अनन्त कोटि सृष्टि का प्रलय एक साथ होता है या अलग-अलग
(एक वैज्ञानिक संगोष्ठी के तथ्यात्मक विचार)
-ओमप्रकाश आर्य
महर्षि दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश के अष्टमसमुल्लास में सृष्टि-उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय विषय पर व्याखया करते हुए लिखते हैं- ‘‘यह सब जगत् सृष्टि से पहले अन्धकार से आवृत्त, रात्रिरूप, जानने के अयोग्य, आकाशरूप सब जगत् तथा तुच्छ अर्थात् अनन्त परमेश्वर के सममुख एकदेशी आच्छादित था।’’ वे सत्यार्थ प्रकाश के नवमसमुल्लास में लिखते हैं-‘‘वह मुक्त जीव अनन्त व्यापक ब्रह्म में स्वच्छन्द घूमता, शुद्ध भाव से सब सृष्टि को देखता, अन्य मुक्तों के साथ मिलता, सृष्टिविद्या को क्रम से देखता हुआ सब लोक-लोकान्तरों में अर्थात् जितने ये लोक दीखते हैं और नहीं दीखते उन सब में घूमता है। वह सब पदार्थों को- जो कि उसके ज्ञान के आगे हैं- सबको देखता है। जितना ज्ञान अधिक होता है उसको उतना ही आनन्द अधिक होता है।’’
स्वामी जी के कथनानुसार ‘‘यह सब जगत् सृष्टि से पहले अन्धकार से आवृत्त था।’’ जरा विचार करें, यह सब जगत् अर्थात् हम जिस सृष्टि में रह रहे हैं उसी की बात है। सृष्टि का कहीं आदि-अन्त है या नहीं-यह आज तक किसी वैज्ञानिक ने घोषणा नहीं की, अपितु इतना जरूर कहते हैं कि आकाशगंगा और निहारिका का निरन्तर विस्तार हो रहा है। वे यह भी मानते हैं कि बहुत से ऐसे तारे हैं, जिनका प्रकाश अभी तक करोड़ों वर्षों में पृथ्वी तक पहुँचा ही नहीं है। इस आधार पर सृष्टि का विस्तार अनन्त है। इसे परमात्मा ही जाने, यह मनुष्य की कल्पनाशक्ति से परे है।
हमारी पृथ्वी, हमारा सौरमण्डल, हमारी आकाशगंगा, असंखय आकाशगंगाओं से बनी निहारिकाएँ, निहारिकाओं से परे भी कुछ होगा। इस आधार पर अनन्त कोटि सृष्टि है। महर्षि दयानन्द के शबदों पर ध्यान दें- ‘‘अनन्त परमेश्वर के सममुख एकदेशी आच्छादित था।’’ यह एकदेशी शबद ध्यातव्य है। एकदेशी का विलोम सर्वदेशी होता है। प्रलय में सृष्टि एकदेशी अन्धकार से आवृत्त थी, सर्वदेशी नहीं। परमात्मा सर्वदेशी है। प्रलय एकदेशी है। चिन्तन करें-सब एक साथ बनता नहीं तो सब कुछ एक साथ बिगड़ेगा कैसे? अगर हम अनन्त कोटि सृष्टि का प्रलय एक साथ मान लेंगे तो वैदिक सिद्धान्त असत्य हो जाएगा। अब महर्षि दयानन्द सरस्वती के शबदों पर विचार करें-‘‘वह मुक्त-जीव सब सृष्टि को देखता है, उन सबमें घूमता है।’’ जब हम यह मान लेंगे कि सृष्टि का प्रलय एक साथ होता है और वह प्रलय चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष तक रहता है तो इतने काल तक मुक्त-जीव कुछ देखेगा नहीं, कहीं घूमेगा नहीं? फिर तो उसकी स्थिति बद्ध जीवों जैसी हो जाएगी। सृष्टि का प्रलय एक साथ न मानने पर मुक्त जीवों के लिए कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि जहाँ प्रलय नहीं होगी, मुक्त आत्माएँ वहाँ चली जाएँगी। ऐसा मानने पर हमारे वैदिक सिद्धान्त पर कोई आँच नहीं आती।
