ऋग्वेद प्रथम अध्याय सूक्त सात के मुख्य आकर्षण
डा. अशोक आर्य
ऋग्वेद के प्रथम अध्याय के इस सप्तम सूक्त का आरम्भ प्रभु के स्तवन से , प्रभु की प्रार्थना से , उसकी स्तुति से आरम्भ होता है तथा यह स्तुति करते हुए यह सूक्त निम्न प्रकार से उपदेश कर रहा है :-
१. सूर्य व बादल प्रभु के अनुदान :-
परम पिता परमात्मा जो भी कर्य करता है वह अपने आप में अद्भुत ही होता है । उस प्रभु ने हमारे लिए बहुत से अनुदान दिए हैं । यह सब ही हमें अदभुत दिखाई देते हैं किन्तु इन में से दो अनुदान हमारे जीवन का आधार हैं । इन में से एक है सूर्य जिस की सहायता के बिना न तो हमारी आंख ही आंख कहलाने की अधिकारी है ओर न ही इस संसार का कोई काम ही हो सकता है । दूसरे हैं बादल । यह बादल भी हमरे जीवन का एक आवश्यक अंग हैं । इन के बिना हमारी वनस्पतियां , ऒषधियां उत्पन्न ही नहीं हो सकतीं , जलाश्य पूर्ण नहीं हो सकते । इस लिए हम मानते हैं कि यह दो तो उस पिता के दिए अनुदानों में सर्वश्रेष्ठ अनुदान हैं, अद्भुत विभुतियां हैं ।
२-३. प्रभु हमें विजयी कराते हैं :-
हम अपने जीवन में अनेक प्रकार के कार्य करते हैं किन्तु तब तक हम इन कार्यों में सफ़ल नहीं हो पाते , जब तक हमें उस प्रभु का आशीर्वाद न मिल जावे । इस लिए हम प्रति क्षण प्रभु की स्तुति करते हैं । प्रभु का आशिर्वाद मिलने के बाद ही हम सफ़लता पाते हैं । अत: स्पष्ट है कि हमें जो सफ़लताएं मिलती हैं , जीवन में जो विजयें मिलती है , उस का कारण भी वह प्रभु ही तो है ।
४. ज्ञान के दाता :-
वह प्रभु ज्ञान के देने वाले हैं । वह जानते हैं कि ज्ञान के बिना मानव कुछ भी नहीं कर सकता , उसकी सब उपलब्धियों का आधार ज्ञान ही होता है । इस लिए उन्होंने मानव मात्र के कल्याण के लिए वेद का ज्ञान उतारा, प्रकट किया , इस ज्ञान का अपावरण किया है ।
५-६. प्रभु के अनुदानों की गिनती सम्भव नहीं :-
प्रभु ने हमें अनन्त दान दिए हैं , असीमित अनुदान दिए हैं । हमारे अन्दर इतनी शक्ति नहीं कि हम प्रभु के सब अनुदानों की गिनती तक भी कर सकें । जब गिनती ही नहीं कर सकते तो उन सब अनुदानों की स्तुतियां कैसे कर सकते हैं ?, धन्यवाद कैसे कर सकते ? इससे स्पष्ट है कि हमारे लिए प्रभु ने असीमित अनुदान दिए हैं , यदि हम इन अनुदानों के लिए प्रभु को स्मरण करें , धन्यवाद करें तो भी हम सब अनुदानों का स्मरण मात्र भी इस जीवन में नहीं कर सकते । इस लिए प्रभु स्तुति कभी समाप्त ही नहीं होती ।
७. हम गॊवें ओर प्रभु गोपाल :-
इस सूक्त के अनुसार सत्य तो यह है कि हम तो प्रभु द्वारा जंगल में चराने को ले जा रही गऊएं हैं ओर वह प्रभु हमारा गोपाल है , चरवाहा है । वह जब तक चाहेगा हम अपना खाना खाते रहेंगे , ज्यों ही यह चरवाहा , यह प्रभु अपनी आंख फ़ेर लेगा , हमें लौटने का आदेश देगा, फ़िर हम एक क्षण के लिए भी इस जंगल में, इस चरागाह में , इस जगत में ठहर न पावेंगे ।
८. वह पालक ही हमारे दाता हैं :-
प्रभु हमारे पालक हैं । हमें विभिन्न प्रकार के अनुदान दे कर हमारा पालन करते हैं , हमारा लालन करते हैं तथा विभिन्न प्रकार कि वनस्पतियों , ऒषधियां एवं जीवनीय वस्तुएं हमें देने वाले हैं ।
९. प्रभु की प्रार्थना ही उत्तम है :-
जो प्रभु हमारे पालन करते हैं, लालन करते हैं तथा जीवन में विजयी करते हैं । इसलिए प्रभु की ही कामना , प्रार्थना , स्तुति ओर उपासना करना ही उतम है ।
१०. प्रभु ही सर्वोतम धनों के दाता हैं :-
जो प्रभु हमारी सब आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाले हैं , जो प्रभु हमारे लिए ज्ञान को बांटने वाले हैं । जो प्रभु हमें प्रत्येक संकट से निकाल कर अनेक प्रकार के अनुदानों से हमें लाभान्वित करते हैं , वह प्रभु ही हमें सब प्रकार के धनों को प्राप्त करावेंगे, इन धनों को प्राप्त कराने में हमें सहयोग देंगे , हमारा मार्ग दर्शन करेंगे ।
यही इस सूक्त का मुख्य उपदेश है, सार है ।
डा अशोक आर्य