‘‘सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं’’
श्री यतीन्द्र आर्य की उत्कट इच्छा से मैं कई मास से इस पूरे गीत की खोज में लगा रहा। जब कुँवर सुखलालजी पर विरोधियों ने प्राणघातक आक्रमण किया था, तब पता करने वालों के प्रश्न के उत्तर में इसका प्रथम पद्य बोला था। यह गीत कुँवर जी की रचना नहीं है- जैसा कि प्रायः हम सब समझे बैठे थे। यह किसी पंजाबी आर्य लिखित गीत है। इसके अन्त में ‘धरम’ शब्द से लगता है कि यह लोकप्रिय पंजाबी आर्य गीतकार पं. धर्मवीर की रचना है। कुछ पंक्तियाँ छोड़कर इसे परोपकारी की भेंट किया जाता है। यह लेखराम जी के बलिदान के काल में रचा गया था।
– जिज्ञासु
सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं।
झण्ड दुनिया में उनके गड़े हैं।।
एक लड़का हकीकत नामी,
सार जिसने धरम की थी जानी,
जग में अब तक है जिसकी निशानी,
सीस कटवाने को खुश खड़े हैं।
सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं……………………
बादशाह ने कहा सब तुहारे,
राज दौलत खजाने हमारे
सुन हकीकत यह बोले विचारे,
हम तो इनसे किनारे खड़े हैं।
सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं……………………
यह हकीकत को दौलत न भाई,
बल्कि आािर को है दुःखदायी
कारुँ जैसे ने प्रीत बढ़ाई,
आ नरक में वे आखिर पड़े हैं।
सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं……………………
गुरु गोविन्द के थे दो प्यारे,
गये रणभूमि में वे भी मारे
और जो छोटे थे जो न्यारे,
जिन्दा दीवार में वे गड़े हैं।
सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं…………………..
महर्षि दयानन्द प्यारे,
धरम कारण खा विष सिधारे
सुनके हिल जाते थे दिल हमारे,
ओ3म् जपते वे आगे बढ़े हैं।
सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं………………….
लेखराम धरम का प्यारा,
जिसने धरम पर तन मन वारा
खाया जिस्म पर तेग कटारा,
उठ ‘‘धरम’’ तू याँ क्या करे है?
सीस जिनके धरम पर चढ़े हैं
झण्डे दुनिया में उनके गड़े हैं।।