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वनस्पतिक भोजन व सूर्य किरणों का सेवन करें

वनस्पतिक भोजन व सूर्य किरणों का सेवन करें
डा. अशोक आर्य
हमारे पास सात्विक बुद्धि होगी तब ही हमारे सात्विक गुणॊं में, वृद्धि सम्भव है। इस सात्विक बुद्धि के लिए वनस्पतियों वाला भोजन उत्तम है । इसके साथ ही सूर्य की किरणों का सेवन भी लाभप्रद होता है | इस तथ्य को यजुर्वेद के प्रथम अध्याय का यह बीसवां मन्त्र इस प्रकार उपदेश करता है :-
धान्यमसि धिनुहि देवान प्राणय त्वोदानाय त्वा व्यानाय त्वा । दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो व: सविता हिरण्यपाणि: प्रतिग्रभ्णत्वच्छिद्रेण पाणिना चक्शुषे त्वा महीनां पयोऽसि ॥ यजुर्वेद १.१.२० ॥

मन्त्र में यह बताया गया है कि प्रकाश की हमारे आधारभूत, जीवन में सद्गुण अर्थात उत्तम गुणों को पूर्ण करने वाली बुद्धि की आवश्यकता होती है । यह बुद्धि सात्विक आहार से ही बनती है यह सत्विक आहार क्या होता है ? आओ इस मन्त्र के पांच बिन्दुओं पर चिन्तन करते हुए सात्विक आहार के समबन्ध में जानने का यत्न करें :-
१. पौषण में उत्तम धान्य :-
मन्त्र में कहा गया है कि तूं धान्यम असि अर्थात तूं धान्य है अर्थात तूं वनस्पति है । वनस्पति होने के कारण तेरे अन्दर पौषण की अद्वितीय शक्ति है । इस पौषणीय शक्ति के कारण ही तूं मानव शरीर का बडी उत्तमता से पौषण करता है । तेरे सेवन से ही मानव का यह शरिर स्वस्थ बनता है , स्वस्थ शरीर से ही मन निर्मल होता है जब मानव का शरीर स्वस्थ तथा मन निर्मल हो तो उसकी बुद्धि भी तीव्र हो जाती है । जब खुशी की अवस्था हो तो बुद्धि तेजी से कार्य करती है किन्तु शरीर दुर्बल होने से मन की निर्मलता नही रहती । कष्ट – क्लेष बने रहते हैं, यह सब बुद्धि को तीव्र नहीं होने देते । इस लिए यह मन्त्र उपदेश कर रहा है कि हे प्राणी ! तेरे अन्दर बुद्धि की तीव्रता आवश्यक है । बुद्धि की तीव्रता के लिए मन को निर्मल बना । मन को निर्मल बनाने के लिए एसे उपाय कर कि तेरा यह शरीर स्वस्थ बन सके तथा शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है कि तूं वनस्पतियों से युक्त आहार का सेवन कर क्योंकि इन वनस्पतिक आहार से ही शरीर को पौषण मिलता है ।
क) इस प्रकार अपनी बुद्दि को तीव्र बना कर हे प्राणि! तूं अपने अन्दर दिव्य गुणों को प्रणीत कर , उत्पन्न कर । तूं जब अपने अन्दर सत्व की शुद्धि कर लेगा तब ही सात्विक गुणों का विकास होगा ।
ख) हे वनस्पतियो ! हम तुझे प्राण के विकास के लिए स्वीकार करते हैं । तेरे द्वारा हमारी प्राण शक्ति बढे । हम तुम्हारा सेवन इस लिए करते हैं कि हमारे प्राणों की शक्ति की वृद्धि हो , तेरे सेवन से ही तो हमारे प्राणॊं को गति मिलती है । तूं ही हमारी उदान वायु कॊ ठीक करने वाली है , इस लिए हम तेरा सेवन करते हैं । तेरे उपभोग से ही हमारे गले के अन्दर यह उदान वायु तीक से गति करने वाली होती है । जब हमारे शरर में यह उदान वायु संतुलित हो कर कार्य करती है , तब ही मानव की लम्बी आयु सम्भव हो पाती है ।
इसलिए हे वनस्पतियो ! हम तुझे ग्रहण करते हैं, पूरे शरीर में व्याप्त करते हैं क्योंकि तेरे प्रयोग से ही हमारे समग्र शरीर में व्यान वायु को पैदा करना होता है , जिसके निर्माण का आधार तेरे अन्दर ही होता है । हम जानते हैं कि वनस्पतियों के प्रयोग से हमारा सम्पूर्ण नस – नाडी का जो संस्थान है वह ठीक से कार्य करने लगता है । इससे ही मानवीय मस्तिष्क ठीक से कार्य करने की क्षमता पाता है , अर्थात ठीक बना रहता है ।
