answeringaryamantavya ब्लॉग की जवाब (इस्लाम में नारी की दुर्दशा) भाग १
(इस्लाम में नारी की दुर्दशा)
अभी एक उत्साही मोमिने ने मुझे एक लिंक दिया जिसमें उसने आर्यसमाज( सच पूछो तो पूरे सनातन धर्म) को नीचा दिखाने का प्रयास किया गया.
http://answeringaryamantavya.blogspot.in/2016/09/1_27.html?m=1
ये वह पोस्ट है.
हम क्रमशः इस पोस्ट का खंडन करेंगे
१:-बेशक कोइ शक ही नहीँ
अल्लाह ने फरमाया है कुरआन ए पाक मेँ कि मर्द औरत का
निगेहबान है । लेकिन वो इस बात को क्या
समझगेँ जो भरी सभा मेँ एक औरत कि इज्जत ना बचा
सके । भरी सभा मेँ उसे निवर्स्त होने से ना बचा सके
प्रमाण महाभारत मेँ द्रोपदी वो इस
बात को कया समझेगेँ जो एक औरत कि नाक ही काट देँ
।
वो भला इस बात को क्या समझेगेँ जो एक औरत को भोग
की वसतु समझते है ।
11 11 वाले मिशन कि पैदाइश आर्य समाजी क्या
समझेगेँ ।
आगे चलीये
*समीक्षा* पाठक पोस्ट पढ़कर समझ जायेंगे कि ऐसी हेय भाषा प्रयोग करने वाला कैसा व्यक्ति होगा.
इनके आरोपों पर नजर डालें:-
” भरी सभा में एक औरत की इज्जत न बचा सके”
हजरत साहब, मां द्रौपदी का चीरहरण भारतीय संस्कृति पर कलंक है.सत कहो तो दुर्योघन केवल द्रौपदी जी को दासी के वस्त्र पहना कर और झाडू लगवा कक अपमामित करना चाहता था.उनका चीरहरण करना उसका मकसद न था.सच कहो तो द्रौपदी का चीरहरण और वस्त्र का बढ जाना आदि गपोड़े महाभारत में कालांतर में जोड़े गये.सच कहो तो श्रीकृष्ण ने कहा था कि यदि मैं सभा में होता तो न तो जुआ होता न द्रौपदी और पांडवों का अपमान.महाभारत का काल पतनकाल था.पर तब भी स्त्रियों का सम्मान था.स्त्री के अपमान के कारण ही महाभारत क् युद्ध हुआ और स्त्रा की गरिमा पर हाथ डालने वाले रणभूमि में खून से लथपथ पड़े थे.मां सीता का हरण करने वाले रावण का वंशनाश हो गया.यह है स्त्री की गरिमा! वैदिक धर्म में ६ आततायी कहे गय हैं.उनमें स्त्री से जबरदसती करने वो भी आते हैं.मनु महाराज ने ऐसों को मौत की सजा का विधान रखा है.इस पर ” आर्यमंत्वय ” के लेख पढे होते उसके बाद कलम चलाई होती.
रजनीश जी द्रौपदी चीरहरण पर जवाब दे चुके हैं
देखिये:-http://aryamantavya.in/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8C%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A5%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%87/
आगे श्रीराम और लक्ष्मण जी को शूपणखा के नाक काटना का आरोप है.हजरत साहब! शूपणखा राक्षसी थी.वो कामुक भाव से श्रीराम से गांधर्वविवाह करने आई थी.पर उनके मना करने पर मां सीता पर झपट पड़ी क्योंकि उसको लगा कि राम जी को पानो से पहले सीता जी को रास्ते से हटाना होगा.तब वह राक्षसी रूप में आकर मां सीता पर टूट पड़ी.तब जवाब में लक्ष्मण जी ने उसको दूर हटा दिया उसकी नाक काट दी यानी अपमानित कर दिया.अब बतायें जरा, आपकी मां बहन बेटी पत्नी पर कोई जानलेवा वार करे तो क्या आप शांत बैठोगे? नहीं, पत्नी रक्षा पति का धर्म है.अतः इससे श्रीराम और लक्ष्मण जी को नारीविरोधी कहना धूर्तता है.राम जी ने शबरी अंबा और देवी अनसूया का आतिथ्य स्वीकार किया.इससे पता चलता हा कि वे कितने स्त्रीसमर्थक थे
बाकी *हम डंके की चोट पर कहतेहैं कि रामायण में उत्तरकांड और बीच बीच के कई प्रसंग प्रक्षिप्त हैं और अप्रमाण हैं.अतः सीता त्याग का हम खंडन करते हैं.( देखिये पुस्तक ‘ रामायण :भ्रांतियां और समाधान)*
मनुस्मृति में भी कई श्लोक प्रकषिप्त हैं.अतः हम आपसे आग्रह करेंगे कि स्वामी जगदीश्वरानंदजी और डॉ सुरेंद्रकुमार जी के ग्रंथ ” वाल्मीकीय रामायण” ” विशुद्ध मनुस्मृति” पढें जिनमें प्रक्षेप हटाकर इनको शुद्ध किया गया है.
