यद्यपि छोटे से छोटे पदार्थ का भी ऊपर और नीचे भाग माना जा सकता है। सेब और कदम्ब फल का भी कोई भाग नीचे का माना ही जाता है । वैसा ही पृथिवी का भी हिसाब हो सकता है किन्तु आश्चर्य यह है कि पृथिवी के सामने मनुष्य जाति इतनी छोटी है कि इसकी आकृति नहीं के बराबर है। इसी हेतु पृथिवी के अर्धगोलक पर रहने वाला अन्य अर्धगोलक पर रहने वाले को अपने से नीचे समझता है, किन्तु वे दोनों एक ही सीध में हैं, नीचे-ऊपर नहीं । जैसे अमेरिका देश पृथिवी के अर्धगोलक में है और द्वितीय अर्धगोलक में यूरोप, एशिया देश हैं। ये दोनों एक सीध में होने पर भी एक-दूसरे के ऊपर- नीचे प्रतीत होते हैं। भास्कराचार्य इस पर कहते हैं-
योयत्र तिष्ठत्यवनीतलस्थमात्मानमस्या उपरिस्थितञ्च । स मन्यतेऽतः कुचतुर्थसंस्था मिथश्च ते तिर्य्यगिवामनन्ति ॥ पृथिवी के किसी भाग में जो जहाँ है वह अपने को वहाँ ऊपर ही मानता है और दूसरे भागस्थ पुरुष को नीचे समझता है