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मेरी अमेरिका यात्रा – डॉ. धर्मवीर

मेरी अमेरिका यात्रा

– डॉ. धर्मवीर

पिछले अंक का शेष भाग…..

8 अप्रैल को आर्य समाज के पुरोहित पं. वेदश्रमी जी ने घर पर नववर्ष का आयोजन रखा था, यज्ञ के पश्चात् प्रवचन किया। भोजन कर घर लौटे। सायंकाल  का कार्यक्रम आर्य समाज के संस्थापक और संरक्षक दीनबन्धु चन्दौरा जी के घर था। आप डॉक्टर हैं, जोधपुर के निवासी थे, बहुत समय से अमेरिका में हैं। डॉ. ओप्रकाश अरोड़ा और आप सहपाठी थे, यहाँ फिर मिल गये। मिलकर और लोगों को साथ लेकर आर्य समाज की स्थापना की। पहले समाज घरों पर चलता था, फिर स्थान लेकर भवनाी बना लिया। आपने अनेक लोगों को पुरोहित के रूप में बुलाया, बाद में किसी कारण से विवाद हुआ, वे लोग पृथक् होकर कार्य करने लगे। लाभ यह हुआ कि इस बहाने आर्य समाज के अनेक प्रचारक अटलाण्टा में हो गये। सायंकाल का कार्यक्रम श्री चन्दौरा जी के घर पर हुआ। मैंने कुछ चर्चा की फिर प्रश्नोत्तर व भोजन हुआ, लौटकर विश्राम किया।

9 अप्रैल को विश्रुत जी ने तेलुगु लोगों के साथ कार्यक्रम रखा था। स्थान दूर था, पहुँचने में एक घण्टा लगा। परिवार में कार्यक्रम था 30-40 स्त्री-पुरुष थे। तेलुगु अनुवाद की व्यवस्था थी। कार्य 11 बजे से चार बजे तक चला, मध्य में भोजन हुआ। इस चर्चा में ईश्वर, वेद, मूर्त्तिपूजा आदि दार्शनिक विषयों पर खूब चर्चा हुई, सबने उत्साह से भाग लिया। पश्चात् घर तक पहुँचा गये। रात्रि आर्य समाज में कार्यक्रम था, एक घण्टा व्याखयान और आधा घण्टा प्रश्नोत्तर हुए। भोजन के साथ कार्यक्रम समपन्न हुआ। यहाँ आर्य विद्वान् श्री आशीष जी देहरादून वालों की मौसी जी डॉ. विजय अरोड़ा रहती हैं। वे और उनके पति डॉ. ओप्रकाश अरोड़ा आर्य समाज का बहुत कार्य करते हैं, निर्माण के कार्य की देखरेख आप ही करते हैं। बच्चे बाहर रहते हैं। घर में दो ही प्राणी हैं।

10 अप्रैल रविवार था, तैयार होकर प्रातराश किया। श्रीमती अरोड़ा भोजन बनाने में व्यस्त रही, क्योंकि आर्य समाज के भोजन में सब सदस्य कार्य बाँट लेते हैं, किसे क्या-क्या लाना है और डॉ. अरोड़ा समाज पहुँचे, प्रथम यज्ञ हुआ फिर प्रवचन, विषय था ‘समय का जीवन पर प्रभाव’ पश्चात् प्रश्नोत्तर हुए। भोजन के साथ कार्यक्रम समपन्न हुआ। कार्यक्रम के बाद डॉ. चन्दौरा जी के साथ उनके घर गया, आर्य समाज के विषयों पर चर्चा हुई। सायं विश्रुत के घर लौटा। 6 बजे डॉ. वीरदेव बिष्ट आ गये, उनके साथ उनके घर गये, उन्हें अपने मित्रों का आतिथ्य करने में बड़ा आनन्द आता है। वैसा ही स्वभाव उनकी श्रीमती का है। वे परिवार सहित अजमेर की यात्रा कर चुके हैं। डॉ. वीरदेव मूलरूप से नेपाल के नागरिक हैं, वे पूरे नेपाल देश के प्रथम पी-एच.डी. हैं। आपकी शिक्षा का प्रारमभ गुरुकुल चित्तौड़ से हुआ फिर गुरुकुल झज्जर से व्याकरणाचार्य कर गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय से एम.ए., पी-एच.डी. किया। नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने, वहाँ से दक्षिण अफ्रीका गये, जहाँ से डॉ. चन्दौरा के माध्यम से अमेरिका आये। कुछ मतभेद होने पर स्वतन्त्र रूप से वैदिक धर्म के प्रचार में संलग्न हैं। वे बता रहे थे कि उन्होंने अभी तक अमेरिका में 11 हजार कार्यक्रम किये हैं। आपकी दो पुत्रियाँ हैं, बड़ी पुत्री ने अमेरिका में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से चिकित्सा में एम.डी. किया है तथा छोटी पुत्र प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर फ्रान्स में राजदूत हैं। आपके साथ गुरुकुल की पुरानी स्मृतियाँ दोहराने का अवसर मिला। सायंा्रमण करते यहाँ का प्रसिद्ध अक्षरधाम मन्दिर देखा, आकर भोजन कर विश्राम किया।

