ओउम
हमारे योद्धा अग्नि के समान तेज वाले तेजस्वी हों
डा.अशोक आर्य
सेना मैं योधा का , सैनिक का विशेष महत्त्व होता है | जो योधा विजय की कामना तो रखता है किन्तु उसमें वीरता नहीं है , तेज नहीं है , बल नहीं , पराक्रम नहीं है , एसा व्यक्ति कभी वीर नहीं हो सकता , पराक्रमी नहीं हो सकता, तेजस्वी नहीं हो सकता | जो वीर नहीं है , बलवान नहीं है, तेजस्वी नहीं है , योधा नहीं है , एसा व्यक्ति किसी भी सेना का भाग नहीं होना चाहिए | यदि किसी सेना में इस प्रकार के भीरु लोग भर जावेंगे,वह सेना कभी शत्रु पर विजय प्राप्त नहीं कर सकती | इस समबन्ध में ऋग्वेद तथा अथर्ववेद के मन्त्र इस प्रकार आदेश दे रहे हैं :
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमानासो ध्रिषिता मरुत्व: |
तिग्मेशव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु अग्निरूपा: || ऋग्वेद १०.८४.१, अथर्ववेद ४.३१.१ ||
किसी भी देश की , किसी भी राष्ट्र की , किसी भी समुदाय की सुरक्षा उसके सैनिकों पर ही निर्भर होती है | सैनिकों का चरित्र जैसा होता है उसके अनुरूप ही उस राष्ट्र का उस देश का परिचय समझा जाता है | यदि देश के सैनिक उदात्त चरित्र हैं तो वह राष्ट्र भी उदात्तता का परिचायक माना जाता है | यदि देश के सैनिक प्रसन्न हैं तो वह देश भी प्रान्नता से भर पूर होगा | अत: जैसे सैनिक होंगे वैसा ही देश होगा , वैसा ही राष्ट्र होगा | इस कारण ही यह मन्त्र सैनिक के गुणों को निर्धारित करते हुए कहता है कि एक देश के सैनिकों में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है : –
(१) सैनिक सदा प्रसन्नचित हों : –
किसी भी देश के , किसी भी राष्ट्र के सैनिक का प्रथम गुण होता है , उसकी प्रसन्नता | सैनिक का सदा प्रसन्न चित होना आवश्यक होता है | प्रसन्नचित व्यक्ति बड़े से बड़े संकट का भी हंसते हुए सामना करता है | कष्ट से प्रसन्नचित व्यक्ति कभी डरता नहीं है | संकट से वह कभी भयभीत नहीं होता | जो व्यक्ति प्रसन्न रहता है, यदि वह योधा है तो वह सेना में अन्य सैनिकों को भी उत्साहित करेगा तथा बड़ी बड़ी परेशानियां जो युद्ध काल में आती हैं , उन सब का सामना वह प्रसन्नता से करेगा | इसलिए प्रत्येक सैनिक की वृति प्रसन्नता की होनी चाहिए | सैनिक सदा प्रसन्नचित होना चाहिए |
(२) सैनिक सदा निर्भीक हों : –
सैनिक का दूसरा गुण होता है निर्भीकता | भय को कायरता का चिन्ह माना गया है तथा कायर व्यक्ति कभी किसी भी क्षेत्र में विजयी नहीं हो सकता , फिर सेना में तो कायर सैनिक हो तो वह सदा उस सेना कि पराजय का कारण बना रहता है | सेना में ही नहीं प्रत्येक क्षेत्र में यह सब होता है | इस लिए ही मन्त्र कहता है कि सैनिक को कभी भी किसी प्रकार से भी भयभीत नहीं होना चाहिए | वह सदा निर्भय होकर युद्ध में जाना चाहिए | यदि वह निर्भय हगा तो वह खुला कर अपने पराक्रम दिखा सकेगा तथा सेना को विजय दिलाने का कारण बनेगा | यदि उसे युद्ध क्षेत्र में भी अपने परिजनों कि चिंता लगी रहेगी तो वह युद्ध क्षेत्र में होकर भी एकाग्र हो युद्ध नहीं कर पावेगा | अत: सनिक का निर्भय होना युद्ध विजय के लिए आवश्यक है |
(३) सैनिक सदा तीक्षण हों : –
किसी भी सेना का सैनिक सदा द्रुत गति वाला होना चाहिए , तेज होना चाहिए | ताकि शत्रु के संभलने से पहले ही वह उसके ठिकाने पर पहुंच कर उस पर आक्रमण कर दे | उसे संभलने ही न दे , तो वह शीघ्र ही विजयी होता है |
(४) सैनिक सदा शस्त्रधारी हों : –
किसी भी देश के सैनिक सदा अत्याधुनिक अस्त्र – शस्त्र से सुसज्जित हों | यदि उनके पास अच्छे शस्त्र ही न होंगे तो वह युद्ध में विजयी कैसे होंगे , शत्रु के अत्याधुनिक शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा में क्या जौहर कर दिखा पावेंगे | विजेता होने के लिए सदा शत्रु सेना से उत्तम शस्त्रों का होना आवश्यक है तथा यह शस्त्र सदैव सैनिक के हाथों में होना आवश्यक है | इसलिए सैनिक के पास , योधा के पास उत्तम कोटि के शस्त्र होना आवश्यक होता है |
(५) सैनिक अपने शास्त्रों को तीक्षण करने वाले हों : –
सैनिक के पास जो भी शस्त्र हों, वह सदा तेज धार वाले होने चाहियें | एक सैनिक के पास शस्त्र तो उत्तम किस्म के हों किन्तु उनकी धार ही कुंद पड़ चुकी हो तो वह शत्रु को सरलता से काट ही नहीं पावेंगे | जो एक ही वार से शत्रु का नाश क़र सके, एसी तलवार सैनिक के हाथों में होनी चाहिए | यदि तलवार की धार कुंद है तो बार बार के वार के पश्चात भी शत्रु सैनिक के बच जाने की संभावना बनी रह सकती है | अत: यदि हमारा सैनिक प्रसन्न व निर्भय है तो भी वह शस्त्र की कुंद धार के कारण विजयी नहीं हो पाता | इसलिये सैनिक के पास शत्रु पर विजय पाने के लिए तीक्षण शस्त्र का होना आवश्यक है |
(६) सैनिक अग्नि के सामान तेजस्वी हों : –
सेना का प्रत्येक सैनिक अग्नि के सामान तेज का पुंज होना चाहिए | जिस प्रकार आग कि लपटें अध्रष्ट होती हैं , छुप नहीं सकती, उसमें गिरा पदार्थ जलने से बच नहीं सकता , अग्नि सदा आगे ही आगे बढाती है , उस प्रकार ही सैनिक शत्रु को मारते काटते, उस पर विजयी होते हुए निरंतर आगे ही आगे बढ़ाते चले जाने चाहियें , निरंतर शत्रु सेना पर प्रलयंकर आक्रमण करते रहे | एक क्षण के लिए भी शत्रु को सुख से न बैठने दें |
मन्त्र कहता है कि जिस देश के सैनिकों में यह गुण होते हैं , उस देश की सेनायें सदा विजयी होते हुए निरंतर आगे ही आगे बढती चली जाती हैं , कभी पीछे नहीं देखती, विजयी ही होती चली जाती हैं | अत: प्रत्येक राजा को अपनी सफलता के लिए देश का गौरव बढाने के लिए अपने सैनिकों में यह गुण बनाए रखने चाहियें |
डा. अशोक आर्य १०४ शिप्रा अपार्टमेंट, कौशाम्बी, गाजियाबाद चलावार्ता ; ०९७१८५२८०६८