हम शाकाहारी क्यों बनें?
– डॉ. गोपालचन्द्र दाश
गर्मी का महीना है। गर्मी की छुट्टी के कारण सभी स्कूल बन्द हैं। एक लड़का अपने मामाजी के घर घूमने आया। उसके मामा ने उससे कहा कि एक कबूतर को पकड़कर लाओ। उसके मामा मांसाहारी थे। वे कबूतर की हत्या करके उसके मांस को पकाकर खाना चाहते थे। इसी शंका से लड़के ने कबूतर को पकड़ने के लिए पहले मना कर दिया था। उसके मामा ने भरोसा दिलाया कि वे कबूतर की हत्या नहीं करेंगे। आखिर मासूम लड़के ने कबूतर को पकड़ कर मामाजी को सौंप दिया। मामा अपने आश्वासन से मुकर गए और उसी रात कबूतर की हत्या करके उसके मांस से व्यंजन बनाए। यह घटना जानकर उस लड़के को बहुत मानसिक कष्ट हुआ। इसने उसके मन को उद्वेलित किया। रात में खाने के लिए बुलाने पर उसने सीधा मना कर दिया। रात भर बिना भोजन किए सोया। परिवार के सभी लोग लड़के से प्यार करते थे। उसका समर्थन करते हुए परिवार के दूसरे लोगों ने भी रात में भोजन नहीं किया। अगले दिन मामाजी को ज्ञात हुआ कि परिवार के सभी लोग उपवास पर हैं। मामाजी ने अपनी गलती को महसूस किया। लड़के के सामने उन्होंने कसम खायी कि भविष्य में कभी जीवहत्या नहीं करेंगे। वे पूर्ण शाकाहारी बन गए। अपने परिवार के बुजुर्ग लोगों के हृदय में संपूर्ण परिवर्तन लाने के कारण उक्त शाकाहारी बालक स्वाधीन भारत का प्रधानमंत्री बना। भारत के उस महान् सपूत का नाम है लाल बहादुर शास्त्री।
कुछ दिन पहले किसी एक दैनिक समाचार पत्र में रंगीन विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। उक्त विज्ञापन की विषयवस्तु पढ़ने से मन दुःख से खिन्न हो गया। अँग्रेजी में लिखित विज्ञापन की विषयवस्तु इस प्रकार थीः- Dear meat lovers, we bring to you best desi khassi kids between the age of 6 to 8 months only rich your plate. Please contact…………विज्ञापन में एक सुन्दर मेमने की तस्वीर बनी थी। इसका आशय यह है कि ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए यह एक व्यवसायिक चाल थी। अपनी जीभ की लालसा को तृप्त करने के लिए मांसाहार करने के कारण ग्राहकों को समाज में उस तरह का विज्ञापन दृष्टिगत होता है। भुवनेश्वर की सड़क की पगडंडी के अधिकांश स्थान पर विज्ञापन पट्ट पर लिखा हुआ है- ‘‘मिट्टी के बर्तन में पकाया गया मांस और भात (बिरयानी)’’। इस तरह का विज्ञापन मांसाहार को प्रोत्साहित करता है। मानव शरीर के लिए मांसाहार अनुकूल है या नहीं, यह बात जानने से पहले यह जानना चाहिए कि आदमी जीभ के स्वाद के लिए खाता है। मांसाहारी व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से जीव हत्या नहीं करने के बावजूद वह निश्चित रूप से महापाप में मुख्य भूमिका निभाता है।
बच्चा प्रसव के पश्चात् माँ का दूध पीता है। माँ का दूध उपलब्ध न होने से माँ के घरवाले गाय के दूध की व्यवस्था करते हैं। इसलिए मनुष्य जन्म से शाकाहारी है। आयु के बढ़ने के बाद परिवार और समाज के प्रभाव से व्यक्ति मांसाहारी बन जाता है। समाज में विद्यमान कुशिक्षा उस की जड़ है। शरीर की संरचना की दृष्टि से मानव शरीर शाकाहारी भोजन के लायक है। उदाहरण के तौर पर-
