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सन्ध्या-रहस्य का यह संस्करण – राजेन्द्र जिज्ञासु

पं. चमूपति रचित सन्ध्या रहस्य पुस्तक के विषय में कुछ लिखना, लेखक के लिये एक गौरव की बात है। क्यों? इसका उत्तर मैं साधु ट.ल. वास्वानी के शदों में देना अधिक उपयुक्त मानता हॅूँ। अर्थात् मेरा जितना ज्ञान है आचार्य चमपति उससेाी कहीं अधिक गहराई से लिखते हैं। इससे भी बढ़कर तो यह बात है कि वे जो कुछ भी लिखते हैं वह अत्यन्त सुन्दर, भक्तिभाव में डूबकर लिखते हैं और जब लिखना ही भक्ति पर, सन्ध्या उपासना पर हो तो उन्होंने कितना भक्ति विलीन होकर लिखा होगा, यह बताया नहीं जा सकता।

योगनिष्ठ लेखक द्वारा लिखितः आज का युग विज्ञापन का युग है। लोकैषणा को तजने की घोषणा व प्रतिज्ञा करने वाले साधु महात्मा भी आज विज्ञापन के संसार में किसी से पीछे नहीं। अपनी योग साधना व समाधि तक का ढोल बजाने वाले साधुओं पर गृहस्थों को आश्चर्य होना स्वाभाविक है। अपने जीवन-परिचय में आज समाधि लगाने का उल्लेख होता है। पं. चमूपति एक योगनिष्ठ विद्वान् थे, यह उस काल के सब जन जानते थे परन्तु, पं. चमूपति जी ने अपनी योग साधना का कभी भी, कहीं भी कोई संकेत नहीं दिया। हाँ! उनके निधन पर महाशय खुशहाल चन्द जी (महात्मा आनन्द स्वामी) ने एक शोक सभा में श्रद्धाञ्जलि देते हुए उनके जीवन के इस पक्ष की चर्चा की थी। फिर मैंने उनको निकट से देखने वाले कई पुराने आर्यों यथा पं. शान्तिप्रकाश जी, स्वामी सर्वानन्द जी तथा पं. ज्ञानचन्द आर्य सेवक आदि से भी इसके बारे में सुना।

वेदशास्त्र मर्मज्ञ द्वारा लिखितः आचार्य चमूपति वेदशास्त्र मर्मज्ञ थे। ये तो विधर्मी भी स्वीकार करते हैं। इस सन्ध्या रहस्य पुस्तक-रत्न की विशेषता यह भी तो है कि इसमें ईश्वर की सत्ता, उसके स्वरूप, उसकी रचना, उसकी स्तुति, प्रार्थना और उपासना पर इस शैली से लिखा गया है कि उनकी यह कृति जन साधारण तथा विचारकों विद्वानों दोनों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। पुस्तक का एक-एक पैरा व एक-एक वाक्य हृदय स्पर्शी व मार्मिक है।

सन्ध्या गीतः सन्ध्या रहस्य के कई प्रकाशकों ने कई संस्करण प्रकाशित किये हैं। परोपकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित किये जा रहे इस संस्करण की एक विशेषता यह है कि इसके साथ पण्डित जी के सन्ध्या गीत का शुद्धतम पाठ पहली बार छप रहा है। हमें इस सन्ध्या गीत की जानकारी बीकानेर के वयोवृद्ध आर्य और पुस्तक संग्रही श्रीमान् ठाकुरदास जी से प्राप्त हुई। उन्होंने इसकी प्रतिलिपि (जो उनके पास थी) हमें प्रदान की परन्तु, वह दोषयुक्त थी फिर भी हमने कुछ सुधार कर छपवा दी। अधिक छेडछाड़ का हमें क्या अधिकार था?

अब की बार सन्ध्या गीत की पं. चमूपति जी की अनुाूमिका भी खोज कर दे दी है। सन्ध्या का पद्यानुवाद तो मुंशी केवल कृष्ण जी, पं. वासुदेव जी, श्री धर्मवीर जी (पंजाबी में), स्वामी आत्मानन्द जी महाराज, स्वामी अमृतानन्द जी, महाकवि ‘शान्त’ लेखराम नगर कादियाँ आदि अनेक आर्य कवियों व विद्वानों ने किया परन्तु एक संगीत मर्मज्ञ ने इस लेखक को बताया कि साहित्यिक तथा संगीत शास्त्र की दृष्टि से पं. चमूपति जी का यह पद्यानुवाद बेजोड़ है। मेरा यह मत है कि स्वामी आत्मानन्द जी का पद्यानुवाद भी अत्यन्त साहित्यिक है। काव्य शास्त्र व संगीत शास्त्र की दृष्टि से वह भी अत्युत्तम है।

