ओउम
सब सुखों की प्राप्ति के लिए मन को पवित्र रखो
डा. अशोक आर्य मण्डी डबवाली
मन की पवित्रता की सर्वत्र चर्चा होती है | जिसका मन पवित्र है , वह सत्वादी है, वह धर्मात्मा है , वह परोपकारी है , वह दूसरों का सहायक है उसमें वशीकरण की शक्ति है, इसे व्यक्ति के मन को बुद्धि सदा ही चेतना देती है | एसा मन ज्ञान और कर्म से भरपूर होता है , व् संकल्प शक्ति का केंद्र बन जाता है ,एसा व्यक्ति चिंतनशील, सुविचारों वाला होता है | जब मन के शुद्ध होने से इतने गुणों की प्राप्ति होती है तो क्यों न हम इन सुखों को पाने के लिए मन को पवित्र रखें | यजुर्वेद के अध्याय २ के मन्त्र आठ, अध्याय ८ के मन्त्र १४ तथा अथर्ववेद के अध्याय ६ मंडल ५३ के मन्त्र संख्या ३ के अंतर्गत मन को सर्व सुख दाता बताया गया है | मन्त्र इस प्रकार है : –
सं वर्चसा पयसा सं तनुभी –
रागंमही मनसा स गं शिवेन |
त्वष्टा सुदत्रो विदधातु रायो$-
नुमार्ष्तु तन्वो यद् विलिष्तम|| यजुर्वेद २.२४, ८. अथर्वेद ६, .५३.३ .१४||
शब्दार्थ :
( वर्चस ) ब्रहमचारी से (पयसा ) दुग्धादी से (समागंमही) युक्त हो (तनुभी:) स्वस्थ शारीर से (सम अगन्मही) युक्त हो ( शिवेन मनसा ) शांत एवं पवित्र मन से ( सम अगन्मही) युक्त हो (सुदत्र:) शुभ दानी (त्वष्टा ) विधाता (राय:) एश्वर्य (विदधातु ) दे या करे (तंव:) हमारे शरीर का (यत) जो (विलिष्ट्म) न्यून या निर्बल अंग है, उसे (अनुमार्ष्ट्तु ) शुद्ध या ठीक करे |
भावार्थ : –
हे प्रभु हमें ब्रह्मवर्चस और दुग्धादि से युक्त करो | हम स्वस्थ शरीर वाले हों | पिता, हमारा मन भी शुभ हो | हे दानियों के दानी , महादानी प्रभु, हमें एश्वर्य दो | इसके साथ ही साथ हमारे शरीर की न्यूनताओं को दूर करो |
सब प्राणियों की इच्छा रहती है की वह शक्तिशाली हों , बल में कोई उससे आगे न हो | शक्ति के दोनों साधन अर्थात ब्रह्मवर्चस से हम भरपूर हों | इसके लिए दुग्ध आदि पौष्टिक पदार्थों की आवश्यकता होती है , प्रभु हमें दूध , घी, शक्ति वर्धक फल, वनस्पतियों से भरपूर करदो , ताकि हमारे अन्दर ओज पैदा हो, शक्ति की वृद्धि हो तथा हमें कोई पराजित न कर सके | इस मन्त्र में हम परम पिता परमात्मा से यह भी मंगाते हैं कि हे प्रभु, हम स्वस्थ शरीर वाले हों | स्वस्थ शरीर भी ब्रह्मचर्य के सेवन व पोष्टिक पदार्थों के उपभोग से ही बनता है | अत: हम कह सकते हैं कि हम अपनी बात पर बल देते हुए एक बार पुन: ब्रह्मचर्य व धन धान्य की मांग पर बल देते हैं | परमात्मा दानियों का भी दानी होने के कारण महान दानी है | वह बिन मांगे हमारी इच्छाए, आवश्यकताएं पूर्ण करता है | इस लिए हम परम पिता परमात्मा से हमारे शरीर की कमियों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं |
मन्त्र में मन की पवित्रता पर बल देते हुए इस के महत्व का बड़े ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया गया है | इस मन्त्र में मानव जीवन के दो लक्ष्य बताये हैं | यह दो लक्ष्य हैं : –