१. मांसाहार करनेवाले प्राणी की लार में अम्ल की मात्रा अधिक होती है।
२. मांसाहारी प्राणी के रक्त की रासायनिक स्थिति (पी.एच.) कम है अर्थात् अम्लयुक्त है। शाकाहारी प्राणी के रक्त का पी.एच. ज्यादा है अर्थात् क्षारयुक्त है।
३. मांसाहारी प्राणी के रक्त में स्थित लिपोप्रोटीन शाकाहारी प्राणी से अलग होता है। शाकाहारी प्राणी का लिपोप्रोटीन मनुष्य जैसा होता है।
४. मांस की पाचन क्रिया में मांसाहारी प्राणी के आमाशय में उत्पन्न हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा मनुष्य की तुलना में दस गुणा होती है। मनुष्य और अन्य प्राणियों के आमाश्य में उत्पन्न अम्ल (एसिड) की मात्रा कम होने के कारण मांस की पाचन क्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
५. मांसाहारी प्राणी की आंत्रनली की लम्बाई छोटी और शरीर की लम्बाई के बराबर होती है। आंत्रनलिका छोटी होने के कारण मांस शरीर में विषैला होने से पहले बाहर निकल जाता है, परन्तु मनुष्य और अन्य शाकाहारी प्राणियों की आंत्रनली की लम्बाई शरीर की लम्बाई से चार गुणा अधिक होती है, इसलिए मांसाहार से उत्पन्न विषैला तत्त्व शरीर से सहज ढंग से निकल नहीं सकता है, इसलिए शरीर रोगाक्रान्त हो जाता है। मांसाहार से उत्पन्न प्रमुख रोग हैं-उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदयरोग, गुर्दे का रोग, गठिया, अर्श, एक्जीमा, अलसर, गुदा और स्तन कर्कट आदि।
६. शिकार को सहज ढंग से पकड़ने के लिए मांसाहारी प्राणी की जीभ कंटीली, दाँत पैने और ऊँगलियों में पैने नाखून होते हैं। लेकिन शाकाहारी प्राणी की जीभ चिकनाईयुक्त, चौड़े दाँत और नाखून आयताकार जैसे होते हैं। शाकाहारी प्राणी होंठ के सहारे पानी पीता है, परन्तु मांसाहारी प्राणी जीभ से पानी पीता है।
७. मांसाहारी प्राणी की जीभ ऊपर और नीचे की और गतिशील होती है। इसलिए वे बिना चबाकर भोजन को निगल लेते हैं, इसके विपरीत शाकाहारी प्राणियों की जीभ चारों दिशाओं में गतिशील होती है। इसलिए वे भोजन को चबाकर खाते हैं।
८. मांसाहारी भोजन से शरीर में उत्पन्न अधिक वसा आदि के निर्गत के लिए उनके यकृत और गुर्दे का आकार बड़ा होता है। शाकाहारी प्राणियों के ऐसे अंग-प्रत्यंग छोटे होने की वजह से धमनी में एथेरोक्लेरोसिम जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।
९. शाकाहारी की तुलना में मांसाहारी जीव की घ्राणशक्ति तेज तथा आवाज कठोर और भयानक होती हैं। ऐसे गुण उन्हें शिकार के लिए मदद करते हैं।
१०. मांसाहारी प्राणी की संतान जन्म के बाद एक सप्ताह तक दृष्टिहीन होती हैं। मनुष्य की तरह अन्य शाकाहारी पशु की संतान जन्म के बाद देख सकती हैं। ऐसे सभी विश्लेषण से ज्ञात होता है कि मानव शरीर की संरचना अन्य मांसाहारी प्राणियों से भिन्न होती हैं और शाकाहारी प्राणियों के अनुरूप होती हैं। इसलिए मनुष्य हमेशा एक शाकाहारी प्राणी है।