पिता पुत्र ने पद्यानुवाद कियाः पं. चमूपति जी के सन्ध्या रहस्य व सन्ध्या गीत की तो सभी प्रशंसा करते ही हैं, हम पाठकों को यह भी बताना चाहते हैं कि पंडित जी के ज्येष्ठ पुत्र डॉ. लाजपतराय डी.लिट. ने भी सन्ध्या का पद्यानुवाद किया था जिसे स्वामी वेदानन्द जी महाराज जैसे शास्त्र मर्मज्ञ साहित्यकार ने छापा था। वह भी अदुत था।

गुत्थियों को सुलझाया हैः पण्डित जी की इस व्याया पर पाठकों की सेवा में क्या-क्या विशेषतायें गिनाई बताई जायें। मनसा परिक्रमा को पण्डित जी ईश्वर की रचना का मन से परिभ्रमण कहा करते थे। एक बार कहा कि ईश्वर की सर्वव्यापकता, उसकी कला व महानता के बोध कराने वाले मन्त्र मनसा परिक्रमा क्या हैं, ¤्नह्म्शह्वठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ख्शह्म्द्यस्र ख्द्बह्लद्ध ञ्जद्धद्ग रुशह्म्स्र.¤ अर्थात् यह तो प्रभु का ध्यान करके, प्रभु संग सृष्टि का परिभ्रमण है। उनके पुत्र डॉ. लाजपत का कहना था मनसा परिक्रमा से तो मन की दशा व दिशा का बोध होता है।

जीवन बीमाः पं. चमूपति सन्ध्या को जीवन बीमा बताते हैं। यह भूमिका उनकी एक मौलिक देन है। जप तप सचमुच जीवन बीमा हैं। कोई भी व्यक्ति और जाति तप शून्य होकर संसार में नहीं जी सकती। सन्ध्या रहस्य के आरभ में बहुरूपी सन्ध्या आदि जिन आठ बिन्दुओं पर पण्डित जी ने लिखा है, वे सब पठनीय व मनन करने योग्य है। सच तो यह है कि वैदिक अध्यात्मवाद का यह एक अनूठा दस्तावेज है।

सब शंकाओं का समाधानः वैदिक आस्तिकवाद, त्रैतवाद व अध्यात्मवाद पर की जाने वाली सब शंकाओं का समाधान बहुत उत्तमता से इसमें किया गया है। ऋत क्या? सत्य क्या है? इस विषय में पं. चमूपति जी तथा पूज्य उपाध्याय जी का चिन्तन अत्यन्त मौलिक व तार्किक है।

अघमर्षण मन्त्र का रहस्यः ‘अघमर्षण’ शद  का अर्थ है पाप को दूर करना या पाप को मसलना। इन मन्त्रों में न तो पाप शद आया है और न ही मसलने व दूर करने की कोई बात कही गई है। इस प्रश्न को उपाध्याय जी ने भी उठाया है। हमारे प्रबुद्ध पाठक पं. चमूपति जी का समाधान पढ़कर वाह! वाह!! करने लगेंगे। पाप का मुय कारण तो अहंकार व हीन भावना ही हैं। अमरीका के एक प्रयात डाक्टर ने तो आज के युग के भयानक रोगों यथा रक्तचाप, हृदय रोग व तनाव का कारण अहंकार व हीन भावों की विकृति को बताया है। आत्महत्या का घृणित पाप हीन भावना से ही मनुष्य करता है। पं. चमूपति जी की अघमर्षण मन्त्रों की व्याया का प्रचार यदि आन्दोलन का रूप ले ले तो विश्व का बहुत कल्याण हो। उपाध्याय जी ने भी अपनी पुस्तक सरल सन्ध्या विधि में लिखा है, ‘‘जो पुरुष ब्रह्माण्ड में ईश्वर के अस्तित्व को अनुभव करता है वह पाप से बचा रहता है।’’

यहाँ दोनों मनीषियों का चिन्तन एक जैसा है। वैदिक सन्ध्या में महर्षि दयानन्द जी ने वैदिक धर्म व दर्शन की अनूठी झांकी दी है। आज देश की गली-गली में गुरुडम वाले यह रागिनी सुना रहे हैं, ‘भक्तों के वश में भगवान्’ सन्ध्या मन्त्रों में आया है, ‘विश्वस्य मिषतो वशी’ अर्थात् सारा विश्व उस प्रभु के वश में है। ‘अदीनः स्याम शरदः शतम्’ की व्याया जो आचार्य पं. चमूपति जी ने की है, वह संसार के किसी भी वृद्ध मतावलबी को सुनाकर पूछिये क्या ऐसी प्रार्थना संसार की किसी पूजा पद्धति में है? सबका हृदय बुढ़ापे में यही साक्षी देगा कि इस वैदिक सन्ध्या का मर्म व महत्ता एवं उपयोगिता कोई शदों में नहीं बता सकता।

– वेद सदन, अबोहर, पंजाब