प्राचीन समाज, संस्कृति, सयता, विद्याओं या विषयों का इतिहास-लेखन अथवा विश्लेषण मनुस्मृति के विवेचन के बिना संभव नहीं है। मनुस्मृति अनेक विषयों की संहिता है जिसमें वे विषय सार और मौलिक रूप में विश्लेषित किये गये हैं। उनसे प्राचीन समाज एवं संस्कृति-सयता पर प्रकाश पड़ता है। जिन विद्याओं या विषयों के आरभिक स्वरूप के ज्ञान और विश्लेषण के लिए मनुस्मृति की अनिवार्य आवश्यकता है, वे हैं-
- धर्मशास्त्र 6. राजनीति शास्त्र
- समाजशास्त्र 7. युद्धकला एवं नीति
- इतिहास (सांस्कृतिक) 8. लोक प्रशासन
- विधिशास्त्र तथा दण्डविधि 9. भाषा शास्त्र
- अध्यात्म एवं दर्शन 10. अर्थशास्त्र
- वाणिज्य
इन सब विषयों का संक्षिप्त विवेचन मनुस्मृति में पाया जाता है। प्राचीनतम समय में इतने सारे विषयों पर विचार एवं निर्णय प्रस्तुत करके मनु ने विश्व के लिए अनेक विद्याओं के द्वार खोल दिये थे। वेदों और अनेक विद्याओं की उद्गमस्थली होने के कारण तत्कालीन भारत ‘विश्वगुरु’ माना जाता था। भारत को ‘विश्वगुरु’ कहलाने और उस स्तर तक पहुंचाने का श्रेय मनु को ही जाता है। मनु घोषणापूर्वक विश्व के सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षार्थ अपने देश में आमन्त्रित करते हैं-
एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः॥ (2.20)
अर्थ-हे पृथ्वी के निवासी सभी मनुष्यो! आओ, इस देश के विद्वान् तथा सदाचारी ब्राह्मणों के सान्निध्य में रहकर अपने-अपने चरित्रों=व्यवहारों और अभीष्ट व्यवसायों की शिक्षा ग्रहण करके विद्वान् बनो।
इस श्लोक से संकेत मिलता है कि मनु बिना किसी भेदभाव के, प्रत्येक व्यक्ति के लिए शिक्षा को अनिवार्य मानते थे। उसका कारण यह था कि शिक्षा के बिना व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र किसी भी प्रकार की उन्नति नहीं कर सकता। अशिक्षित व्यक्ति समाज और राष्ट्र के लिए पर्याप्त योगदान नहीं कर पाता। मनु किसी भी व्यक्ति को राष्ट्र में निठल्ला और निकमा नहीं देखना चाहते थे, अतः उन्होंने शिक्षा पर बहुत अधिक बल दिया और किसी भी प्रकार का शिक्षण/प्रशिक्षण ग्रहण न करने वाले को निनवर्णस्थ माना तथा वर्णबाह्य करने का भी निर्देश दिया। मनु का यह ‘सबके लिए अनिवार्य शिक्षा’ का संदेश था।
इस देश को इतना महान् गौरव दिलाने वाले और उस आदियुग में विश्व के सभी मनुष्यों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देने वाले मनु स्वायंभुव हमारे लिए गर्व करने योग्य महापुरुष हैं। ऐसे महापुरुष की अनर्गल आलोचना करने का अभिप्राय है विश्व के समक्ष अपनी ऐतिहासिक अज्ञानता का परिचय देना।