महर्षि दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश के नवमसमुल्लास में लिखते हैं-‘‘मोक्ष में जीवात्मा जब सुनना चाहता है तब श्रोत्र, स्पर्श करना चाहता है तब त्वचा, देखने के संकल्प से चक्षु मुक्ति में हो जाता है। यह उसका स्वाभाविक शुद्ध गुण है।’’ यदि हम सृष्टि का प्रलय एक साथ मान लेंगे तो क्या चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष तक मुक्त जीवात्मा कुछ देखना नहीं चाहेगा। इतने समय तक अन्धकार में निश्चेष्ट बना रहेगा क्या? फिर उसकी मुक्ति क्या हुई? एकदेशी प्रलय मानने पर उसके लिए कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड में वह भ्रमण करेगा। महर्षि का एकदेशी शबद ही यह सिद्ध कर रहा है कि सपूर्ण सृष्टि का प्रलय एक साथ नहीं होता।
इस समबन्ध में आर्य समाज रावतभाटा में दिनांक 2-10-2016 को एक वैज्ञानिक संगोष्ठी हुई। उस संगोष्ठी में विज्ञान अध्येताओं के विचार सार रूप में इस लेख में दिया जा रहा है। यदि किसी को कोई शंका या प्रश्न करना हो तो सीधे उनसे फोन से पूछ सकेंगे। अध्येताओं के विचार इस प्रकार हैं-
- विनोद कुमार त्यागी एम.एस.सी. फिजिक्स, प्रधानाचार्य, फो. 09461148908-
‘‘एक सूर्य के ग्रह, उपग्रह मिलकर एक ब्रह्माण्ड कहलाता है।’’ एक सौरमण्डल ही एक ब्रह्माण्ड है। हमारी आकाशगंगा में सूर्य जैसे लाखों नक्षत्र खोजे जा चुके हैं तथा ऐसी करोड़ों आकाशगंगाएँ इस अनन्त सृष्टि में विद्यमान हैं। अतः इस सृष्टि में अनेक ब्रह्माण्ड स्थित हैं। सभी लोक-लोकान्तरों को ब्रह्माण्ड कहा जाता है। सृष्टि-निर्माण से पूर्व सपूर्ण प्रकृति पदार्थ एक बिलियन प्रकाशवर्ष त्रिज्या वाले अण्डाकार आकार के रूप में अन्तरिक्ष में विद्यमान था। किसी कारणवश इस अण्डाकार आकार में विस्फोट हुआ जिससे सपूर्ण प्रकृति पदार्थ अन्तरिक्ष में पिण्डरूप में बिखर गए तथा प्रकाश के वेग से दूर जा रहे हैं। विस्फोट के दौरान जलवाष्प भी अन्तरिक्ष में फैल गई। बड़े पिण्डों ने तारे तथा छोटे-छोटे पिण्ड ग्रह एवं उपग्रह के रूप में व्यवस्थित हो गए। बहुत लमबी अवधि बीत जाने के पश्चात् लोक-लोकान्तर ग्रह, उपग्रह में परमाणुओं के मध्य जब आकर्षण के कारण परमाणु एक निश्चित दूरी से कम दूरी पर आते हैं तो उनमें प्रतिकर्षण प्रारमभ हो जाता है जिसके कारण लोक-लोकान्तर सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, उपग्रह पुनः परमाणुओं में विभक्त हो जाते हैं। इस प्रकार ब्रह्माण्ड प्रलय की स्थिति प्राप्त कर लेता है।
लोक-लोकान्तरों की उत्पत्ति से पूर्व प्रकृति पदार्थ द्रव्य के रूप में विद्यमान था। यह कारण द्रव्य फैला हुआ होने पर भी परमात्मा के एक अंश मात्र में ही था और अनन्त आकाश के एक देश में ही सीमित था। उससे विदित होता है कि समस्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति और प्रलय एक साथ नहीं होती। अनन्त लोक-लोकान्तरों का प्रलय एक साथ नहीं अलग-अलग होता है। यह क्रम चलता ही रहता है।’’