२. दीर्घायु के लिए वनस्पतिक भोजन करें :-
मानव को परम पिता परमात्मा ने सौ वर्ष की आयु देकर इस धरती पर भेजा है । इस के साथ ही यह भी आदेश दिया हे कि हे प्राणी ! मैं तुझे इस धरती पर भेज रहा हूं , इस आश्य से कि तूं इस धरती पर कम से कम एक सौ वर्ष तक का जीवन व्यतीत कर सके और वह जीवन भी एसा हो कि जो पूर्ण स्वस्थ रहते हुए हंसी – खुशी के साथ व्यतीत हो , कर्म करते हुए व्यतीत हो । स्पष्ट है कि प्रभु ने सौ वर्ष तक कर्म करने योग्य जीवन मानव को दिया है । इस लिए ही मानव इन वनस्पतियों को प्रयोग में लाता है ताकि उसका यह जीवन स्वस्थ रहते हुए कर्म करते हुए व्यतीत हो । मानव की कामना है कि वह जीवन पर्यन्त स्वस्थ रहते हुए कर्म करते हुए इस जीवन को व्यतीत करे । इसके लिए आवश्यक है कि वह वनस्पतिक भोजन करे । यह वनस्पतिक आहार ही है जो लम्बी आयु देने के साथ ही साथ जीवन को क्रियाशील भी रखता है । इसलिए मन्त्र वनस्पतियों से युक्त भोजन करने का आदेश देता है , सन्देश देता है , उपदेश देता है ।
३. हम प्रतिदिन प्रात: सूर्य किरणों का सेवन करें :-
मन्त्र में जो तीसरी बात कही गई है वह है कि हम मात्र वस्पतियों से युक्त भोजन करके ही सुखी नहीं रह सकते । इसके साथ ही साथ हम सूर्य की किरणॊं के साथ अपना सम्पर्क स्थापित कर अपने आप को स्वस्थ बनावें । इस पर हम विचार करें । प्रभु ने इस मन्त्र के माध्यम से हमें धान्य अर्थात वनस्पतियों के उपभोग की प्रेरणा करते हुए सूर्य किरणों के सम्पर्क में रहने का भी उपदेश किया है । जब तक सूर्य की किरणों का सम्पर्क नहीं हो पाता कोई वनस्पति तब तक पैदा ही नहीं हो सकती । आप अपने बन्द कमरे के अन्दर किसी भी वनस्पति के बीज डाल दीजिये । इन बीजों को उत्तम से उत्तम खाद भी दीजिये तथा प्रति दिन यथा आवश्यक जल भी दीजिये किन्तु आप देखेंगे कि इन बीजों का बडी कठिनाई से अंकुर फ़ूटता है । यह अंकुर भी मुरझाया सा ,टेढा मेढा सा होकर बडे धीरे से चलता है तथा कुछ दिनों के अन्दर ही मर जाता है , सूख जाता है । इससे यह तथ्य सामने आता है कि वनस्पतियों को पैदा करने , बढने व फ़ूलने फ़लने के लिए सूर्य की किरणों के दर्शन आवश्यक है । इसके बिना यह अपने जीवन के परिणाम तक नहीं पहुंच सकतीं ।
कुछ एसा ही मानव जीवन के साथ भी होता है । हम देखते हैं कि जब एक व्यक्ति को बन्द कमरे में रखा जाता है , जिसमें सूर्य की किरणें प्रवेश नहीं कर सकतीं तो यह व्यक्ति कुछ दिनों में ही कमजोर होते हुए पीला पड जाता है तथा धीरे धीरे इस के शरीर में रोग प्रवेश कर जाता है ,उसके अंग ढीले पडने लगते हैं तथा रोगी हो कर कुछ काल में ही उसकी मृत्यु हो जाती है । इसलिए मन्त्र कहता है कि हे प्राणी ! तूं अपने शरीर को सूर्य की किरणॊं के साथ जोड । जब तूं सूर्य के सामने जाता है तो यह सूर्य अपने किरण रुपी निर्दोष हाथों से ( सूर्य की किरणें सब प्रकार के दोषों को , रोगाणुओं को समेट कर नष्ट करने वाली होती हैं , इसलिए इसे निर्दोष हाथों वाली कहा गया है ) जो हितकारक तथा प्राणशक्ति दायी तत्वों को लिए हुए है , वह सब तुझे दे ।
