ब्रह्मकुमारियों के षड़यंत्र से सावधान
– स्वामी पूर्णानन्द
लगभग 58 वर्ष पहले स्वामी पूर्णानन्दजी द्वारा लिखा गया यह आलेख आज भी हमें सावधान करता है।
-सपादक
सब हिन्दू धर्मावलबी सज्जनों की सेवा में निवेदन किया जाता है कि लगभग 2 वर्ष से मेरठ में ब्रह्माकुमारियों का एक गुप्त आंदोलन चल रहा है जो हिन्दू धर्म और हमारी संस्कृति के मौलिक सिद्धान्तों को जड़-मूल से उखाड़ कर फैंकने में प्रयत्नशील है, आर्य समाज इसको आशंका की दृष्टि से देखता है। दैवयोग से दिनांक 11.12.56 को हमें ब्रह्माकुमारियों की ओर से उनके एक उत्सव में समिलित होने का निमंत्रण मिला और साथ ही हमें यह आश्वासन भी मिला कि ब्रह्माक़ुमारियों के उपदेश के पश्चात् आप लोगों को शंका-समाधान के लिये समय दिया जायेगा।
हम सांय 6 बजे शर्मा स्मारक में पहुँच गये, जहाँ उनका उत्सव हो रहा था। हमने 2 घंटे तक उनके व्यायानों को सुना और व्यायान की समाप्ति पर शंका-समाधान के लिये समय माँगा, परन्तु उन्होंने उत्तर देना स्वीकार न किया और टाल दिया कि हमारा नियम बहस करने का नहीं। उनके इस व्यवहार से हमें निश्चय हो गया कि यह केवल एक षड़यत्र है, जिसके द्वारा हिन्दू देवियों को अपने पाखण्ड़ के जाल में फँसाना है, इसलिये हम हिन्दू भाई-बहनों को सावधान करते हैं कि वह इनके भुलावे में न आवें।
पोल खोलने हेतु उनकी पुस्तकों के कुछ उदाहरण नीचे दिये जाते हैं-
20 वर्ष पूर्व सिंध के एक व्यक्ति लेखराज नेएक कीर्तन मण्डली बनाई, जिसमें केवल स्त्रियाँ ही जाती थी। वह कीर्तन मण्डली लेखराज के घर पर ही लगती थी। रात्रिभर कीर्तन और रासलीला होती थी। अपने पाखण्ड पर पर्दा डालने के लिये इस मण्डली का नाम ‘ओ3म् मण्डली’ रखा गया। जब लेखराज के पास पर्याप्त संया में कुँआरी कन्याएँ और विवाहिता स्त्रियाँ आने-जाने लगीं तो उसने कहना प्रारभ किया कि भगवान चतुर्भुज विष्णु ने मेरे अंदर प्रवेश किया है, मैं गोपीवल्लभ भगवान कृष्ण हूँ। इस महाघोर कलिकाल में पाप बहुत बढ़ रहे हैं, उनको मिटाने के लिये मेरे शरीर में भगवान का अवतरण हुआ है। अपने पास आने वाली कन्याओं और स्त्रियों को कहा कि तुम पूर्व जन्म की गोपियाँ हो, उनमें से एक को राधा बतलाया।
स्त्रियों को कहा कि तुहारे सबंधी (भाई, पति, माता, पिता इत्यादि) तुहारे विकारी सबंधी हैं, वे तुहारे वास्तविक सबंधी नहीं, वे तो तुहारे शत्रु हैं। वे कंस और जरासंध हैं जो तुहें गृहस्थ रूपी जेल में रखना चाहते हैं। तुहारा नित्य सबंध तुहें मेरे पास आने से रोकें तो मत मानों। लेखराज के इस प्रचार का यहा प्रभाव हुआ कि बहुत सारी कुँआरी कन्याओं और स्त्रियों ने अपने सबंधियों की मार्यादाओं के अंदर रहने से इंकार कर दिया। इससे सिंध की हिन्दू जनता कुलबुला उठी।
