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हे प्रभु हमें स्वस्थ्य व बलकारक भोजन दो

ओउम
हे प्रभु हमें स्वस्थ्य व बलकारक भोजन दो
डा. अशोक आर्य
भोजन मानव की ही नहीं प्रत्येक प्राणी की एक एसी आवश्यकता है , जिसके बिना जीवन ही sambhav नहीं | इस लिए प्रत्येक प्राणी का प्रयास होता है कि उसे उतम भोजन प्राप्त हो | एसा भोजन वह उपभोग में लावे कि जिससे उस की न केवल क्षुधा की ही पूर्ति हो अपितु उसका स्वास्थ्य भी उतम हो तथा शरीर में बल भी आवे | अत्यंत स्वादिष्ट ही नहीं अत्यंत पौष्टिक भोजन करने की अभिलाषा प्रत्येक प्राणी अपने में संजोये रहता है | इस समबन्ध में वेद ने भी हमें बड़े सुन्दर शब्दों में प्रेरणा दी है | यजुर्वेद के अध्याय ११ के मन्त्र संख्या ८३ में इस प्रकार परमपिता परमात्मा ने हमें उपदेश किया है : –
ओउम अन्नपते$न्नस्य नो देह्यमीवस्य shushmin: |
प्रप्रं दातारं तारिष उर्ज्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे || यजुर्वेद ११.८३ ||
इस मन्त्र में चार बातों की ओर विशेष ध्यान आकृष्ट किया गया है | यह चार बातें इस प्रकार हैं : –
(१) अन्न अर्थात समस्त भोग्य पदार्थों का स्वामी परमपिता परमात्मा है –
हम जो अन्न का उपभोग करते हैं , उस अन्न का अधिपति , उस अन्न का स्वामी, उस अन्न का maalik हमारा वह परम पिता, सब से बड़ा पिता, जो हम सब का जन्मदाता तथा हम सब का पालक है , उस परमपिता की अपार कृपा से ही हमें यह अन्न मिलता है | इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम इसे परमपिता की अपार कृपा मानते हुए स्वीकार करें तथा इसे ख़राब न होने दें , इसमें न्यूनता न आने दें तथा अपनी थाली में उतना ही लें, जिताना हम ने खाना हो, जूठन कभी मत छोडें | यह प्रभु का प्रसाद होता है , इसे जूठन के स्वरूप छोड़ना महापाप होता है | प्रभु की दी हुयी वस्तु का तिरस्कार होता है तथा जो अन्न संसार के दूसरे प्राणी के ग्रहण के योग्य होता है, उसे जूठन स्वरूप छोड़ देना भी एक महाव्याधि ही तो है |
(२) वही अन्न सेवन में लावें जो svasth रखते हुए बल प्रदान करे : –
संसार का प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि वह सदा svasth रहे | उसे जीवन में कभी कोई रोग न आवे | वह सदा निरोग रहे | svasth जीवन में ही मानव प्रसन्न रह सकता है | प्रसन्नता मानव जीवन की प्रथम आवश्यकता होती है | प्रसन्न व प्रफुल्लित व्यक्ति ही न केवल जीवन व्यापार को अच्छे से कर सकता है अपितु उसे ठीक से संपन्न कर धन एश्वर्य को भी प्राप्त कर सकता है | संसार में कौन सा प्राणी एसा मिलेगा, जो धन की अभिलाषा न रखता हो ? अर्थात सब प्राणी मनुष्य धन प्राप्ति की इच्छा , कामना करते हैं | इस के लिए उनका खान पान , आहार विहार एसा होना आवश्यक है, जिस से उसे अच्छा स्वास्थ्य मिल सके तथा वह तीव्र गति से प्रभु प्रार्थना के साथ ही साथ अधिकतम धन अर्जन कर सके |
