाणियां हैं , उनका उपदेश कीजिये । हे प्रभो ! आप पतिदिन यग्य करने वालों को उत्तम प्रेर्णा को प्राप्त कराने के लिये उन्हें उत्साहित कीजिये , उन्के दु:खों को दूर कीजिये । आप के जितने भीदान हैं , उन में अभ्युदय तथा नि:श्रेयस्दोनों को सिद्ध करने वाले हों । इन सब देवों के साथविनाशी मंगलों के माध्यम से, के द्वारा हमारा राक्श्ण किजिये , हमारि रक्शा करेम । इस प्रकार आप की क्रपा हमारे उपर बनी रहे तथा हम क्ल्याण मार्ग पर निरन्तर चलते रहें ।

2 thoughts on “यग्य करते हुये इन्द्रियों को विश्यमुक्त कर पवित्र बनें”

  1. OM..
    ARYAVAR, NAMASTE…
    AAP KI LEKHAN SHAILI, VISHAYAVASHTU AUR PRASANG BAHUT UCHCHA KOTIKE HOTEHAI, LEKIN BYAAKARANGAT SUDDHAASHUDDHI PAR BHI THODI SI DHYAN DENAA JARURI HAI… MERI DHRISHTATAA MAAF KAREN..
    DHANYAWAAD..

    1. namaste arya ji
      baat aisi hai ki computer par bahut aisi word hoti hai jise type karna mushkil hota hai is kaaran is tarah ki hoti hai kyunk ham professionl nahi hai hindi type karnewale. fir bhi koshish ki jayegi dhanywaad

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