बाकी ११-११ नियोग की बात तो नियोग केवल आपद्धर्म है.यह सेरोगेसी की तरह है जिससे उत्तम कुल के वर्ण के नियुक्क से शुक्रदान होता है.यह केवल सबसे रेयर केसेस में से एक है.हजरत, जरा उन मां बाप से पूछें जिनके संतान नहीं है.तब पता चलेगा कि निःसंतान होना कैसा है? इस स्थिति में संतान गोद ले लें.यदि न हो सके तो नियोग करें.पर सच कहो तो गृहस्थ होने की काबिलियत भी हममें नहीं, स्वामीजी के मत में.क्योंकि उसके लिये पूर्ण विद्वान और तैयार होना जरूरी है.तब तो नियोग करना दूर की बात.पर ये प्रथा ” हलाला” से तो बहुत अच्छी है.
अब इस्लाम पर आते हैं कि यदि तीन तलाक हो जाये और तलाकशुदा स्त्री पुराने पति को पाना चाबहे तो उसको परपुरुष से निकाह कर बिस्तर गरम करना होगा और फिर दुबारा वो पुराने पति के लिये हलाल है.( सूरा बकर २२९-२३०) अब किसी मोमिन में औकात है कि नियोग पर आक्षेप लगायें.नियोग के लिये आर्यमंतव्य के ब्लॉग देख सकते हैं.शायद आपका शंका समाधान हो जाये.
अभी एक उत्साही मोमिने ने मुझे एक लिंक दिया जिसमें उसने आर्यसमाज( सच पूछो तो पूरे सनातन धर्म) को नीचा दिखाने का प्रयास किया गया.
http://answeringaryamantavya.blogspot.in/2016/09/1_27.html?m=1
ये वह पोस्ट है.
हम क्रमशः इस पोस्ट का खंडन करेंगे
१:-बेशक कोइ शक ही नहीँ
अल्लाह ने फरमाया है कुरआन ए पाक मेँ कि मर्द औरत का
निगेहबान है । लेकिन वो इस बात को क्या
समझगेँ जो भरी सभा मेँ एक औरत कि इज्जत ना बचा
सके । भरी सभा मेँ उसे निवर्स्त होने से ना बचा सके
प्रमाण महाभारत मेँ द्रोपदी वो इस
बात को कया समझेगेँ जो एक औरत कि नाक ही काट देँ
।
वो भला इस बात को क्या समझेगेँ जो एक औरत को भोग
की वसतु समझते है ।
11 11 वाले मिशन कि पैदाइश आर्य समाजी क्या
समझेगेँ ।
आगे चलीये
*समीक्षा* पाठक पोस्ट पढ़कर समझ जायेंगे कि ऐसी हेय भाषा प्रयोग करने वाला कैसा व्यक्ति होगा.