- रेशम पाल सिंह, प्रोजेक्ट इंजीनियर गुणवत्ता आश्वासन सिविल, राजस्थान परमाणु बिजलीघर, फो. 09414185254- ‘‘इस अनन्त ब्रह्माण्ड का आधार क्या है? यह किस प्रकार से एवं क्यों हैं? इसको जानने की मनुष्य की सदा से जिज्ञासा रही है। इसका प्रारमभ किस प्रकार एवं कब हुआ एवं इसका अन्त क्या होगा। इस बारे में वैज्ञानिकों की एक राय नहीं है। कुछ वैज्ञानिकों की पहले यह अवधारणा थी कि यह ब्रह्माण्ड निश्चित है एवं सदा से इसी प्रकार रहा है एवं रहेगा, लेकिन आधुनिक विज्ञान की जो ज्यादातर मान्यता है उसके अनुसार इस ब्रह्माण्ड का निर्माण बिग बैंग (महाविस्फोट) से शुरू हुआ। यह विस्फोट एक बिन्दु से शुरू हुआ। कालान्तर में मूलाभूत कणों से पदार्थ पैदा हुआ एवं पदार्थों के संयोग से विभिन्न लोक-लोकान्तर, सूर्य, आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ। इस अन्तरिक्ष में केवल 5% क्षेत्र में सभी पदार्थ आ जाते हैं एवं 95% क्षेत्र में ऊर्जा विद्यमान है। इसका निरन्तर विस्तार space time में हो रहा है। ब्रह्मांड में विद्यमान सभी पदार्थ एवं ऊर्जा का अभी तक ज्ञान नहीं हो पाया है। विज्ञान की खोज अभी तक निर्णायक नहीं है कि मूलभूत कण जिनसे सभी पदार्थ बनते हैं क्या है एवं उनका निर्माण किस प्रकार हुआ? हर कण का प्रतिकण है। कण एवं प्रतिकण मिलने से वे नष्ट हो जाते हैं तथा ऊर्जा में बदल जाते हैं। भौतिक जगत् के निर्माण के लिए कण शेष क्यों हैं? मूलभूत अवयव कण हैं या तन्तु? क्या अभी तक ज्ञात मूलभूत कण क्वार्क, इलैक्ट्रान, लेपटान आदि हैं या ये भी किन्हीं कणों से बने हैं? द्रव्यमान रहित कणों से द्रव्यमान किस प्रकार निर्मित होता है? बिग बैंग के पहले क्या विद्यमान था? कोई भी अवधारणा, विचार, दर्शन, जब तक ज्ञात भौतिकी सिद्धान्त, प्रयोगों के आधार पर सुनिश्चित नहीं किए जाते, उसे विज्ञान नहीं मानता। यह नियम है कि अभाव से भाव पैदा नहीं होता एवं प्रत्येक कार्य का कोई कारण होता है। प्रकृति का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। प्रलय ईश्वरीय व्यवस्था है। यह विज्ञान के नियमों से परे की बात है।
- रमेश चन्द्र भाट, टेक्निकल सुपरवाइजर- ए (ड्राइंग) राजस्थान परमाणु बिजलीघर, फो. 09413356728- बिग बैंग या महाविस्फोट से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति अत्यधिक गर्म व घने बिन्दु के रूप में हुई जिसके ताप व घनत्व अवर्णनीय हैं। 10-34
