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आनन्द स्त्रोत बह रहा – प्रकाश्चन्द”कविरत्न”

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आनन्द  स्रोत  बह   रहा   पर  तू   उदास   है ।

अचरज यह जल में रह के भी मछली को प्यास है ॥

फ़ूलों   में   ज्यों  सुवास , ईख  में  मिठास  है ,

भगवान का त्यों विश्व के कण  – कण में वास है ॥ आनन्द………

 

टुक  ज्ञान   चक्षु  खोल  के तू, देख  तो  सही  ,

जिसको  तू   ढूंडता   है  सदा  तेरे   पास   है ॥ आनन्द ……….

कुछ  तो समय निकाल  आत्म शुद्धि  के  लिए  ,

नर  जन्म  का उद्देश्य  ना केवल  विलास  है   ॥ आनन्द …….

 

आनन्द मोक्ष का न पा सकेगा जब तलक ,

तू जब तलक “प्रकाश” इन्द्रियों का दास है ॥