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हमारे सैनिक सब से श्रेष्ठ हों

ओउम
हमारे सैनिक सब से श्रेष्ठ हों
डा. अशोक आर्य
विशव में वही विजयी होते हैं ,जिनके पास अपार मनोबल हो ,जिससे वह असाध्य कार्य को भी बड़ी सरलता से कर सकें | विशव में वही सेनायें विजयी होती हैं , जिनके पासा अत्याधुनिक शस्त्र हों तथा विश्व में वही लोगविजयी होते हैं , वही देश विजयी होते हैं, वही सेनायें विजयी होती हैं, जिनके पास देवीय कृपा हो , देवताओं का आशीर्वाद हो | जिन देशों, जिन सेनाओं का मनोबल गिरा हुआ है , मायूस से हैं , उनको कभी विजय नहीं मिल सकती , जिस देश की सेनाओं के पास अत्याधुनिक तकनीक के शास्त्र नहीं हैं ,वह सेनायें भी युद्ध क्षेत्र में सदा भयभीत सी रहती हैं , उनका मनोबल गिरा सा होता है, इस कारण ऐसी सेनायें तो निराश सी, हताश सी हो कर युद्ध क्षेत्र में उतरती हैं , ऐसी सेनायें विजेता नहीं हो सकतीं तथा कर्म हीन सेनाओं के साथ देवता भी नहीं होते, इस कारण उन्हें देवताओं का आशीर्वाद भी नहीं होता, अत: वह भी विजयी नहीं होती | वेदों में ऐसे अनेक मन्त्र दिए हैं , जो हमें विजयी होने के साधन बताते हैं | जिन मन्त्रों के बताये मार्ग पर चलने से विजय निश्चित होती है | इस लिए विजयी होने के इच्छुक सैनिकों को वेद का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए तथा वेद में बताये विजय के उपायों को अवश्य ही अपनाना चाहिए | ऋग्वेद मन्त्र संख्या १०.१०३.११, अथर्व वेद मन्त्र संख्या १९.१३.११ यजुर्वेद मन्त्र संख्या १७.३ में विजय प्राप्त करने के बड़े सुन्दर साधन बताये गए हैं | मन्त्र इस प्रकार है : –
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु –
अस्मां उ देवा अवता हवेषु अस्माकं इंद्र; सम्रितेशु ध्वजेशु –
अस्माकं या इश्वस्ता | जयन्तु || ऋग.१०.१०३.११,अथर्व.१९.१३.११ ,यजु. १७.४३ ||
शब्दार्थ : –
(द्वजेषु) शत्रु सेनाओं के ध्वजों के (सम्रितेशु) एकत्र होने पर (इंद ) परमात्मा (अस्माकं रक्षिता भवतु) हमारा रक्षक हो (अस्माकं ) हमारे (या) जो (इशवा) बाण हैं ( ता:) वे (जयन्तु) विजयी हों (अस्माकं) हमारे (वीरा) वीर (उत्तरे) विजयी (भवन्तु) हों (उ) और (हे देवा:) हे देवो ! (हवेषु) आह्वान पर अथवा संग्रामों मैं (आस्मां) हमे (आवत:) रक्षा करो |
भावार्थ : –
शत्रु सेनाओं के ध्वजों के उद्यत होने पर परमात्मा हमारा रक्षक हो | हमारे बाण विजयी हों | हमारी सेनायें (वीर) सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हों | हे देवो ! हमारी पुकार पर तुम युद्धों में हमारी रक्षा करो |
इस मन्त्र में युद्ध सम्बन्धी तीन बातों की और ध्यान आकृष्ट किया गया है | ये तीन वातें हैं :-
(१)हमारी सेना के बाण ( शस्त्र ) शक्तिशाली, आधुनिक प्राद्योगिकी से भरपूर तथा विजेता हों :-
मन्त्र हमारा मार्ग दर्शन करते हुए बताता है कि हमारी सेनायें उच्चकोटि के शस्त्रों से सुसज्जित हो | आज शस्त्र प्रणाली विश्व में अति उत्तम, अति विकसित हो गयी है | वह समय गया, जब हम तीर, तलवार, गदा, लाठी, भाले या मुक्कों से युद्ध करते थे | युद्ध करते करते महीनों ही नहीं वर्षों बिताने पर भी कोई परिणाम सामने नहीं आता था | आज विज्ञान ने प्रत्येक क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है | यही कारण है कि विश्व में अत्याधूनिक तकनीक के स्वामी अमरीका जैसे देश नहीं चाहते कि विश्व का कोई देश उनके समकक्ष बनकर उसे चुनौती दे , इसलिए उन्होंने युद्ध सामग्री की नवीनतम तकनीक पर एकाधिकार स्थापित रखने के लिए एक संगठन बना रखा है तथा एसा प्रयास करते रहते हैं कि कोई भी देश इस प्रकार के कार्य को अपने हाथ में न ले, यदि कोई इस पर कार्य करता है तो उसे परेशान करते हैं, ताकि