वन्दे मातरम्
(संस्कृत में राष्ट्रगीत के ‘वन्दे’ शब्द की समीक्षा)
आजकल “वन्दे मातरम्” गीत पर बहुत विवाद चल रहा है। कुछ समुदाय इसके विरोध मे हैं। उनके अनुसार इससे इनकी धार्मिक मान्यताओ से विरोध होता है। वे निराकार ईश्वर या खुदा के अतिरिक्त किसी जड़ वस्तु या भूमि की उपासना भक्ति या इबादत नहीं करते। कुछ नास्तिक निरीश्वरवादी किसी ईश्वर को नहीं मानते, न भक्ति, उपासना, इबादत करते हैं। इसी विवाद का विषय बने ‘वन्दे’ शब्द की हम समीक्षा कर रहे हैं-
सस्कृत में ‘वन्दे’ शब्द क्रियापद है। जो “वदि- अभिवादनस्तुत्योः” (= अभिवादन/प्रणाम करना एवं स्तुति/गुणगान करना) धातु से लट् लकार (वर्तमान काल) में उत्तम पुरुष के एकवचन में बनता है। वन्द् + शप् + लट् = वन्द् अ इट् = वन्दे। इस धातुरूप के इसके धात्वर्थ के अनुसार दो अर्थ हैं। 1. मैं वन्दना अर्थात् अभिवादन, प्रणाम, भक्ति, उपासना, धोक मारना करता हूं। यह अर्थ चेतन माता-पिता गुरु-आचार्य आदि को अभिवादन या नमस्ते करने के लिए एवं परमेश्वर की भक्ति उपासना, इबादत करने के लिए प्रयुक्त होता है। तथा 2. मैं स्तुति, गुणगान, प्रशंसा, नामवरी, बढ़ाई करता हूं। यह अर्थ चेतन एवं जड़ याने निर्जीव पदार्थों या वस्तुओं के प्रति होता है। क्योंकि जड़ वस्तुओं की उपासना भक्ति इबादत का तो औचित्य नहीं है। किन्तु प्रशंसा, गुणगान, नामवरी तो चेतन के साथ-साथ जड़ वस्तुओं की भी हो सकती है। जैसे प्रत्येक दुकानदार अपने बेचने के वस्तुओं की प्रशंसा, गुणगान, बढ़ाई करता है। फल-विक्रेता कहता है ये फल ताजे हैं, मीठे हैं आदि। सब्जी बेचनेवाला कहता है ये तरकारी ताजी है, बहुत अच्छी है, सस्ती है आदि। मूंगफली विक्रेता जोर-जोर से बोलता है- जाड़े की मेवा मूंगफली, करारी भुनी मूंगफली आदि। टी.वी., रेडियो, अखबार में दिन-रात लोग कंपनियां अपने उत्पादों की जोर-शोर से वन्दना, प्रशंसा, स्तुति, गुणगान, बड़ाई करते हैं। जिससे उनका माल अधिक बिकता है। अर्थात् प्रत्येक मालविक्रेता अपनी वस्तुओं की वन्दना, स्तुति, प्रशंसा, बढ़ाई, नामवरी करता है। यदि वह वन्दना, स्तुति, प्रशंसा, बढ़ाई, गुणगान न करे तो उसका माल धरा रह जाएगा। यदि कोई विक्रेता कहे कि मैं इन वस्तुओं की वन्दना, स्तुति, प्रशंसा, गुणगान नहीं करूंगा, तुम्हें वस्तु लेनी है तो लो, नहीं तो आगे बढ़ो तो दुकान नहीं चल सकती। मैंने प्रत्येक दुकानदार को अपने माल की वन्दना प्रशंसा, स्तुति, बढ़ाई करते देखा है। चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, ईसाई हो या सिक्ख, नास्तिक हो या आस्तिक, स्त्री हो या पुरुष सभी वन्दना, स्तुति, प्रशंसा, बढ़ाई करते हैं।
संस्कृत के भारतीय राष्ट्रगीत में भी मातृभूमि की स्तुति, प्रशंसा ही की गई है।
वन्दे मातरम्
सुजलाम् सुफलाम् मलयज शीतलाम्
शस्यशामलाम् मातरम् वन्दे
शुभ्र ज्यात्स्नां पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्
सुखदां-वरदां मातरम्.. वन्दे मातरम्
अर्थात् मैं (पृथ्वी-पुत्र) अपनी मातृभूमि (जन्म-भूमि) की वन्दना, गुणगान, प्रशसा, नामवरी करता हूं। जो सुन्दर मीठे जलवाली मीठे रसीले फल-फूलवाली, ठंड़ी-सुगन्धित वायुवाली, हरी-भरी फसलों से सजी हुई, चमकीले प्रकाशवाली, शान्तिप्रद रात्रियोंवाली है। यह फूलते-फलते वृक्षों से सुशोभित है। यहां के वासी हंसते-खेलते मधुरभाषी हैं। यह मेरी मातृभूमि सुख देनेवाली और वरदान देनेवाली (लक्ष्य को पाने की शक्ति देनेवाली) है। ऐसी अद्भुत मातृभूमि की मैं वन्दना, प्रशंसा, गुणगान, नामवारी करता हूं।
इस गीत में गुणगान, प्रशंसा करनेवाले ही शब्द हैं। धोक मारने, उपासना, इबादत करने को नहीं कहा गया। जिस देश की मिट्टी में हम पले-बढ़े हैं, उसकी प्रशंसा, गुणगान करना तो हमारा स्वाभाविक धर्म है। अन्यथा कृतघ्नता याने अहसान-फरामोशी का पाप लगेगा।
