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मानव प्रतिदिन दो काल प्रभु के समीप बैठने वाले बनें ।

डा.अशोक आर्य
मानव प्रतिदिन दो काल प्रभु के समीप बैठने वाले बनें । सम्पूर्ण दिन भर वृद्धि पूर्वक कर्मों को करते हुये , जो भी कार्य करें, उसे प्रभु चरणॊं में अर्पण करदें । प्रात:काल हम शक्ति की याचना करते हुये मांगें कि हम बुद्धि पूर्वक कर्मों को करने वाले बनें । इस बात को इस मन्त्र र्में इस प्रकार प्रकट किया गया है : –
उपत्वाग्नेदिवेदिवेदोषावस्तर्धियावयम्।
नमोभरन्तएमसि॥ ऋ01.1.7 ||
विगत मन्त्र में जो समर्पण का भाव प्रकट किया गया था , उसे ही यहां फिर से प्रकट किया गया है । मन्त्र कह रहा है कि हे अग्ने ! हे सब को आगे बढाने वाले प्रभो ! , सब कुछ प्राप्त कराने वाले प्रभो ! हम प्रतिदिन प्रात: व सायं के सन्धिकाल में आप के समीप बैठ कर आत्म निरीक्षण करते हैं । इस आत्म निरीक्षण में हम बुद्धि पूर्वक कर्मों के माध्यम से पूजा को प्राप्त होते हुये सर्वथा आपकी समीपता को प्राप्त होते हैं , आपकी समीपता प्राप्त करते हैं, आपके समीप आसन लगाते हैं अथवा आपके आसन के समीप बैठकर आप से दिशा निर्देश लेते हैं ।
मानव को प्रतिदिन प्रभु चरणों में जाना चाहिये । यह अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि : –
क ) प्रभु चरणों में जाने से मानव में पवित्रता की भावना का न केवल उदय ही होता है अपितु पवित्रता की भावना बनी भी रहती है ।
ख ) जब मानव प्रभु चरणॊं में बैठता है तो जहां उसमें पवित्रता की भावना का उदय होता है , वहां उसमें शक्ति का भी संचार होता है, शक्ति भी उसके अन्दर उद्वेलित होने लगती है ।
ग ) मानव जीवन में जिसने भी धन को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया, उसका जीवन लडाई , झगडा, कलह , कलेषादि से भर जाता है । जब हम प्रभु चरणों में बैठते हैं तो हमें धन की लालसा नहीं रहती । इस प्रकार हमारे जीवन का उद्देश्य धन नहीं निकट बन पाता । जब धन की इच्छा ही नहीं है तो हमारा पारस्परिक प्रेम भी नष्ट न हो कर बना रहता है ।
जिस प्रकार मानव को जीवन के लिए भोजन आवश्यक होता है , जिस प्रकार मस्तिष्क को बलिष्ट बनाए रखने के लिये नियमित स्वाध्याय आवश्यक होता है , उस प्रकार ही हृदय की शुद्धि के लिये दैनिक प्रभु के समीप जाना भी , दैनिक ध्यान भी , प्रभू प्रार्थना भी आवश्यक होते हैं । यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन प्रभु के निकट बैठकर उस का ध्यान करता है , उसकी आराधना करता है , उसका स्मरण करता है , प्रार्थना रूप उपासना करता है, उपासना करता है तो उसे कभी कोई कष्ट, कोई दुःख ,
कोई क्लेश आ ही नहिंसकता | वह धन धान्य से परिपूर्ण रहते हुए सब सुखों को प्राप्त होता है |
डा. अशोक आर्य