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छिद्र भर लें – रामनाथ विद्यालंकार

chidra bhar le1छिद्र भर लें – रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः दध्यङ् आथर्वणः । देवता बृहस्पतिः । छन्दः निवृद् आर्षी पङ्किः ।

यन्मे छिद्रं चक्षुषो हृदयस्य मनसो वार्तितृण्णं बृहस्पति तर्दधातु। शं नो भवतु भुवनस्य यस्पतिः

-यजु० ३६.२

( यत् मे छिद्रं ) जो मेरा छिद्र है (चक्षुषः ) आँख का, ( हृदयस्य ) हृदय को, (मनसःवा) अथवा मन का ( अतितृण्णं ) बहुत फटा हुआ, ( तत् मे ) उस मेरे छिद्र को ( बृहस्पतिः२) बृहस्पति परमेश्वर वा आचार्य ( दधातु ) भर देवे । ( शं नः भवतु ) कल्याणकारी हो हमारे लिए ( यः भुवनस्य पतिः ) जो ब्रह्माण्ड का स्वामी व पालक है।

मनुष्य  कितनी भी पर्णता प्राप्त कर ले कुछ न कुछ दोष उसमें रहते ही हैं। चक्षु-श्रोत्र आदि ज्ञानेन्द्रियों में, हाथ-पैर आदि कर्मेन्द्रियों में पाचन-संस्थान में रक्त-संस्थान में श्वासोच्छास-संस्थान में, मन में, मस्तिष्क में कहीं भी दोष हो सकता है, जिसके कारण जीवन-यापन में कठिनाई होती है । मन्त्र कह रहा है कि जो मेरे चक्षु, हृदय और मन का ऐसा छिद्र है, जो बहुत चौड़ा हो गया है, उसे ‘बृहस्पति’ भर देवे। आंख का दुखना, आँख की दूरदृष्टि या समीपदृष्टि कम हो जाना, फूले, मोतियाबिन्द हो जाना आदि आँख के भौतिक दोष हैं, जो साधारण भी हो सकते हैं और बहुत बढ़े हुए भी । इन दोषों को बृहस्पति नेत्रविशेषज्ञ दूर कर सकता है। आँख हमें अच्छे दृश्य देखने के लिए मिली है। आँखों से अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ना, सुहावने प्राकृतिक दृश्य देखना, गुरुजनों, नेताओं, संन्यासियों के दर्शन करना और उनसे उद्बोधन प्राप्त करना चक्षुष्मान् का कर्तव्य है। आँखों का उपयोग करके मनुष्य बड़े-बड़े ज्ञान विज्ञान प्राप्त कर सकता है, बड़े-बड़े  आविष्कार कर सकता है, राष्ट्र की उन्नति में चार चाँद लगा सकता है। आँखों का दोष प्राकृतिक भी हो सकता है और आध्यात्मिक भी। जब अध्यात्मसम्बन्धी दोष होता है, तब वस्तुतः वह आत्मा का दोष होता है। आँख उसमें साधन बनती है, अत: आँख का दोष वह साधनगत दृष्टि से कहलाता है। आँखों से अश्लील ग्रन्थ पढ़ना आदि आँखों के साधनगत अध्यात्म दोष हैं, जिन्हें गुरुजन, महात्मा लोग आदि बृहस्पति दूर कर सकते हैं। आँखों के इन प्राकृतिक तथा अध्यात्म दोषों को दूर करके आँखों को पूर्णतः निर्दोष कर लेना आवश्यक है। चक्षु सब ज्ञानेन्द्रियों का प्रतिनिधि है। किसी भी ज्ञानेन्द्रिय में कोई दोष आ गया है, तो बृहस्पति द्वारा उसे दूर कर लेना चाहिए। बृहस्पति में चिकित्साविशेषज्ञ, प्रधानमन्त्री, शिक्षामन्त्री, आचार्य, उपदेशक, संन्यासी आदि राजनेता तथा धार्मिक नेता आ जाते हैं। इसी प्रकार हमारे हृदय-संस्थान या रक्तसंस्थान में यदि कोई दोष रक्तचाप की न्यूनता या अधिकता, धड़कन की तीव्रता, हृदयशूल, रक्त-कर्कट आदि हो गया है, तो उसे भी उस रोग के विशेषज्ञ बृहस्पति द्वारा दूर करवा लेना उचित है। मन के दोष दुर्विचार, अशिव सङ्कल्प, मन का स्थिरता से किसी कार्य में न लगना आदि को भी मनश्चिकित्सा-विशेषज्ञों तथा महात्मारूप बृहस्पतियों से दूर करवा लेना चाहिए। सबसे बड़ा बृहस्पति तो विशाल ब्रह्माण्ड का अधिपति परब्रह्म परमेश्वर है। प्रणवजप-रूप धनुष से आत्मारूप शर को ब्रह्मरूप लक्ष्य पर छोड़ना चाहिए, तब आत्मा ब्रह्म के सम्पर्क से ब्रह्म के गुणों को धारण करके महान् बन जाता है। इस प्रकार भुवनपति परमेश्वर हमारे लिए कल्याणकारी और सुखदायक हो जाता

आओ, बृहस्पतियों को तथा भुवनपति परमेश्वर को अपना नायक बनाकर हम अपने दोष दूर करवा कर निष्कल्मष तथा शुक्ल, शुभ्र, स्वच्छ होकर आत्मविकास करें।

पाद-टिप्पणियाँ

१. अति-तृदिर हिंसानादरयोः, रुधादिः ।।

२. (बृहस्पतिः) इतामाकाशादीनां पालक: ईश्वर:-द० ।।

छिद्र भर लें – रामनाथ विद्यालंकार