मानव की यह भी अभिलाषा रहती है कि परमपिता परमात्मा की महती अनुकम्पा उस पर बनी रहे ताकि वह आजीवन svasth रहने के साथ ही साथ बलवान भी रहे | svasth तो है किन्तु शरीर इतना सशक्त नहीं है कि वह अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए खुले रूप से यत्न कर सके तो एसे स्वस्थ्य शरीर का भी कोई विशेष लाभ नहीं होता | इसलिए मन्त्र में यह कहा गया है कि svasth शरीर के साथ ही साथ हमारा यह शरीर बलिष्ठ भी हो, ताकि हम अपनी आवश्यकताओं को स्वयं ही पूर्ण करने में सक्षम हों | svasth शरीर में ही जीवन की खुशियाँ छुपी रहती हैं , svasth शरीर ही सब प्रकार की प्रसन्नताओं को दिलाने वाला होता है | जब शरीर svasth नहीं , बलिष्ठ नहीं तो मन बुझा बुझा सा रहता है | बुझे मन से जीवन का कोई भी कार्य अच्छे से संपन्न नहीं होता | जब कार्य ही अच्छे से नहीं हो रहा तो हम धन अर्जन कैसे कर सकते हैं ? अत: अधिकतम धन की प्राप्ति के लिए, एशवर्य की प्राप्ति के लिए, सुखों की प्राप्ति के लिए हम परमपिता से उतमस्वास्थ्य की प्रार्थना करते हुए एसा भोजन करते है कि जिससे हम न केवल svasth ही रहे अपितु बलवान भी बनें |
(३) जिस साधन से हम अन्न प्राप्त करते है , उसका kratgya हों : –
मानव स्वार्थी होता है | वह साम,दाम, दंड, भेद से धन एशवर्य तो प्राप्त करने का यत्न करता है किन्तु यह सब प्राप्त करने के पश्चात उस प्रभु का धन्यवाद करना भूल जाता है , उस प्रभु का शुक्रिया करने में प्रमाद कर जाता है , जिसकी महती कृपा से यह सब सुख , साधन, धन,एश्वर्य प्राप्त किया होता है | इस लिए मन्त्र कहता है कि हम सब सुखों को पाने की न केवल इच्छा ही करें अपितु यह सब पाने के पश्चात, यह सब कुछ उपलब्ध कराने वाले उस परमपिता परमात्मा को हम भूलें मत अपितु उस दाता को स्मरण रखें , उसका धन्यवाद करें | वह हम सब का दाता है | जीवन में अनेक बार हम ने उस से कुछ न कुछ माँगते ही रहना है | यदि हम उसका धन्यवाद ही न करेंगे तो भविष्य में हम उससे कुछ ओर मांगना चाहेगे तो कैसे मांगेंगे ? अत: उस दाता का धन्यवाद करना कभी न भूलें |
(4) प्रभु से प्रार्थना करें कि हमारे परिजनों व पशुओं को भी बलकारक भोजन मिले : –
मानव अपने स्वार्थ के कारण स्वयं तो उतामोतम भोग्य प्राप्त करना चाहता है किन्तु दूसरों के सुखों की ओर ध्यान ही नहीं देता | यह तो इतना स्वार्थी है कि मन में यहाँ तक सोचता है कि मेरी तृप्ति ही नहीं होनी चाहिए अपितु मेरे पास अतिरिक्त धन भी इतना होना चाहिए कि मेरे कोष के उपर से छलकता हुआ दिखाई दे , इस के लिए चाहे दूसरे के सुखों का अंत ही kyon न करना pade , यहाँ तक कि दूसरों का बढ ही kyon न करना pade | जब हम अपनी संपत्ति को badhane के लिए दूसरों के नाश तक की kamana करेंगे , प्रभु के बनाए अन्य praniyon के जीवन को भी नष्ट करने पर भय नहीं खायेंगे तो वह प्रभु निश्चित रूप से ही हमसे rusht होकर हमें दण्डित करेगा | इससे हमारी सुख सुविधा में baadha आवेगी | इस लिए मन्त्र कहता है की हे प्राणी ! प्रभु की अपार कृपा से tujhe यह atyadhik धन sampati mili है , इसे tu जितना अपने लिए उपयोगी , अपने लिए आवश्यक समझता है , अपने उपभोग के लिए रख तथा शेष धन से न केवल अपनेपरिजनों को बाँट कर उनकी तृप्ति कर अपितु एसे praniyon ko , पशु pakshiyon को भी बाँट दे जिन को abhi भोजन नहीं मिला | इस प्रकार in शब्दों में मन्त्र मानव को दान करने की , दूसरों का सहयोग करने की , sah astitv की भी प्रेरणा देता है | जब मनुष्य दान करेगा , दूसरों की आवश्यकताओं की पूर्ति में लगेगा तो उसे sammaan मिलेगा, yash मिलेगा, kirti milegi | यह सब उस प्रभु की महती कृपा का ही फल है |