सेकेंड में यह बिन्दु प्रकाश की गति से भी तेजी से फैलते हुए अतिसूक्ष्म परमाणु के कण से बढ़कर गोल्फ की गेंद जितना बड़ा हो गया। नासा के अनुसार इसके बाद ब्रह्मांड का विस्तार धीमी गति से होने लगा। आकाश के विस्तार के साथ ब्रह्मांड के पदार्थ का ताप कम होता गया और एक सेकेंड में वह न्यूट्रान, प्रोटोन, इलेट्रोन, एंटी इलेक्ट्रोन, फोटोन व न्यूट्रियान्स से भर गया। शुरुआती करीब 3 लाख 20 वर्षों तक ब्रह्माण्ड इतना उष्ण था जिससे कि प्रकाश की चमक भी नहीं निकलती थी। फ्रांस के राष्ट्रीय स्पेस रिसर्च केन्द्र के अनुसार उत्पत्ति के ताप से परमाणुओं को इतनी जोर से धक्का लगा कि वे टूटकर घने प्लाज्मा में बदल गए। यह प्लाज्मा न्यूट्रान, प्रोटोन व इलेक्ट्रोन के अपारदर्शी सूप जैसा दिखता था और कोहरे की तरह छितराता हुआ दिखता था।
करीब 40करोड़ वर्ष बाद 500 करोड़ लमबे रिआयोनाइजेशन काल में ब्रह्मांड जागतिक अन्धकार से निकला। गैसों का समूह मिलकर तारे और नीहारिकाएँ बनने लगीं। इनकी ऊर्जा से भरी पराबैंगनी रोशनी के आयोनाइजेशन से अधिकतर प्राकृतिक हाइड्रोजन नष्ट हो गई। अब ब्रह्मांड के विस्तार की गति और कम हो गई थी क्योंकि उसका गुरुत्वाकर्षण ही उसे वापस खींचने लगा था। नासा के अनुसार महाविस्फोट के 500 से 600 करोड़ वर्ष बाद रहस्यमयी बल जिसे आज डार्क ऊर्जा के रूप में जाना जाता है ने फिर से ब्रह्मांड के विस्तार को गति प्रदान की और यह अवस्था आज तक जारी है। महाविस्फोट के करीब 600 करोड़ वर्ष बाद हमारे सौर-मंडल का निर्माण हुआ।
वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की आयु 13 अरब 80 करोड़ वर्ष है जबकि सौर-मण्डल की आयु करीब 4 अरब 60 करोड़ वर्ष आंकी गई है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड का 4.6% भाग परमाणुओं से बना है। 23% डार्क मैटर से बना है जो कि दुर्लभ सब-एटोमिक पार्टिकल है और जो साधारण पदार्थ से बहुत कम समपर्क करता है। बाकी का 72% भाग डार्क एनर्जी से बना है। यही डार्क एनर्जी ब्रह्मांड के विस्तार को त्वरण प्रदान कर रही है।
ब्रह्मांड के फैलाने वाले बल को डार्क एनर्जी नाम दिया गया है जो कि अभी भी विज्ञान के लिए एक बहुत बड़ी पहेली बना हुआ है। ब्रह्मांड का आकार इसके विस्तार की गति और गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव पर निर्भर करता है। गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव निर्भर करता है कि ब्रह्मांड में आप कितने घनत्व वाले स्थान पर हैं। नासा के अनुसार ब्रह्मांड अनन्त नहीं है लेकिन इसका कोई सिरा अभी तक नहीं मिला है। ब्रह्मांड, पृथ्वी व सौरमंडल के क्रमिक विकास को जानने के लिए उष्मागतिकी (थर्मोडायनामिक) के दूसरे नियम जिसमें यह बताया गया है कि प्राकृतिक रूप से उष्मा हमेशा गर्म से ठंडे पदार्थ में स्थानांतरित होती है व इसका विपरीत नहीं हो सकता और कार्य के दौरान जो ऊष्मा काम में नहीं आती, वह कार्य करने के लिए बची रहती है। साधारण शबदों में कहें तो ब्रह्मांड अपने पूरे जीवनचक्र में महाविस्फोट द्वारा पुनर्जन्म लेने से लेकर प्रारंभिक ऊर्जा की स्थिति को प्राप्त करने तक हर आवश्यक भौतिक नियम का पालन करता है।
