कलमे में मुहम्मद को शरीफ अर्थात् शामिल कर लेने से उसका पढ़ना इस आयत के विरूद्ध क्यों न माना जावे?
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
व कजा रब्बु-क अल्ला तअ्-बुदू…………।।
(कुरान मजीद पारा १५ सूरा बनी इस्राईल रूकू २ आयत २२)
खुदा के साथ किसी दूसरें की इबादत नहीं करना। नहीं तो तुम दुर्दशा पाकर बैठे रह जाओगे।
समीक्षा
यह हुक्म तो ठीक है पर मुसलमानों के मौजूद कल्में में खुदा के साथ ‘मोहम्मद रसूल्लाह’ जो बोला जाता है वह गलत है। कल्मा ही गलत हो जाता है। लाशरीक खुदा के साथ मुहम्मद को शरीक कर देने से मुसलमान काफिर बन जाते हैं।