ओउम्
हमारा घर दतक सन्तान से भी सदा फूले
डा.अशोक आर्य
हम प्रशतेन्द्रिय होकर ही उस पिता की अपने घर में उपासना करें , उस पिता के पास बैठें । हमारे घर उत्तम सन्तान से युक्त हों | यदि किन्ही कारण से हमें दतक सन्तान लेनी पडती है तो भी हम वृद्धि को, उन्नति को ही प्राप्त हों । इस बात को इस मन्त्र मे इस प्रकार प्रकाशित किया गया है : –
यमश्वीनित्यमुपयातियज्ञंप्रजावन्तंस्वपत्यंक्षयंनः।
स्वजन्मनाशेषसावावृधानम्॥ ऋ07.1.12
१ प्रशास्तिन्द्रिय हो प्रभु के उपासक बनें
हे प्रभो ! हम प्रतिदिन प्रात: सायं प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला पुरूष आप की उपासना के लिये आप के चरणों में उपस्थित होते हैं । सब जानते हैं कि हमारी इन्दियाँ घोड़ों से भी तेज भागती हैं | मानव जीवन में गति का विशेष महत्व होता है और आज के युग में तो मंद गति वाले व्यक्ति को बेकार समझा जाता है | यह ही कारण है कि यह मन्त्र प्रशस्त अश्वों वाला पुरुष कहते हुए इश्वर की उपासना का , इश्वर के पास जाने का , उस प्रभु के पास आसन लगाने का उपदेश देते हुए मानव से यह प्रकट करवा रहा है कि हम अश्वों सरीखी प्रशस्त इन्द्रियों वाले होकर आपके निकट आते हैं | इस लिये हे प्रभु ! आप हमें एसा गृह दें, जो उत्तम प्रकार के पुरूषों से भरा हो, उत्तम सन्तानों से भरा हो । इस का भाव यह है कि इस घर में जो बडे लोग अर्थात माता पिता आदि निवास करते हैं ,वह उत्तम जीवन मूल्यों से भरपूर हो , उत्तम मार्ग पर चलने वाले तथा उत्तम कार्य करने वाले हों । इतना ही नहीं इस प्रकार के मुखिया से युक्त इस घर की सन्तानें भी उत्तम ही हों ।
मानव सदा उतम की ही प्राप्ति चाहता है | उतम जीवन , उतम विचार , उतम व्यवहार ही उस के यश व कीर्ति को बढाते हैं और उसे धन ऐश्वर्यों का स्वामी बनाते हैं | इस उतम को पाने के लिए उसे अपनी गति को ग्जोदों के समान तीव्र करना होता है | इतना ही नहीं हम यह भी इच्छा करते हैं कि हमारी संतान भी उतम हो | हमारी संतान भी हमारे जैसी ही नहीं अपितु हमारे से भी अधिक तीव्रगामी हो | इस लिए हम सदा अपनी संतानों को भी अधिक से अधिक योग्य बनाने का प्रयास करते है और कसी कारण हमें दतक संतान लेनी पड़ती है तो उसमें भी अह सब गुण देखना चाहते हैं | इस सब की प्राप्ति ए लिए ha तीव्रगामी हो कर प्रभु की उपासना करते हैं |
यहां प्रभु से इस मन्त्र के माध्यम से यह भी प्रार्थना की गयी है कि हमें जो घर प्राप्त हो , वह घर अपने से उत्पन्न सन्तानों से उन्नति पावे तथा ऒरस सन्तानों से भी वृद्धि को , उन्नति , को, सफ़लताओं को प्राप्त करे ।
२ शत्रुओं को नष्ट करें
जो परिवार उतम होता, उस परिवार का घर सदा धन धान्य से भरा रहता है | धन ऐश्वर्यों की इस परिवार में सदा वर्षा होती रहती है | जहाँ धन ऐश्वर्यों की वर्षा हो,वहां सम्पन्नता न हो , एसा तो कभी सोचा ही नहीं जा सकता ओर संपन्न परिवार के भरे खजानों के कारण उस की ख्याति दूर दूर तक फ़ीस जाती है | इस खायाती के कारण अनेक लोग इस परिवार का आदर करते हैं तो अनेक लोगों की बुरी दृष्टि भी इस परिवार पर पड़ती है | यह बुरे लोग इस परिवार के प्रति इर्ष्या रखने लगते हैं तथा शाम , दम ,दंड , भेद से इस परिवार की सम्पति को प्राप्त करना चाहते हैं | इस प्रकार के लोगों की यह चाहत ही इस परिवार के लिए शत्रुता का कारण बनती है | इन शत्रुओं से परिवार की , अपने घर की रक्षा करने के लिए अनेक बार हमें जूझना होता है | इसके लिए अतुलित शक्ति की भी आवश्यकता होती है | इसलिए प्रभु चरणों में बैठ कर जहाँ हम उतम संतान कि मांग करते हैं वहां हम उस परम पिता से यह भी प्रार्थना करते हैं कि हम इतने बलशाली हों , हम इतनी शक्ति से संपन्न हों कि मन शत्रु सेनाओं को बड़ी सरलता से नष्ट कर सकें |
डा. अशोक आर्य