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प्रभु दर्शन के लिए सात्विक भोजन आवश्यक

ओ३म
प्रभु दर्शन के लिए सात्विक भोजन आवश्यक

डा. अशोक आर्य
हमारी सदा ही यह इच्छा रही है कि हम उस पिता को , उस प्रभु को प्राप्त करें किन्तु कैसे ? इस निमित्त हम अपनी अन्दर की वासनाओं का नाश करें । वासना विनाश के लिए अपने अन्दर ग्यान का दीप जलाएं । ग्यान का दीप जलाने के लिए सात्विक अन्न का प्रयोग करना आवश्यक है । जब मन वासना रहित होगा , अन्दर ग्यान का प्रकाश होगा तथा जब यह शरीर सात्विक भोजन पर
निर्भर होगा तो हम प्रभु को पाने में सफ़ल होंगे । इस तथ्य पर ही यह मन्त्र इस प्रकार प्रकाश डाल रहा है :-
इन्द्रा याहि तुतुजान उप ब्रह्माणि हरिव: ।
सुते दधिष्व नश्चन: ॥रिग्वेद १.३.६ ॥
इस मन्त्र में ती बातों पर , तीन बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए इस प्रकार कहा गया है , उप्देश किया गया है : –
१.
जितेन्दिय पुरुष को इन्द्र के नाम से सम्बोधित करते हुए मन्त्र कहता है कि हे जितेन्द्रिय पुरुष ! तूं अति शीघ्रता से सब वासनाओं का नाश करता हुआ मेरे समीप आ । इससे यह स्पष्ट होता है कि मन्त्र के अनुसार प्रभु प्राप्ति की प्र्थम तथा प्रमुख सीटी वासनाओं का नाश ही है । जब तक वासनाओं का नाश नहीं होता तब तक प्रभु प्राप्ति की ओर प्रथम कदम भी नहीं रखा जा सकता । इस लिए प्रभु दर्शन के अभिलाषी प्राणी को सर्व प्रथम जो कार्य करना होता है , उसे हम वासनाओं का नाश के नाम से जानते हैं । अत: प्रभु प्राप्ति के पथिक को सर्व प्रथम वासना नाश रुपि मार्ग को पकडना
होता है । यह ही प्रभु दर्शन का प्रथम साधन है , प्रथम सीटी है ।
२.
वासनाओं का नाश करने के इच्छुक हे प्रशस्त इन्द्रिय रुपि घोडों से युक्त प्राणी ! तुं सदा ग्यान के मध्य निवास करने वाला बन । ग्यान प्राप्ति की रुचि के बिना तुं ग्यान प्राप्त नहीं कर सकता । इस लिए तेरे लिए यह आवश्यक है कि यदि तूं ग्यान प्राप्ति की अभिलाषा रखता है तो अपने अन्दर ग्यान को पाने की इच्छा पैदा कर , रुचि पैदा कर । जब तक तेरे अन्दर ग्यान नहीं है , तब तक वासनाओं का नाश सम्भव ही नहीं है । जब तुझे अच्छे व बुरे का ग्यान ही नहीं है , तब तक तूं बुराई को कैसे छोड सकता है । अत: तूं यह अभिलाषा अपने अन्दर पैदा कर कि तुं ग्यान प्राप्त करे तथा यह इच्छा शक्ति भी अपने अन्दर पैदा कर कि तुं ने उत्तम ग्यान को पैदा करना है, ग्रहण करना है । जब तक तेरे अन्दर वासनाओं को मारने के लिए , वासनाओं का हनन करने के लिए ग्यान ही नहीं है , वासनाओं की बुराई को तुं जानता ही नहीं है , तब तक इनका नाश नही कर सकता । इस लिए महान ग्यानी बनना तेरे लिए आवश्यक है । यह ग्यान ही है जो हमें वासनाओं की हानियों की जानकारी देने वाला है । यह ग्यान ही तो है जो वासनाओं का नाश करता है ।
३.
अपने शरीर में हमने शक्ति पैद करनीहै । शक्ति ही सब सफ़लताओं का मर्ग है, सब सफ़लताओं का मूल है । इस शक्ती को ही सोम कहते हैं । इस लिए हे प्राणी अपने शरीर में सोम की उत्पति के लिए , शक्ति की उतपति के लिए , मैंने जो अन्न तेरे लिए दिया है , पैदा किया है , तुं उसे तुं धारण करने के योग्य बन , आने अन्दर एसे गुण पैदा कर कि तुं इस अन्न का उपभोग करने के योग्य्बन सके , इस अन्न को ग्रहण कर । यह अन्न ही तेरा भूजन है, यह अन्न ही तेरी क्शुधा पूर्ति का साधन है , यह अन्न ही तेरे जीवान का मुख्य भाग है । इस प्रकार यह मन्त्र उप्देश कर रहा है कि गेहूं , चावल , जौ, उडद,दालें, तिल आदि वस्तुएं , जिन्हें अन्न का नाम दिया गया है , ही तुं खाने के लिए सेवन कर , इनका ही उपभोग कर, इन्हें ही तुं ग्रहण कर । मांस मनुष्य का भोजन नहीं है , इसलिए तुंने मांस , मदिरा आदि तुच्छ पदार्थों का अपने भोजन के रूप में सेवन नहीं करना । एसे गन्दे भोजन का सेवन कर तूं अपनी बुद्धि को रजस व्रितियों वाला बना कर वैष्यिक व्रितिवाला बनकर , तामस व्रोइति वाला बनकर सोम रक्शन का कार्य नहीम क्लर पावेगा । सोम रक्शण एसी दूषित व्रितियों से नहीं होता ।यदि तूं अपने शरीर में सोम की ,शक्ति की रक्शा करना चाहता है तो यह आवश्यक है कि तुं उत्तम अन्न व दालों आदि का ही सेवन कर । मां , मदिरा के सम्बन्ध्में सोच भी ना , देख भी न ।
इसस्से ही शक्ति , सोम की प्राप्ति होगी । इस के अतिरिक्त हे जीव ! तुं यह भी कर:-
क) तुं सदा सात्विक भोजन कर
ख) सात्विक भोजन की प्राप्ति से तुं सुक्शम बुद्दि वाला बनकर ग्यान
प्राप्ति के कार्य में लग जा ।
ग) ग्यान प्राप्ती से तुण अच्छे व बुरेर की परख करने वाला बन ।
घ) अच्छे व बुरे का पारखी बनकर तुं अपने अन्दर की विषय वासनाओं की
हानि को समझ तथा अपनी वासनाओं का विनाश कर ।
ड) वासनाओं का विनाश कर तुं अस्पने आप को प्रभु को पाने के योग्य बना ।

दर्शना देवी डा. अशोक आर्य