- योगेश आर्य, प्रवक्ता रसायन विज्ञान, परमाणु ऊर्जा केन्द्रीय विद्यालय क्र. 4 रावतभाटा, फो. 09413945098-ब्रह्माण्ड के प्रलय की प्रक्रिया को समझने के लिये यह समझना आवश्यक है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रारमभ में महाविस्फोट की घटना हुई। उसके बाद से ब्रह्माण्ड विस्तृत होता चला गया और आज भी विस्तार हो रहा है। हमारी आकाशगंगा का नाम मंदाकिनी है तथा हमारा सौरमंडल इसी आकाशगंगा में हैं। महाविस्फोट में अत्यधिक ऊष्मा का उत्सर्जन हुआ जिसके फलस्वरूप आकाशीय पिंड एक दूसरे से दूर जाने लगे। उस समय ब्रह्माण्ड केवल हाइड्रोजन एवं हीलियम परमाणु से निर्मित था तथा इसी महाविस्फोट से आकाशीय पिण्ड जैसे नक्षत्र (तारे), ग्रह एवं उपग्रह बने। धीरे-धीरे प्रत्येक नक्षत्र का अपना मंडल बनने का मुखय कारण उसमें गुरुत्व का उत्पन्न होना है। इसी गुरुत्व के कारण प्रत्येक नक्षत्र के ग्रह उसके चारों ओर चक्कर लगाते हैं।
हमारे सूर्य की आयु 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है। अभी तक लगभग 2 अरब वर्ष हो चुके हैं। इसी प्रकार प्रत्येक नक्षत्र की आयु अलग-अलग होती है। हर नक्षत्र का अपना एक जीवनचक्र होता है। प्रत्येक नक्षत्र अपने जीवनचक्र की अंतिम अवस्था में जब पहुँचता है तो उसे प्रलय की अवस्था कह सकते हैं। नक्षत्र की इस अवस्था को बलैक होल कहते हैं। नक्षत्र (तारा) की अवस्थाएँ अग्रलिखित हैं, जैसे- प्रारंभिक अवस्था नेवुला होती है। यह जन्म की अवस्था है। इस अवस्था में हाइड्रोजन गैसे एवं धूल के बादल होते हैं। यह बहुत तेज चमकता है क्योंकि इसमें नाभिकीय संलयन की क्रिया प्रारमभिक अवस्था में होती है। नेवुला अवस्था के बाद नक्षत्र एक पूर्ण तारा (नक्षत्र) बन जाता है। इसमें तारा अपनी पूर्ण अवस्था में होता है। इसके पश्चात् किसी नक्षत्र की प्रौढ़ावस्था सुपर नोवा की प्रथम अवस्था है। यदि किसी नक्षत्र का द्रव्यमान एवं आकार हमारे सूर्य नक्षत्र के समान है तो वह प्रौढ़ावस्था में फूलने लगता है और लाल तारा बनता है। यदि कोई तारा हमारे सूर्य से 100 गुना बड़ा होता है तो वह प्रौढ़ावस्था में लाल विशाल तारा (रेड मेंट स्टार) बनता है। यदि कोई तारा हमारे सूर्य के व्यास का (परिधि) 10% होता है तो वह लाल बौना तारा बनता है। ये सभी तारे (जैसे-लाल बौना तारा, लाल विशाल तारा या लाल तारा) का जीवन बहुत बड़ा होता है। लगभग 100 बिलियन वर्ष। (यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि जो मैंने सूर्य की आयु 4 अरब वर्ष बताई वह इसकी इसी अवस्था की आयु है क्योंकि हमारा सूर्य 4 अरब वर्ष के पश्चात् लाल तारा की अवस्था में आ जाएगा तो इसकी आयु 100 बिलियन यानी 10 अरब वर्ष होगी।)
कुछ तारे जो हमारे सूर्य की तुलना में बहुत छोटे होते हैं (लगभग सूर्य के व्यास के 1% व्यास वाले तारे) वे प्रौढ़ावस्था में सफेद बौने तारे बनते हैं।
