वैदिक धर्मी बन जाओ
– पं. नन्दलाल निर्भय
अब भारत के नर-नारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
जगतपिता जगदीश्वर का अब, सुमरन करना छोउ़ दिया।
पत्थर की पूजा करते हैं, अधर्म से नाता जोड़ लिया।।
अच्छाई सभी बिसारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।1।।
ऋषियों का यह देश हमारा, सकल विश्व में नाम था।
त्याग तपस्या सदाचार में, भूमण्डल का स्वामी था।।
थे यहाँ सन्त तपधारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।2।।
सोलह वर्ष की कन्याएँ सब, युवती मानी जाती थीं।
युवा पुरुष पच्चीस वर्ष के, के संग याह रचाती थीं।।
वैदिक प्रथा थी जारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।3।।
ऊँच-नीच का, जाति-पाति का, यहाँ नहीं था रोग सुनों।
कर्म प्रधान मानते थे सब, सब करते थे योग सुनों।।
सच्चे थे ईश पुजारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।4।।
परधन धूल समान भारती, मान परम सुख पाते थे।
‘पर नारी को माता मानो’, दुनियां को समझाते थे।।
थे योगी परोपकारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।5।।
युवक-युवतियाँ कावड़ लेने, हरिद्वार को जाते हैं।
मात-पिता भूखे रोते हैं, भारी कष्ट उठाते हैं।।
अज्ञानी पापाचारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।6।।
मद्य मांस का सेवन करना, महापाप है सुनो सभी।
वेद शास्त्र दर्शाते हैं अब, अमृत विष को चुनो सभी।।
अब मर्जी सुनो तुमहारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।7।।
‘नन्दलाल निर्भय’ सब जागो, वैदिक धर्मी बन जाओ।
जीवन सफल बनाओ अपना, व्यर्थ नहीं धक्के खाओ।।
इसमें है भलाई सारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।
अब सभी दुःखी हैं भारी, वैदिक मर्यादा भूल गए।।8।।
-आर्य सदन बहीन, जनपद पलवल, हरियाणा