इस प्रकार मन्त्र कहता है कि हे प्राणी ! तूं प्रात; उठ , प्रात; उठकर सुर्याभिमुख हो कर इस की किरणों को ग्रहण कर तथा परम पिता का ध्यान कर , उसका स्मरण । इन हितकारक किरणों से तेरा शरीर रोग मुक्त हो कर स्वस्थ हो जावेगा । स्वस्थ्य उत्तम होने से तूं खुश रहेगा तथा तेरी दीर्घायु होगी और प्रभु की समीपता भी मिलेगी । यह तो हम जानते हैं कि उदय हो रहे सूर्य की किरणों में सब प्रकर के रोगाणुओं का नाश करने की अत्यधिक शक्ति होती है । फ़िर हम निश्चय ही इन किरणों का सेवन करने के लिए प्रात: सूर्योदय के साथ ही अपनी शैय्या को छोड निकल जावें ।
४. हम प्रात: अपनी आंखों को सूर्य किरणें दिखावें :-
सूर्य की यह किरणें हमारी दृष्टी के लिए भी उत्तम होती हैं । इस लिए ही मन्त्र कह रहा है कि हे सूर्य देव ! मैं तुझे अपनी द्रष्टी शक्ति की रक्शा के लिए ग्रहण करता हूं । जब हम इस पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि वास्तव में सूर्य हमारी आंखों में ही निवास करता है । यह ही हमारी आंखों का स्वामी है । यदि सूर्य न हो तो हमारी आंखों का भी कोई प्रयोजन नहीं रह जाता क्योंकि हमारी आंख तब ही देख पाती है , जब प्रकाश हो । अन्धेरे में तो यह देख ही नहीं सकती । जब प्रात; काल की सूर्य की शीतल किरणें इन आंखों पर पडती हैं तो आंखों को भी शीतलता मिलती है । इन्हें भी आराम मिलता है तथा इन में देखने की शक्ति बढती है ।
सूर्य की किरणों से हमारी आंखों की देखने की शक्ति बढती है इसलिए ही मन्त्र के माध्यम से मैं यह कह रहा हूं कि जब मैं सूर्य की किरणों को देखता हूं तो मेरी आंखों की ज्योति बढती है। अत: मैं सूर्य की और मुंह करके बैठ जाता हूं तो सूर्य की यह निर्मल , पवित्र किरणें मेरी आंखों में मेरी दृष्टी शक्ति का प्रवेश करवाती हैं । जब हम ठीक प्रकार से अपनी आंखों को सूर्य की किरणों का प्रवेश कराते हैं तो हमारी आंख की सब निर्बलताएं , सब दोष , सब रोग दूर हो जाते हैं ।
५. सूर्य किरणों से हमारे सब अंगों में शक्ति आती है :-
यह सूर्य ही है , जो माननीय है , तूं पूजनीय है , तूं ही मानव की सब प्रकार की शक्तियों को बढाने वाला है ।
इन शब्दों में यह मन्त्र हमें बता रहा है कि सूर्य के माधयम से ही जीव मात्र जीवित है । जीव को जीव तब ही कहा जाता है क्योंकि उसमें जीवन है । यदि इस में जीवन न हो तो इसे जीव कह ही नहीं सकते । जीव में जो जोवनीय शक्ति है , उस शक्ति का प्रमुख आधार सूर्य ही है । इस लिए यहां कहा गया है कि तूं ही सब शक्तियों को देने वाला है ।
जब हम वेद के इस तथ्य पर विचार करते हैं तो हम पाते हैं कि हमारे जितने भी भोज्य पदार्थ हैं , जिन के उपभोग से हमारी क्षुधा शान्त होती है तथा हमारा जीवन आगे बढता है , उन सब की उत्पति इस सूर्य की किरणों ही के कारण होती है । हम जो प्रतिदिन अपनी दिनचर्या करते हैं , स्वाध्याय करते हैं , व्यापार करते हैं अथवा अपने जीवन का कोई भी व्यवसाय करते हैं तो वह भी इन किरणों के सहयोग से ही करते हैं । हम जो कुछ भी देखते हैं , वह सब भी सूर्य की इन किरणों का ही परिणाम है । इस सब से एक तथ्य जो सामने आता है , वह यह है कि सूर्य ही हमारे सब कार्यों का केन्द्र है । यदि सूर्य न होता तो हम अपने यह क्रिया क्लाप तो क्या , हम अपने जीवन के विषय में भी कुछ नहीं कह सकते , कुछ नहीं सोच सकते ।
सूर्य हमारी सब शक्तियों का अध्यापन करने वाला है । सूर्य ही हमारी सब शक्तियों को बढाने वाला है । इस की किरणों के सम्पर्क में आने से ही हमारे शरीर के सब अंग प्रत्यंग बढते हैं , फ़लते फ़ूलते हैं तथा टीठी क से कार्य करते हैं । इन को शक्ति मिलती है । इस लिए सूर्य का सेवन सूर्य का सम्पर्क हमारे लिए आवश्यक है ।

डा अशोक आर्य