मुसलमान, मुसलमान को न मारे
क्या इससे अरबी खुदा का मुसलमानों के साथ पक्षपात व दूसरों से शत्रुता साबित नहीं होती है।
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
व मा का-न लि मुअ्मिनिन्………।।
(कुरान मजीद पारा ५ सूरा निसा रूकू १३ आयत ९२)
किसी ईमान वाले को जायज नहीं कि वह ईमान वाले को मार डाले।
व मंय्सक्तुल् मुअ्मिनम्-मु त………।।
(कुरान मजीद पारा ५ सूरा निसा रूकू १३ आयत ९३)
जो मुसलमान को जानबूझ कर मार डाले तो उसकी सजा दोजख है।
समीक्षा
यह आयतें खुदा को अन्यायी और अत्याचारी घोषित करती हैं और उसे मुसलमानों का पक्षपाती बताती हैं न्याय की बात तो यही थी कि अन्यायी कोई भी हो मुसलमान हो या काफिर उसे दण्ड देने को कहा जाता।
मुसलमान जालिम भी निर्दोष होगा यह कोई मान नहीं सकता है। अरबी खुदा को इन्साफ करना भी नहीं आता था ऐसे पक्षपाती अरबी खुदा को दूसरा समझदार व्यक्ति अपना रक्षक कैसे मान सकता है? जो मुसलमानों को कत्ल करने को भड़काता है।