मनुष्य से भिन्न दुनिया का अन्य कोई भी प्राणी अपनी शारीरिक संरचना एवं स्वभाव के विपरीत आचरण नहीं करता है। उदाहरण के रूप में बाघ भूखा रहने पर भी शाकाहारी नहीं बनता है अथवा गाय भूख के कारण मांसाहार नहीं करती है। कारण यह कि ऐसा उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं है, परन्तु मनुष्य जैसे विवेकशील एवं बुद्धिमान् प्राणी में इस तरह के प्रतिकूल स्वभाव पाए जाते हैं। मनुष्य का भोजन केवल पेट भरने तथा स्वाद तक सीमित नहीं है। यह मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, चरित्रगत तथा बौद्धिक स्वास्थ्य के विकास में मुख्य भूमिका निभाता है। इसके लिए कहा गया है- ‘‘जैसा अन्न, वैसा मन’’। भोजन में रोग उत्पन्न करनेवाला, स्वास्थ्य को बिगाड़नेवाला और उत्तेजक पदार्थ रहने से वह शरीर के लिए हानिकारक होता है तथा शरीर के लिए विजातीय तत्त्वों को बाहर निकालने में रुकावट पैदा करता है। भोजन ऐसा होना चाहिए जिससे कि शरीर से अनावश्यक तत्त्व शीघ्र बाहर निकलने के साथ-साथ रोगनिरोध शक्ति उत्पन्न हो। पेड़ पौधों से बनाए जाने वाले शाकाहारी भोजन में पर्याप्त रेशा (फाइबर) होने के कारण यह कब्ज को दूर करने के साथ-साथ अनावश्यक पदार्थ जैसेः- अत्यधिक वसा (फैट) और सुगर आदि मल के रूप में निर्गत करवाता हैं। इसी वजह से व्यक्ति को मधुमेह और उच्च रक्तचापआदि रोगों से मुक्ति मिलती है। मांसाहारी खाद्य की तुलना में शाकाहारी खाद्य में स्वास्थ्यवर्धक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है। यह व्यक्ति को स्वस्थ, दीर्घायु, निरोग और हृष्टपुष्ट बनाता है। शाकाहारी व्यक्ति हमेशा ठंडे दिमागवाले, सहनशील, सशक्त, बहादुर, परिश्रमी, शान्तिप्रिय आनन्दप्रिय और प्रत्युत्पन्नमति होते हैं। वे अधिक समय बिना भोजन के रहने की क्षमता रखते हैं। इसलिए उनके पास दीर्घ समय तक उपवास करने की क्षमता है। उदाहरण स्वरूप भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने इस वर्ष नवरात्रि पर्व के दौरान अपनी अमेरीका यात्रा के दौरान लगातार पाँच दिनों तक उपवास करके केवल गर्म पानी पी कर धाराप्रवाह भाषण के माध्यम से दिन-रात अनेक सभाओं को बिना अवसाद सम्बोधित किया था। यह घटना विश्ववासियों को आश्चर्यचकित करती थी।
शाकाहारी भोजन न केवल शक्ति प्रदायक होता है, यह आर्थिक दृष्टि से किफायती भी है। शाकाहारी भोजन द्वारा पशुधन सुरक्षित होने के साथ-साथ इसका सही उपयोग होता है। गौ पशुधन से प्राप्त दूध, दूध-सम्बन्धी उत्पाद, गोबर खाद, ईंधन गैस और विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। मुर्गी वातावरण की संरक्षा और मछली जल का शोधन करती है। इसके विपरीत यदि शाकाहारी प्राणी प्रतिदिन मांसाहार करता है तो इतनी मात्रा में अम्ल और जहरीला पदार्थ उत्पन्न होंगे तो शारीरिक क्रिया को क्रमशः ठप करा देंगे। उससे व्यक्ति अल्पायु होता है। उदाहरण के तौर पर भौगोलिक परिवेश के अनुरूप मांसाहार से जीवनयापन करने के कारण एस्किमों की औसत आयु सिर्फ ३० वर्ष होती है। कसाईखाने में मासूम जानवर अपनी आत्मरक्षा का प्रयास करते हुए छटपटाता है। भय और आवेग से पशु के शरीर से अत्यधिक मात्रा में आड्रेनलीन उत्पन्न होता है। यह एक उत्तेजक हारमोन है। इससे पशु का मांस विषैला बन जाता है। उक्त मांस को खानेवाला व्यक्ति हमेशा सामान्य उत्तेजक स्थिति में उत्तेजित होता हैं एवं क्रुद्ध बन जाता है। मांसाहार से सम्बद्ध अन्य बुरी आदतें हैं जैसे- मदिरा पान, धूमपान। मांस और मदिरा के चपेट में आकर मनुष्य अज्ञात रूप से बहुत कुकर्म करता है।
