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कुरान समीक्षा : एक व दस सूरतें बनाने की शर्त

एक व दस सूरतें बनाने की शर्त

खुदा एक सूरत पेश करने की पहली शर्त पर कायम न रह कर दस सूरतों की शर्त क्यों पेश कर बैठा? इसका रहस्य खोल कर बताया जावे? पहले दस की शर्त लगातार फिर घटाकर एक की रखना तो ठीक था पर एक से एक दम बढ़ाकर दस कर देना रहस्य पूर्ण है। यह रहस्य खोला जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अम् यकूलूनफ्तराहु कुल् फअ्-तू……….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा यूनुस रूकू ४ आयत ३८)

क्या वह कहते हैं कि इसने कुरान खुद (मुहम्मदव ने) बना लिया? (तू कह दे कि) यदि सच्चे हो तो ‘‘एक’’ऐसी ही सूरत तुम भी बना लाओ और खुदा के सिवाय जिसे चाहो बुला लो।

अम् यकूलून फतराहु कुल् फअ्तू………….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू २ आयत १३)

क्या काफिर कहते हैं कि उसने कुरान को अपने दिल से बना लिया है, तो इनसे कहो कि अगर तुम सच्चे हो तो तुम भी इसी तरह की बनाई हुई ‘‘दस’’सूरतें ले आओ और खुदा के सिवाय जिसको तुमसे बुलाते बन पड़े बुला लो अगर तुम सच्चे हो।

समीक्षा

पहले खुदा ने एक सूरत बनाने की शर्त लगाई थी। पर जब किसी ने सूरत बनाकर पेश कर दी होगी तो झट खुदा ने दस सूरतें बनाने की शर्त बदल दी। अरबी खुदा अपनी जुबान का भी पक्का नहीं था। उसे अपनी बात बदलने में कुछ भी शर्म व संकोच नहीं होंता था। आखिर अरबी खुदा ही हो तो था, दुनियां का खुदा तो था नहीं! जब खुदा ने देखा कि लोग दस सूरतें भी बनाने में लगे हुए हैं और लगातार यह ऐतराज करते हैं कि ‘‘कुरान खुदाई ने होकर मुहम्मद उसें खुद बना रहा है’’तो उसने यह कहकर अपनी जान छुड़ाई कि-

अम् यकूलूनफ्तराहु कुल् इनि……….।।

(कुरान मजीद पारा ११ सूरा हूद रूकू ३ आयत ३५)

क्या तुमको झुठलाते हैं और तुम पर ऐतराज करते है और कहते हैं कि कुरान को इसने खुद बना लिया है (तुम) उनको जवाब दो कि) उनको जवाब दो कि अगर कुरान मैंने खुद बना लिया है तो मेरा गुनाह मुझ पर है और जो गुनाह तुम करते हो उस पर मेरा कुछ जिम्मा नहीं।

समीक्षा

हर परेशान व्यक्ति यही कहता है कि जो परेशानी खुदा ने मुहम्मद से कहला कर बात खत्म कर दी थी। गलत बात का आखिर समर्थन कब तक किया जा सकता था ?