ॐ
हे प्रभु हमारे मन में प्रकाश बढ़ा दो
डा . अशोक आर्य
परम पिता परमात्मा ने जीव को कर्म करने की स्वतंत्रता दी है जबकि किये गए कर्म का फल अपने हाथ रखा है । जीव सदा सुखों की कामना करता है । उसकी यह कामना होती है कि संसार के जो भी सुख हैं , तत्काल उसे मिल जावें किन्तु कुछ भी न करना पड़े । मानव पूरा समय ऐसे काम करते जाता हैं ,जिसका फल केवल और केवल अन्धकार ही होता है , फिर कैसे मानव अपने जीवन में सुखों की , प्रकाश की अभिलाषा रखता है । जब बीज ही मिरची के डाल रहे हैं तो गुड कैसे मिलेगा ? जब कि अनथक प्रयास , मेहनत मानव को सुख प्रदान कर देते हैं, अपार अन्धकार हो, तो भी प्रकाश की रश्मियाँ सब और फैलती हैं । सामवेद का मन्त्र भी इस तथ्य पर ही प्रकाश डालते हुए कह रहा है :
अग्न : आयाही वीतये ,
गृणानो हव्यदातये ,
नि होता सत्सि बर्हिषि ।। सामवेद 1 ||
संक्षेप में हमें मन्त्र यह सदेश दे रहा है कि जब मानव ह्रदय में प्रभु का प्रकाश हो जाता है तो उसके अन्दर से अन्धकार स्वयमेव ही भाग जाता है , दूर हो जाता है , निकल जाता है । इस प्रकार प्रकाशित ह्रदय को सन्मार्ग की प्रेरणा देते हुए प्रभु अपने सेवकों के बंधनों को कर्मों के फल को देते हुए , कर्म के बंधनों से मुक्त करते हुए , सब बंधनों को काट देते हैं । जब ह्रदय वासना से शून्य हो जाता है , वासना से शुन्य हो जाता है , तब ही विश्व के उस महा उपदेशक अर्थात परमपिता परमात्मा की प्रेरणा के शब्द कानों में आते हैं ।
मन्त्र में कहा गया है कि हे प्रभु ! आप अग्नि होने के नाते अपने भक्तों को आगे ले जाते हैं, मोक्ष की और ले जाने वाले हैं । यही कारण है कि आपको अधिकांशतया अग्नि के नामसे ही पुकारा गया है । जिस प्रकार अग्नि सबको प्रकाशित कर आगे ले जाती है , उस प्रकार ही आप भी जीव को उसके कर्मों के अनुरूप फल देकर उसे आगे ले जातें हो , प्रकाश देते हो । मानव जीवन का यह लक्ष्य है कि वह आगे बढे , प्रगति को प्राप्त हो । अतः मानव जीवन में निरंतर प्रगति पाने के लिए, उन्नति के लिए , प्रकाश प्राप्त करने के लिए निरंतर कर्म कर रहा है तथा प्रभु भी मानव से निरंतर कह रहा है कि ” हे मानव ! तूने मोक्ष को पाना है किन्तु यह तब ही मिलेगा जब तेरे पर मेरी कृपा होगी ” । प्रभु की कृपा को पाने के लिए हम ने प्रयत्न करते हुए अच्छे कर्म करते , दूसरों की सहायता करते हुए उस प्रभु से हमारे ह्रदय के अन्धकार को दूर कर प्रकाश देने, ज्ञान देने की प्रार्थना करते है । जब हमारे में प्रभु के प्रकाश की ज्योति जग उठेगी तो वहां अन्धकार कैसे रह सकेगा ? प्रकाश में तो अन्धकार किसी भी अवस्था में रह ही नहीं सकता । प्रभु से प्राप्त ज्योति में, प्रकाश में सब प्रकार के अन्धकार, सब प्रकार के दोष दूर प्रकार के हो जाते हैं ।
जब मानव के जीवन से अन्धकार नष्ट हो जाता है , प्रकाश की ज्योति जग जाती है तो मानव को एक अन्य इच्छा होती है , इस इछा को कल्याण के नाम से जाना जाता है । अब मानव कल्याण चाहता है । इस निमित मन्त्र उपदेश कर रहा है कि हे प्रभु ! आप भक्तों के बन्धन को काटने का कार्य भी करें । वह जीव ही हव्य कहे जा सकते हैं , जो प्रभु में शरद्धा तथा विश्वास रखते हैं । जब तक प्रभु में विश्वास ही नहीं तब तक उसकी उपासना नहीं की जा सकती तथा बिना उपासना के प्रभु का आशीर्वाद नहीं मिल सकता । इसलिये प्रभु में पूर्ण विश्वास रख कर उसकी उपासना करने से प्रभु उसके आह्वान को सुनेंगे तथा उसके कृपा पात्र बनकर उसे कु छ देंगे । पारम्पिता परमात्मा उसके ही बंधनों को काटते हैं,जो सच्छे ह्रदय से उस का भक्त हो अन्य के नहीं । अत: उस प्रभु की कृपा को पाने के लिए सच्चे मन से उस का भक्त बनना होगा, उस प्रभु को स्मरण करना होगा,उस प्रभु के समीप जाना होगा,उसे अपना बनाना होगा, तब ही उसके आशीर्वाद से हमारा कलयाण होगा ।
मन्त्र जिस तीसरे तथ्य की और इंगित कर रहा है ,वह है कि हमें यह सब देकर प्रभु हमारे ह्रदय पर शासन करे, ह्रदय में निवास करे, ह्रदय में विराज हो । अत: हम परमपिता से प्रार्थना करते हैं कि हे सृष्टि के महान उपदेशक प्रभो ! जिस मानव ने आप का सानिध्य प्राप्त कर , जिस मानव ने आपकी उपासना कर, जिस मानव ने सद्कर्म कर आप का विश्वास प्राप्त किया है तथा अपनी वासनाओं को, अपने अज्ञान को, अपने अन्धकार को नष्ट कर लिया है , उस के ह्रदय रूपी अंतरिक्ष में अर्थात यह सब दूषण निकल जाने के पश्चात उन के ह्रदय में जो आकाश रूपी खाली स्थान बना है , उसमें आप निरंतर तथा सदा के लिए विराजमान हों, वहां आप अपना निवास बनावें। आप इस स्थान पर ही सदा अपना आसन रखें । अत: आप इस स्थान पर निवास करें, विराजमान होवें । हम सब जानते हैं कि वह प्रभु पवित्रता को ही पसंद करते है । जहाँ पवित्रता होती है, प्रभु स्वयमेव्व ही डेरा वहां डाल लेता है । जब हमारे हृदय से सब प्रकार के कलुष, सब प्रकार की कुवृतिया, सब प्रकार के क्लेश तथा सब प्रकार के अन्धकार नष्ट हो जावेंगे तो वह प्रभु निश्चय ही वहां अपना आसन जमा कर हमें प्रकाश देते हुए दर्शन देगा । इस प्रकार उस प्रभु के संपर्क में आकर हमें अनेकविध शक्ति प्रदान करता है । अत: यह शक्ति प्राप्त करने के लिए हमें अपने अन्दर को धोना है, सब क्लेशों से रहित करना है , कल्याण के मार्ग्ग पर आना है तथा प्रभु का हमारे अन्दर निवास हो सके अपने आप को इस योग्य बनाना है , तब ही हम आगे बढ़ सकेंगे ।
डा . अशोक आर्य
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