इनके आरोपों पर नजर डालें:-
” भरी सभा में एक औरत की इज्जत न बचा सके”
हजरत साहब, मां द्रौपदी का चीरहरण भारतीय संस्कृति पर कलंक है.सत कहो तो दुर्योघन केवल द्रौपदी जी को दासी के वस्त्र पहना कर और झाडू लगवा कक अपमामित करना चाहता था.उनका चीरहरण करना उसका मकसद न था.सच कहो तो द्रौपदी का चीरहरण और वस्त्र का बढ जाना आदि गपोड़े महाभारत में कालांतर में जोड़े गये.सच कहो तो श्रीकृष्ण ने कहा था कि यदि मैं सभा में होता तो न तो जुआ होता न द्रौपदी और पांडवों का अपमान.महाभारत का काल पतनकाल था.पर तब भी स्त्रियों का सम्मान था.स्त्री के अपमान के कारण ही महाभारत क् युद्ध हुआ और स्त्रा की गरिमा पर हाथ डालने वाले रणभूमि में खून से लथपथ पड़े थे.मां सीता का हरण करने वाले रावण का वंशनाश हो गया.यह है स्त्री की गरिमा! वैदिक धर्म में ६ आततायी कहे गय हैं.उनमें स्त्री से जबरदसती करने वो भी आते हैं.मनु महाराज ने ऐसों को मौत की सजा का विधान रखा है.इस पर ” आर्यमंत्वय ” के लेख पढे होते उसके बाद कलम चलाई होती.
रजनीश जी द्रौपदी चीरहरण पर जवाब दे चुके हैं
देखिये:-http://aryamantavya.in/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8C%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A5%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%87/
आगे श्रीराम और लक्ष्मण जी को शूपणखा के नाक काटना का आरोप है.हजरत साहब! शूपणखा राक्षसी थी.वो कामुक भाव से श्रीराम से गांधर्वविवाह करने आई थी.पर उनके मना करने पर मां सीता पर झपट पड़ी क्योंकि उसको लगा कि राम जी को पानो से पहले सीता जी को रास्ते से हटाना होगा.तब वह राक्षसी रूप में आकर मां सीता पर टूट पड़ी.तब जवाब में लक्ष्मण जी ने उसको दूर हटा दिया उसकी नाक काट दी यानी अपमानित कर दिया.अब बतायें जरा, आपकी मां बहन बेटी पत्नी पर कोई जानलेवा वार करे तो क्या आप शांत बैठोगे? नहीं, पत्नी रक्षा पति का धर्म है.अतः इससे श्रीराम और लक्ष्मण जी को नारीविरोधी कहना धूर्तता है.राम जी ने शबरी अंबा और देवी अनसूया का आतिथ्य स्वीकार किया.इससे पता चलता हा कि वे कितने स्त्रीसमर्थक थे
बाकी *हम डंके की चोट पर कहतेहैं कि रामायण में उत्तरकांड और बीच बीच के कई प्रसंग प्रक्षिप्त हैं और अप्रमाण हैं.अतः सीता त्याग का हम खंडन करते हैं.( देखिये पुस्तक ‘ रामायण :भ्रांतियां और समाधान)*
मनुस्मृति में भी कई श्लोक प्रकषिप्त हैं.अतः हम आपसे आग्रह करेंगे कि स्वामी जगदीश्वरानंदजी और डॉ सुरेंद्रकुमार जी के ग्रंथ ” वाल्मीकीय रामायण” ” विशुद्ध मनुस्मृति” पढें जिनमें प्रक्षेप हटाकर इनको शुद्ध किया गया है.
बाकी ११-११ नियोग की बात तो नियोग केवल आपद्धर्म है.यह सेरोगेसी की तरह है जिससे उत्तम कुल के वर्ण के नियुक्क से शुक्रदान होता है.यह केवल सबसे रेयर केसेस में से एक है.हजरत, जरा उन मां बाप से पूछें जिनके संतान नहीं है.तब पता चलेगा कि निःसंतान होना कैसा है? इस स्थिति में संतान गोद ले लें.यदि न हो सके तो नियोग करें.पर सच कहो तो गृहस्थ होने की काबिलियत भी हममें नहीं, स्वामीजी के मत में.क्योंकि उसके लिये पूर्ण विद्वान और तैयार होना जरूरी है.तब तो नियोग करना दूर की बात.पर ये प्रथा ” हलाला” से तो बहुत अच्छी है.
अब इस्लाम पर आते हैं कि यदि तीन तलाक हो जाये और तलाकशुदा स्त्री पुराने पति को पाना चाबहे तो उसको परपुरुष से निकाह कर बिस्तर गरम करना होगा और फिर दुबारा वो पुराने पति के लिये हलाल है.( सूरा बकर २२९-२३०) अब किसी मोमिन में औकात है कि नियोग पर आक्षेप लगायें.नियोग के लिये आर्यमंतव्य के ब्लॉग देख सकते हैं.शायद आपका शंका समाधान हो जाये.
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