खुदा हर काफिर को ७० हाथ
की जंजीर से बांधेगा
मुल्जिम को पकड़ कर बेबस कर देने के बाद उस पर दया की जाती है पर अरबी खुदा का दोजख की भट्ठी में भूनते समय भी काफिरों को ७० हाथ लम्बी जंजीर से बांधना क्या उसकी बेहमी का सबूत नहीं है। क्या ऐसा खुदा रहीम अर्थात् रहम करने वाला कहा जा सकता है ?
देखिये कुरान में कहा गया है कि-
खुजूहु फगुल्लूहु………….।।
(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू १ आयत ३०)
(खुदा कहेगा) इसकों पकड़ो और इसके गले में तोक अर्थात् हार डालो
सुम्मल्-जही-म सल्लूहु…………।।
(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू २८ आयत ३१)
फिर इसको नरक में ढकेल दो।
सुम-म फी सिलसि लतिनर्जअुहा…………..।।
(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू २८ आयत ३२)
और इसे सत्तर हाथ लम्बी जंजीर से जकड़ अर्थात् बाँध दो।
समीक्षा
दोजख की ऊंची लपटों वाली तेज आग में झोंक देने के बाद हर काफिर को इसनी लम्बी जंजीर से बांधना क्यों जरूरी होगा? क्या छोटी तीन गज की जंजीर एक आदमी को काफी नहीं होगी? इतनी बड़ी ढेर सारी जंजीरें खुदा किस लोहे की फैक्ट्री या कम्पनी से खरीदेगा? वह हिन्दुस्तानी होंगी या अमरीकन? उन्हें कहां से आयात किया जायेगा और क्या खुदा के पास उन्हें मंगाने के लिए एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का कोई लाइसैन्स भी मौजूद है?