विगत दिनों की घटनाओं पर चिंतन करने पर यह पाया गया है कि वाइरसजन्य बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू समग्र विश्व में बारबार महामारी का रूप लेते हैं। ये रोग मुर्गियों और सूअरों के माध्यम से मनुष्य को संक्रमित करते हैं। उपर्युक्त पक्षी और जानवर का मांसाहार इसका प्रमुख कारण है। शाकाहारी जीवन शैली से इन रोगों का संपूर्ण निराकरण किया जा सकता है। मछलियों, मांस और अण्डों को सुरक्षित रखने के लिए व्यवहृत विभिन्न किस्म के रसायन मनुष्य शरीर के लिए हानिकारक हैं। परीक्षा से इस बात की पुष्टि की गई हैकि यदि अण्ड़े को आठ डिग्री सेंटिग्रेड से अधिक तापमान में बारह घंटे से अधिक समय के लिए रखा जाता है तो अन्दर से अण्डे की सड़न प्रक्रिया शुरू हो जाती है। भारत जैसे ग्रीष्म मंडलीय जलवायु में अण्डे को निरन्तर वातानुकूलित व्यवस्था में रखा जाना संभव नहीं हो पाता है। ये वाइरस, टाइफाइड और खाद्य सामग्री को विषैला बना देते हैं। लिस्टेरिया वाइरस गर्भवती महिलाओं में गर्भपात की समस्या तथा गर्भस्थ शिशु में रोग उत्पन्न करता है।
मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है। अहिंसा मानव का परम धर्म है। सभी धर्मों में जीवहत्या का विरोध किया गया है। जीवहत्या के बिना मांसाहार असंभव है। दया और विनम्रता गुण मनुष्य के भूषण होते हैं। निर्दयता मनुष्य को जीवहत्या के लिए प्रेरित करती है। यह मनुष्य का गुण नहीं है, अवगुण है। महात्मा बुद्ध, वर्धमान महावीर, महर्षि दयानन्द, संत कबीर और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषगण जीवहत्या का विरोध करते थे और कहते थे कि मांस की खरीद करने वाला आदमी मांसाहार करने वाले आदमी की तरह दोषी हैं।
वर्तमान समाज में परिवर्तन की लहर आई है। पाश्चात्य देश के लोग हमारी संस्कृति से प्रभावित होकर धीरे-धीरे शाकाहारी बन रहे हैं, परन्तु हम लोग विपरीत आचरण कर रहे हैं। जन जागरण के लिए वर्तमान केबिनेट मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी समाचार पत्रों और दूरदर्शन के माध्यम से मांसाहार के कुपरिणाम और शाकाहार के लाभ के बारे में निरन्तर अपने विचार व्यक्त करती आ रही हैं। कनाडा के अनुसंधानकर्त्ताओं की एक टीम ने ५ सालों के परीक्षण के बाद ‘अम्बलीडमा अमेरिकनस’ नाम से एक कीड़े का आविष्कार किया है। ठंडे परिवेश में अपने वंश का विस्तार करने वाला कीड़ा यदि आदमी को काट देता है तो उसके शरीर में एक अस्वाभाविक परिवर्तन होता है।
मनुष्य की भावना उसके कर्म को प्रभावित करती है। जिस व्यक्ति में अहिंसा, दया, क्षमा और उपकार करने की भावना है, वह अन्य किसी प्राणी को दर्द देनेवाला निर्दय कर्म नहीं करेगा। प्राणी के कष्ट को हृदय में महसूस करने वाला व्यक्ति मांसाहार करेगा, इसकी कल्पना कभी भी नहीं की जा सकती है, तो आइए, हम सब शाकाहारी बनें। – अपर स्वास्थ्य निदेशक, पूर्व तट रेल्वे, भुवनेश्वर।