अत: मन्त्र हमें यह उपदेश दे रहा है कि हम उस अन्न को ग्रहण करें जो हमें svasth रखे तथा बलवान बनावे, जिस समाज के sahyog से यह अन्न प्राप्त करो उस समाज का धन्यवाद अवश्य करें तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही साथ अन्य praniyon की सहायता इस अन्न से करें | इस सब के साथ ही साथ यह भी मत भूलें कि यह जी कुछ भी मिला है , वह उस परमात्मा की महती कृपा का ही परिणाम है तथा वह परमात्मा ही इस सब का स्वामी है | इस लिए सदा उस प्रभु को याद रखें |
हमारा जीवन जिस अन्न के कारण बना हुआ है , उस अन्न की सुरक्षा का भी हम सदा ध्यान रखें | आज कल हमारे परिवारों में जिस प्रकार अन्न का तिरस्कार हो रहा है, नाश हो रहा है , वह पहले कभी न होता था | अन्न भंडार में अन्न को जीव नष्ट कर रहे हैं, साफ़ करते समय बहुत सा अन्न कूड़े में डाल देते हैं , पैरों में फैंक देते है | भोजन बनाते समय बहुत सा अन्न नष्ट कर देते हैं तथा खाते समय भी हम एक भाग जूठन के रूप में ही फैंक देते हैं | इतने अन्न से , जो हमने नष्ट कर दिया , अन्य कितने लोग तृप्त हो जाते | इसलिए मन्त्र अन्न की सुरक्षा व बचत के उपाय करने के लिए भी प्रेरित करता है |
उपनिषदों में भी अन्न निंदा को रोकने के लिए इस प्रकार उपदेश किया है :-
अन्नं न निन्द्यात तद वरतम |
अन्न का तिरस्कार न करने का, निंदा न करने का अथवा नष्ट न करने का प्रत्येक मनुष्य को व्रत लेना चाहिए , प्रतिज्ञा करना चाहिए |
पारस्कर सूत्र में भी इस प्रकार कहा गया ही :-
अन्नं साम्राज्यनामअधिपति: | पारस्कर ग्र्ह्यसुत्र १.५.१० |
जिस राजा के राज्य में प्रजा अन्न के अभाव से दुखी नहीं होती , वह राज्य ही स्थिर होता है | अन्न के अभाव में भूखे लोग दुखी हो कर ,शोषण करने वाले बड़े बड़े राज्यों को भो नष्ट करने का कारण बनते हैं | जब व्यक्ति भूखा होता है तो वह किसी भी ढंग से अपने उदर की तृप्ति के साधन धुन्धता है | इस के लिए चोरी , डाका, क़त्ल आदि उसके मार्ग में बाधा नहीं होता | इस प्रकार राज्य में वह अराजकता पैदा कर देता है तथा उस राज्य के नष्ट का कारण बनता है | इस लिए राजा का भी करे यह कर्तव्य हो जाता है कि अपने राज्य को स्थिर बनाए रखने के लिए प्रजा की प्रसन्नता का तथा उसकी तृप्ति का भी भर पूर प्रयास करो |
upanishad तो यहाँ तक कहता है कि अन्न को ही ब्रह्म samajho | अन्न का यथावश्यक प्रयोग करो , उसका दुरुपयोग कभी मत करो | जो भोजनार्थ अन्न तुम्हारी थाली में परोसा गया है , यदि वह दोषपूर्ण नहीं है तो उसे बिना किसी त्रुटी निकाले प्रसन्नता पूर्वक उपभोग करें | अन्न को ब्रह्म कहने का तथा उसकी उपासना करने का यह ही अभिप्राय है | भाहूत से लोग एसे भी hote हैं जो अन्न में dosh निकलते रहते हैं | इस में मिर्च कम है या अधिक है, यह स्वादिष्ट नहीं है आदि अनेक प्रकार से उसका तिरस्कार करते रहते हैं तथा मन मारकर भोजन करते हैं , एसे व्यक्ति को अन्न का पूर्ण लाभ नहीं मिलता, मात्र पेट भरने का कार्य वह अन्न कर पाता है | ठीक से पौषण नहीं कर पाता | अत: अन्न का तिरस्कार मत करो तथा जो मिला है, उसे प्रसन्नता से ग्रहण करो तो वह ठीक से पौषण करेगा |
मन्त्र हमें यह ही उपदेश करता है कि हम svaasthyprad व पौष्टिक भोजन करें | जिस samaj के sahyog से मिला है, उनका धन्यवाद करें, बाँट कर खावें , जो मिला है, उसे प्रभु का उपहार मानकर प्रसन्नता पूर्वक खावें ,उसमें न्युन्तातायें न निकालें तो यह अन्न हमारे लिए शक्तिवर्धक व स्वास्थ्य को बढ़ानेवाला होगा |

डा. अशोक आर्य