वह इस कार्य से अपना हाथ हटा ले | इस बात को ही इस मन्त्र ने स्पष्ट किया है कि हमारी सेनाओं के पास उच्च तकनीक के नवीनतम शस्त्र हों | जिस सेना के पास जितने उच्च तकनीक के अत्याधुनिक शस्त्र होंगे ,वह उतनी ही सरलता से शत्रु को विजय करने का सामर्थ्य रखती है | अत: उच्च तकनीक से युक्त शस्त्रों से सुसज्जित सेनायें शत्रु पर शीघ्र ही विजयी होंगी | इस के लिए न केवल उच्चकोटि के शस्त्र ही चाहियें अपितु उन शस्त्रों को प्रयोग करने की तकनीक का भी महीन ज्ञान हमारे सैनिकों को होना आवश्यक है | अन्यथा उत्तम शस्त्र होने के पश्चात भी विजय हाथ नहीं लगेगी | कोई व्यक्ति हाथ में बन्दूक लिए है किन्तु उसे चलाना नहीं जानता तो वह उस बन्दुक का क्या करेगा ? जब कोई गुंडा उसे परेशान करेगा तो वह कैसे उसका प्रतिशोध लेगा | हो सकता है कि सामने का निहत्था व्यक्ति उसकी ही बन्दुक छीन कर उस पर उसी से ही गोली दाग दे | इससे स्पष्ट होता है कि विजय पाने के लिए अच्छे शस्त्रों के साथ ही साथ उनके प्रयोक्ता भी अच्छे ही होने चाहियें | विजय इन दोनों बातों पर ही निर्भर कराती है |
(२)युद्ध में हमारे वीर ( सैनिक सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हों : –
जिस देश के पास सैनिक सर्वोत्तम हैं , युद्ध भूमि में विजय उस देश को ही मिलती है | इन पंक्तियों से वेद मन्त्र ने हमारे वीर सैनिकों के लिए यह शिक्षा दी है कि वह युद्धभूमि में सर्वश्रेष्ठ हों | अब हम विचार करते हैं कि सर्वश्रेष्ठ कौन हो सकता | सेना में वह सेना ही सर्वश्रेष्ठ होती है , जिस की सैन्य शिक्षा अति उत्तम हो | अनुशासन भी सेना कीविजय का मुख्य आधार है | अनुशासन ही सेना की योग्यता का आधार है | यही सैनिक की योग्यता की कसौटी है | विश्व इस बात का साक्षी है कि जिस सेना में अनुशासन है वह सेना ही विजयी होती है | यदि सेना में अनुशासन नहीं है, अपने नेता का अनुगमन नहीं करती, सब सैनिक अपना अपना राग अलाप रहे हैं तो शत्रु के लिए विजय का मार्ग स्वयमेव ही प्रशस्त हो जाता है | अत: अनुशासन रहित सेना उत्तम शास्त्र रखते हुए भी विजय नहीं प्राप्त कर सकती | अत: विजय की कामना की पूर्ति के लिए सेना की सर्वश्रेष्ठता के लिए उस का उत्तम प्रशिक्षण तथा उसका अनुशासन बद्ध होना भी आवश्यक है |
(३)हमारे ऊपर देवों की ( प्रभु की) कृपा हो :-
परमपिता परमात्मा सदा उसके ही साथ रहता है , जो सत्य व न्याय के लिए कार्य करता है| जब एक सैनिक निष्पक्ष हो कर सत्य व न्याय का ध्यान रखते हुए युद्ध क्षेत्र में उतरता है तो परमपिता परमात्मा उसकेकरी में उसका सहायक होता है | उसके कार्य को सम्पन्न करने में उसका सहयोगी होता है | अन्यायी व असत्य पथ पर चलने वाले की परमात्मा भी कभी सहायक नहीं होता | तभी तो योगिराज क्रिशन ने कहा था की जहाँ धर्म है, में उसका ही साथ दूंगा क्योंकि जिधर धर्म होता है, विजय उधर ही होती है | इस तथ्य का आधार भी यह वेद मन्त्र ही है | अत: विजय के अभिलाषी सैनिक के लिए यह भी आवश्यक है की वह न्याय का साथ कभी न छोड़े तथा धर्म का आचरण करे | एसा करने पर वह निश्चय ही अपने आश्रयदाता को विजय दिलवाने में सफल होगा | विदुरनीति में भी इस तथ्य पर ही प्रकाश किया है | विदुर जी लिखते हैं कि : –
यतो धर्मस्ततो जय: | विदुरनीति ७.९
अर्थात जहाँ धर्म है , वहां विजय है | अत: विजय के अभिलाषी सैनिक के लिए यह आवश्यक है कि उसके पास अत्याधुनिक सहस्त्र हों, इन शास्त्रों का पोअर्चालन भी वह ठीक से जानता हो | उसकी सैन्य शिक्षा भी उत्त्तम हो तथा अनुसासन में रहे | सदा सत्य व न्याय का पक्ष ले तो इसी सेना विश्व कि महानतम सेना होगी तथा इसी सेना ही विजय श्री का आलिंगन करेगी | अत: एसा गुण सेना को धारण करना चाहिए |

डॉ. अशोक आर्य