किसी नक्षत्र की अन्तिम अवस्थाएँ- सुपरनोवा (ii) न्यूट्रान तारा और अन्त में बलैक होल (काला गड्ढा) है। यदि किसी नक्षत्र का द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान से 10 गुना अधिक है तो प्रौढ़ावस्था के पश्चात् उसमें नाभिकीय संलयन की अभिक्रिया के फलस्वरूप एक विस्फोट होता है और वह न्यूट्रान स्टार बनता है। न्यूट्रानस्टार की अवस्था में घनत्व बहुत अधिक हो जाता है जिसके कारण इसकी गुरुत्व शक्ति बहुत हो जाती है। इसकी गुरुत्व शक्ति एवं घनत्व लगातार बढ़ता जाता है और अन्त में वह बलैक होल की अवस्था प्राप्त कर लेता है। बलैक होल की अवस्था में नक्षत्र की गुरुत्व शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि उसके सभी आकाशीय पिंड उसमें समाने लगते हैं। यहाँ तक कहा जाता है कि बलैक होल दिखाई नहीं देता क्योंकि प्रकाश की किरणें भी इसमें से बाहर निकलकर नहीं आ सकतीं। अतः प्रत्येक नक्षत्र अपनी अंतिम अवस्था जैसे न्यूट्रान स्टार या बलैक होल अवस्था में अपने जीवनक्रम के अनुसार ही आएगा न कि ब्रह्मांड के समस्त नक्षत्र एक साथ अपनी अन्तिम अवस्था (बलैक होल) में आएँगे। क्योंकि इसी अवस्था में वह अपने ही भीतर सिमटने लगता है और सब कुछ अपने में समेटने लगता है अर्थात् संकुचन की क्रिया प्रारमभ होने लगती है और यही प्रलय की अवस्था है। जिस प्रकार वर्तमान में असंखय कोटि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है उसी प्रकार वैज्ञानिकों के अनुसार प्रलय के समय प्रत्येक ब्रह्माण्ड एवं नक्षत्र के मंडल में संकुचन प्रारंभ हो जाएगा। जैसा बलैक होल में होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रत्येक ब्रह्माण्ड का प्रलय अलग-अलग ही होगा। सारे असंखय कोटि ब्रह्माण्ड का प्रलय एक साथ संभव नहीं।
सारांशतः–
पाठकगण कृपया पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया इन अध्येताओं के फोन पर दें। इससे किसी को कोई शंका होगी तो वे उसका निवारण करेंगे। असंखय कोटि ब्रह्माण्ड का प्रलय एक साथ होना असंभव है। इसलिए यह मानना पड़ेगा कि अनन्त सृष्टि का प्रलय एक साथ नहीं होता। एकदेशीय सृष्टि का प्रलय होता है। अन्यथा 4 अरब 32 करोड़ वर्ष तक मुक्त आत्माएँ कहाँ होंगी। क्या इतने तक वे परमात्मा के विज्ञान का आनन्द नहीं लेंगी? क्या वे इतने काल तक निष्क्रिय व निश्चेष्ट रहेंगी? उनमें देखने,भ्रमण करने की इच्छा नहीं होगी? क्या इतने काल तक परमात्मा निष्क्रिय रहेगा? क्या पृथ्वी जैसे असंखय ग्रहों पर एक साथ असंखय अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा वेदज्ञान प्रदान करेंगे? एक साथ प्रलय मानने पर मुक्ति-सुख पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा जिसकी प्राप्ति ही मानव-जीवन का मुखय उद्देश्य है।