दैनिक यज्ञ-प्रार्थना
पूजनीयप्रभोऽस्माकं।
क्रियतां भावमुज्ज्वलम्।
विना छलेन जीवाम।
बौद्धबलं प्रदीयताम्।।
सर्वे वदन्तु ऋग्वाणी।
जीवने सत्यधारणम्।
जीवन्तु मोदमानाश्च।
तरामः शोकसागरात्।।
अश्वमेधादियज्ञंतु।
यजन्तां नरपुङ्गवः।
सञ्चाल्य धर्म मर्यादां।
संसार सुलभामहै।।
श्रद्ध्या भक्त्या च नित्यं हि।
यज्ञादिकं यजामहै।
रोगपीडितविश्वस्य।
संतापं हर्त्तुमुद्यताः।।
मनसो भावना लुपेत्।
पापस्य पीडनस्य च।
पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
यज्ञेन नर-नारीणाम्।
लाभकारी भवेद् यज्ञः।
प्राणीं प्राणीं प्रति प्रभो।
जलवायुं तु सर्वत्र।
शुभगन्धसुधारकः।।
भूयात् प्रेमपथव्यासः।
व्रजेम स्वार्थ-भावना।
प्रत्येके व्यवहारे स्यात्।
इदन्न मम सार्थकम्।।
सप्रार्थयामहे नित्यं।
प्रभुप्रेमसमर्पितम्।
हे लोकनाथ! कारुण्य सर्वोपरि तवाशीषः।।
– डॉ. वेदप्रिय प्रचेता (जितेन्द्रनाथ)