उन कन्याओं के वारिसों ने लेखराज के ऊपर मुकदमा चलाया, जिसके फलस्वरूप न्यायालय ने लेखराज को अपराधी ठहरा कर जेल भेज दिया और सरकार ने ओ3म् मण्डली पर प्रतिबंध लगा दिया। जेल से छूटने के पश्चात् लेखराज कराँची से भागकर भारत में आ गया और माउंटआबू पर अपना अड्डा बनाकर उसी मण्डली का नाम बदल कर राजस्व अश्वमेघ अविनाशी ज्ञानयज्ञ रखा।
इस मण्डली में इस समय 55 स्त्रियाँ और 68 कन्याएँ हैं जो अपने माता-पिता और भाई-बंधुओं को छोड़कर अपने घरों से भाग आई हैं। इन्होंने 14 बड़े-बड़े नगरों में अपने केन्द्र खोले हुए हैं। एक-एक केन्द्र में कई-कई स्त्रियाँ रहती हैं। हिन्दुओं को धोखें में डालने के लिये इन स्त्रियों का नाम ब्रह्माकुमारियाँ रखा हुआ है। वे लोगों के घरों में जाती हैं और नौजवान स्त्रियों को सजबाग दिखा कर अपने काबू में कर लेती हैं।
शुरू-शुरू में भगवान कृष्ण आदि हिन्दू देवताओं का नाम लेकर और श्रीमद्भगवद्गीता की बातें सुना कर उन पर यह प्रभाव डालती हैं कि हम भी हिन्दू ही हैं और हम तुम लोगों को सहज योग सिखाती हैं। परंतु आहिस्ता-आहिस्ता जब स्त्रियाँ इनके जाल में फँस जाती हैं तो हिन्दू धर्म और उसके धार्मिक ग्रंथों-यथा वेद, उपनिषद्, गीता, महाभारत, रामायण, स्मृतियाँ, पुराण, इतिहास और दर्शन शास्त्रों की निंदा करने लगती हैं। वे हिन्दुओं की भक्ति, पूजा-पाठ, जप-तप, यम-नियम, संध्या और गायत्री को झूठा बतलाती हैं और कहती हैं कि लेखराज का ध्यान करने से ही इस लोक और परलोक की सिद्धि हो सकती है और यह कि लेखराज ही परम पिता परमात्मा त्रिमूर्ति भगवान शिव हैं।
उनकी पुस्तकों के कुछ उदाहरण पाठकों की जानकारी के लिये नीचे दिये जाते हैंः-
- 1. ‘घोरकलहयुग विनाश’ नाम की पुस्तक के पृष्ठ-12 पर लिखा है कि ‘‘बुतपरस्त हिन्दू कहलाने वाली कौम व्याभिचारी भक्तिमार्ग में फंस कर इतनी बुतपरस्त बन गई है कि अपने शास्त्रों में अपने देवताओं के अनेक मनोमय चित्र बनाकर उन्हें कलंकित किया है। वे अपने शास्त्रों में लिखते हैं कि ब्रह्मा अपनी बेटी सरस्वती पर मोहित हुआ, शिव मोहनी के ऊपर मोहित होकर उसके पीछे पड़ा।’’
- 2. इसी पुस्तक के पृष्ठ – 13 पर लिखा है- ‘‘वास्तव में परमात्मा का अवतार एक ही है, जो कल्प-कल्प के संगम पर एक ही बार भारतवर्ष में साधारण स्वरूप में बूढ़े तन (लेखराज के बूढ़े शरीर) में गुरु ब्रह्मा नाम से प्रत्यक्ष होता है, न कि अनेक रूपों से अनेक बार, जैसा कि मूढ़मति हिन्दू लोग शास्त्रों में दिखाते हैं।’’