मैं यह व्याख्या अपनी मन-मानी खींचातानी से नहीं कर रहा हूं। अपितु हजारों लाखों वर्षों से उक्त दोनों अर्थों में यह धातु प्रयुक्त की जाती आ रहा है जिससे वन्दना (अभिवादन, प्रणाम और स्तुति-प्रशंसा) शब्द बनता है। इसका जो अर्थ हजारों वर्षों पूर्व था वही अब है। और यही दोनों अर्थ वर्षों बाद भी रहेंगे।
वन्दे मातरम् पर आपत्ति का कारण मैं समझता हूं कि वे वन्दे शब्द का एकमात्र अर्थ अभिवादन करना या प्रणाम करना, इबादत करना ही समझते हैं। जो कि इस शब्द के प्रति घोर अन्याय है। और पचास प्रतिशत झूठ है। इस वन्दे शब्द का अर्थ अभिवादन भी है किन्तु अभिवादन ही नहीं अपितु स्तुति (प्रशंसा, गुणगान) करना भी है। वही दूसरा अर्थ इस गीत में लेना अभीष्ट है।
अतः मेरा निवेदन है कि सभी लोग अपने देश की प्रशंसा करनेवाले गीत को मातृभूमि की स्तुति, प्रशंसा, गुणगान, नामवारी करनेवाला मानकर निःसकोच प्रसन्नता से गावें। अन्य क्षेत्रिय भाषाओं में तो एक शब्द के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं। जैसे मराठी भाषा में ताई का अर्थ है- दीदी (बड़ी बहन) किन्तु हिन्दी भाषा में ताई का अर्थ ताऊ की पत्नी या माता की जेठानी होता है। अतः यदि आप उ.प्र. में किसी युवती को ताई कहकर बुलाएंगे तो वह नाराज होगी, थप्पड़ जड़ देगी या गाली देगी जबकि यदि यही शब्द से महाराष्ट्र में किसी युवती को सम्बोधन करेंगे तो वह प्रसन्नता से उत्तर देगी। किन्तु संस्कृत भाषा में ऐसी भ्रान्ति नहीं होती। स्थिति के अनुसार उसका अर्र्थ स्पष्ट हो जाता है।
यदि आप इस राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृत वन्दे मातरम् के पद-समूह को देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि इस गीत में भारत का नाम नहीं है अतः यह पाकीस्तान, चीन, जापान, अमेरिका, यूरोप, अफ्रिका आदि सभी देशवासियों का अपना राष्ट्रगीत हो सकता है। अर्थात् यह किसी एक देश विशेष याने भारत का ही गीत नहीं अपितु पृथ्वीवासी प्रत्येक देशवासियों के गाने योग्य है। मेरा मान्य प्रधानमन्त्री श्री मोदी जी से निवेदन है कि इस वन्दे मातरम् गीत को संयुक्त राष्ट्र-संघ (यू.एन.) में विश्व राष्ट्र-गीत की मान्यता दिलाने के लिए प्रयत्न करें। क्योंकि हम सब धरतीवासी एक कुटुम्ब हैं (वसुधैव कुटुम्बकम्)। यदि आगे कभी हमें मंगल-ग्रहवासियों या बृहस्पति ग्रहवासियों के साथ मिलने का अवसर मिले तो हम गर्व से कह सकें कि हम ऐसी पृथ्वी ग्रह के वासी हैं जैसी इस गीत में वर्णित है।
इस गीत के शीर्षक के मातरम् शब्द पर भी विवाद है। कि हम भूमि को मातरम् क्यों कहें ? सो इसका अर्थ समझें कि यह शब्द वाचक लुप्तोपमालंकार में है। अर्थात् माता के समान सुख देनेवाली, जीवन देनेवाली भूमि हमारी मातृभूमि है।
इसी सादृश्य से बहुत से शब्द बोले जा ते हैं जैसे नरशार्दूलः, रामसिंह, रणसिह, धर्मसिंह, गोविन्दसिंह आदि। सिक्ख बन्धुओं के नाम ही अधिकतर सिंह उपपद लिए होते हैं। इन सबका अर्थ है सिंह याने शेर के समान पराक्रमी, उत्साही न कि बड़े-बड़े दातों और पंजोंवाला जानवर। आशा है कि सभी मत के लोग सभी देशों के मनुष्य इस वन्दे मातरम् गीत को खुशी-खुशी से गाकर स्वयं भी प्रफुल्लित होंगे।
निवेदक
आचार्य आनन्दप्रकाश
दूरभाष : +91 9989395033
आर्ष शोध संस्थान
अलियाबाद, मंडल शामीरपेट, जि. मेडिचल, 500101 तेलंगाणा
दि. 15 अगस्त 2017, जन्माष्टमी
Namaste
kya aap ashwamedh yajna aur narmedh yajna ke bare mein bata sakte hain aur sri ram ka dhwaj kya tha
hamare kuch article hain is baare me… aap use parhe site par. aapko bahut si jaankaari mil jaayegi
Ati sundar evam sikhshaprada. Is geet ko united nations mein bhi lejaanaa hai. Bharat ke har pradesh har gaon school mein is geet ko maanyataa dein. Jana gana jo geet hai King George V ke liye likhaa gayaa thaa aur geet mein jo panjab sindh aadi jo hai aaj pakistaan mein chala gaya hai.