अभ्युद्य तथा नि:श्रेयस
अभ्युदय का भाव समाज में आदरपूर्ण स्थिति से है | यह स्थिति प्राप्त करने के लिए हमें सांसारिक सुख वैभव प्राप्त करना होता है , सांसारिक उन्नति करनी होती है | हमें धन वैभव से संपन्न होना होता है क्योंकि सम्पन्नता के बिना समाज में आदर नहीं मिलता | संसार में आदर पाने के लिए हमें संपन्न होना ही होगा अन्यथा संसार में ख्याति नहीं मिल सकती |
मन्त्र कुछ अभीष्ट बातों की और भी संकेत करता है | इन में कुछ बातें व्यवहारिक हैं ओर कुछ सम्पन्नता से सम्बन्ध रखती हैं | यथा : सुन्दर स्वास्थ्य, ब्रह्मवर्चस , दुग्धादी जिसे आज के युग में धन धान्य से भरपूर होना कह सकते हैं , तथा शुभ व शुद्ध मन का संग्रह करने के रूप में है | प्रसाद गुण की प्राप्ति के लिए मन का शुभ विचारों से भरपूर होना आवश्यक है | प्रसाद गुण की अवस्था में सर्वत्र प्रसन्नता ही प्रसन्नता समझी जाती है | जब मुखमंडल प्रसन्नता की आभा से भरा होगा तो मुख मंडल की दीप्ती, आभा या चमक से सब ओर उसकी ख्याति फ़ैल जावेगी , सब उसी को ही निहारेंगे , उसी को ही देखना चाहेंगे , वैसा ही बनने का संकेत अपने परिजनों को देंगे | इस अवस्था में ही प्रसाद गुण का आघान होता है | इसे ही ब्रहमचर्य कहते हैं |
इस प्रकार का संयमित जीवन बिताने वाला सदैव निरोगी होता है | कोई दू:ख क्लेश उसके पासा नहीं आता | इस प्रकार का संयमी जीवन बिताने वाला ही ब्रह्मवर्चस होता है | इस शक्ति को पाने पर उसके शारीर से रोग के सब अणु या जीवाणु नष्ट हो जाते हैं | रोगमुक्त होने से उस की शारीरिक शक्ति बढ़ जाती है , चेहरे पर एक विशेष प्रकार की आभा आ जाती है | कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा इस क्षमता से जब वह कार्य करता है तो उस के पास धन एश्वर्य के भर पूर भंडार हो जाते हैं , इस प्रकार की श्री व्रद्धी से वह असीमित धन सम्पति का स्वामी बन जाता है |
मन में परम पिता परमात्मा से यह प्रार्थना की गयी है कि परमात्मा हमें एश्वर्य दे तथा शारीरिक न्यूनताओं को दूर करो, यदि कोई न्यूता है तो हमारे मन को पवित्र करो शुभ विचारों वाला बनाओ , शिव संकल्पों से भर दो ताकि हमारी कमियाँ हम पर कभी भारी न हों तथा हम उन्हें दूर करने मैं सक्षम हो सकें |
यदि हम अपने विचारों को शुभ संकल्पों से भर देंगे , ब्रह्मतेज प्राप्त कर लेंगे, मन को पवित्रता से वश में कर लेंगे तो कोई कारण नहीं कि किसी ओर से भी हमारे मन में बुरे विचार आवें, स्वास्थ्य गिरे , कोई कमी नहीं आवेगी तथा हमारी अच्छे कार्यों के करने से हम सदा ही सम्मानित स्थान समाज में प्राप्त करने के अधिकारी होंगे |
डा. अशोक आर्य , मण्डी डबवाली
१०४- शिप्रा अपार्टमैंट , कौशाम्बी
गाज़ियाबाद (उ. प्र. )
चलवार्ता ०९७१८५२८०६८