- 3. फिर उसी पृष्ठ पर लिखा है- ‘‘हिन्दू लोगों के बड़े-बड़े गुरु, विद्वान, आचार्य, पण्डित इत्यादि इतना भी नहीं जानते कि गीता में जो महावाक्य नूधे हैं, वे किसके हैं और भागवत में किसका चरित्र गाया गया है। वे समझते हैं कि गीता श्रीकृष्ण ने उच्चरण की है और भागवत मेंाी श्री कृष्ण का जीवन चरित्र नूधा हुआ है, जिस कारण ‘कृष्णम् वंदे जगत् गुरूम्’ गाते हैं, यह इनकी बड़ीाारी भूल है।’’………श्रोमणी भगवद्गीता से हम सिद्ध कर सकते हैं कि गीता में श्रीकृष्ण के महावाक्य नहीं हैं, बल्कि परमात्मा त्रिमूर्ति गुरु ब्रह्मा (लेखराज) के महावाक्य हैं।
- 4. ‘‘रामायण भी श्रीरामचन्द्र का जीवन-चरित्र सिद्ध नहीं करती।…. वास्तव में रामायण तो एक नावल (उपन्यास) है, जिसमें तो एक सौ एक प्रतिशत मनोमय गपशप डाला गया है।’’-उसी पुस्तक का पृष्ठ-14
- 5. फिर उसी पुस्तक के पृष्ठ-16 पर लिखा है-‘‘पिता श्री परमात्मा गुरु ब्रह्मा की कल्प पहले वाली गाई गीता में महावाक्य है कि भक्तिमार्ग के अनेक प्रयत्न जैसे कि वेद अध्ययन,यज्ञ, जप, तप, तीर्थ, व्रत, नियम, दान, पुण्य,संध्या, गायत्री, मूर्तिपूजा, प्रार्थना इत्यादि करने से मैं नहीं मिलता।’’
- 6. ‘ब्रह्माकुमारियों की संस्था का परिचय’ नाम की पुस्तक में लिखा है- ‘‘भागवत प्रसिद्ध गोपियाँ श्री ब्रह्मा की हैं न कि श्रीकृष्ण की।’’-पृष्ठ 4
- 7. श्रीकृष्ण को योगीराज अथवा जगत्गुरु अथवा जगत्पिता नहीं कहा जा सकता…श्री कृष्ण सृष्टि को ज्ञान नहीं देते।’’-पृष्ठ-6
- 8. ‘घोर कलहयुग विनाश’ में लिखते हैं -‘‘हर एक नर-नारी अपने से पूछे कि मैं अपने परमपिता निराकार परमात्मा और साकार ईश्वर पिता गुरु ब्रह्मा और मातेश्वरी श्री सरस्वती आदम और बीवी (हव्वा) के नाम, रूप निवास-स्थान और अवतार धारण करने के समय को जानता हूँ।’’-पृष्ठ – 1
- 9. उसी में लिखा है -‘‘जो साकार विश्वपिता आदिदेव त्रिमूर्ति गुरु ब्रह्मा, दैवी पिता इब्राहिम, बुद्ध और क्राइस्ट हैं जो हर एक कल्प-कल्प अपने-अपने समय पर अपने-अपने वारिसों सहित अपना-अपना देवी-देवता इस्लामी, बौद्ध और क्रिश्चियन घराना स्थापन करने अर्थ निमित बने हुए हैं।’’- पृष्ठ -2
पाठक इस थोड़े से लेख से समझ सकते हैं कि हिन्दुओं को अपने स्वधर्म से भ्रष्ट करने के लिये ब्रह्माकुमारियों का यह कितना भयंकर षड़यंत्र रचा हुआ है, इसलिये हिन्दुमात्र से सानुरोध निवेदन है कि आगामी विनाश को दृष्टि में रखकर भेड़ों की खाल में ढकी हुई इन भेड़िनों को अपने घरों में आने से सर्वथा रोक दें और अपने स्त्री-बच्चों को इनकी काली करतूतों से परिचित करा देवें। इनके विशेष परिचय के लिये शीघ्र ही और साहित्य आपकी सेवा में प्रस्तुत किया जायेगा।
संकलन – डॉ. वीरोत्तम तोमर,
सौजन्य से-आर्यशिखा स्मारिका, नवबर-2014 मेरठ शहर