11 अप्रैल प्रातः परिवार के साथ यज्ञ किया। आज उनको इस घर में आये 20 वर्ष हो गये थे। भोजन करके विदा ली, विश्रुत के घर गया, वहाँ से चन्दौरा जी के छोटे भाई श्री ब्रह्मदत्त चन्दौरा जी मध्याह्न भोजन के लिये अपने घर ले गये। आप आर्य वीर दल के स्वयं सेवक रहे हैं। घर में दृढ़ शाकाहारी हैं, बच्चे भी शाकाहारी हैं, आपकी पत्नी भोजन की पवित्रता का बहुत ध्यान रखती हैं। सभा के पुराने सहयोगी हैं। भोजन करके विश्रुत के घर लौटा। सायं डॉ. दीनबन्धु चन्दौरा जी के साथ पं. गिरी जी के घर गये, आपको भी डॉक्टर जी ही अमेरिका लाये थे। कुछ मतभेद होने से पण्डित जी ने स्वतन्त्र कार्य प्रारमभ किया। आप भी आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में तन-मन से लगे हैं। स्वभाव से सरल एवं सहयोगी हैं। आपने अपने घर यज्ञ एवं सत्संग का आयोजन रखा था, पड़ौस में मुस्लिम परिवार रहता है, वह भी प्रेम से सत्संग में भाग लेता है। आज बालकों के लिये प्रवचन किया, भोजन कर विश्रुत के यहाँ लौटकर विश्राम किया।

12 अप्रैल को प्रस्थान का दिन था, परन्तु सभी बन्धुओं का अपने-अपने घर चलने का आग्रह था, सबकी इच्छा तो पूरी नहीं हो सकती थी। पहले श्रीमती रूपा लूथरा पधारीं, उनके घर प्रातराश करके अटलाण्टा का दर्शनीय स्थल देखा, यह पूरा पर्वत ग्रेनाइट पत्थर का है, इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है, इस पर्वत में खोद करके तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों की मूर्त्तियाँ बनाई गई हैं। उद्यान है, वन है, मनोरञ्जन के स्थान हैं। वहाँ से बाजार देखते हुए घर लौटकर भोजन किया, फिर आर्य समाज में पं. वेदश्रमी जी के यहाँ पहुँचा। उनके साथ भारत जी के घर गये, आप भी इञ्जीनियर हैं, स्वतन्त्र रूप से काम करते हैं। विश्रुत विराट के साथ मिलकर अमेरिका से शाकाहार का आन्दोलन चलाते हैं। आधा घण्टा बात करके पं. वेदश्रमी जी के साथ हवाई अड्डे पहुँचा, वहाँ पर पहले विश्रुत धर्मपत्नी स्वाति तथा श्री श्याम चन्दोरा की धर्मपत्नी श्रीमती प्रवीण चन्दौरा सहित उपस्थित थे, घर से सायं का भोजन भी बनाकर साथ लाये थे। छः बजे हवाई अड्डे के अन्दर गया, सुरक्षा जाँच के बाद यान में बैठा, यथा समय चल कर यहाँ के समय अनुसार 10 बजे सैनहोजे पहुँच गया। सुयशा भास्कर आ गये थे, वहाँ घर पहुँचकर विश्राम किया।

13 अप्रैल का समय स्वाध्याय और लेखन कार्य में व्यतीत किया।

14 अप्रैल प्रातराश करके लॉसएञ्जिलिस के लिये निकले। सुयशा भास्कर ने दो दिन का अवकाश ले लिया था, गाड़ी से मार्ग के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करते घर से निकले, जाने का मार्ग समुद्रतट वाला चुना। 17 मील होते हुए, समुद्र के किनारे पहाड़ी पर बने हुये एक महल के पास पहुँचे, इसको हर्स्ट कैसल कहते हैं। इस महल में बहुत से कक्ष, तरणताल, पुस्तकालय सभी कुछ हैं। यह व्यक्ति समाचार पत्र समूह का संचालक था, जिसने पूरे विश्व से साढ़े बाइस हजार वस्तुओं का संग्रह किया था। यह महल मरते समय वह व्यक्ति सरकार को दे गया था, जो एक संग्रहालय के रूप में देखा जाता है। उसको यह महल बनाने की प्रेरणा माता से प्राप्त हुई थी, जिसके साथ यूरोप की यात्रा पर गया था, उससे उस क्षेत्र की गाय का मांस बहुत प्रसिद्ध है, जिसे कैसल की दुकानों से बेचा जाता है। दो घण्टे तक इन वस्तुओं को देखकर आगे चले। इस महल से सब ओर समुद्र और पर्वतों के सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं। इसको बनाते समय एक भी पेड़ काटा नहीं गया, स्थानान्तरित किये गये हैं।

फिर समुद्र के साथ-साथ सान्ता बारबरा पहुँचे। समुद्र किनारे का सुन्दर नगर, समुद्र के अन्दर दृश्य देखने के स्थान को पीयर कहते हैं, यह लकड़ी का बना होता है, इसके ऊपर चलकर समुद्र के अन्दर दूर तक जाया जा सकता है। वहाँ दृश्य देखकर रहने का स्थान खोजा, पूरे नगर में कोई स्थान नहीं मिला। दस मील दूर जाके होटल में स्थान मिला, रात्रि विश्राम किया।

15 अप्रैल प्रातः होटल से निकलकर समुद्र का किनारा पकड़ा, मार्ग में खेत, पहाड़ों का सौन्दर्य देखते हुये लॉसएञ्जिलिस के उपनगर सैण्टा मोनिका पहुँचे। यहाँ का समुद्रतट सुन्दर और मनोरञ्जन से भरपूर है, पहले रेलगाड़ी का अनुभव लिया। दोपहर लॉसएञ्जिलिस पहुँचकर शाकाहारी भोजनालय की खोज की। इण्डियन स्वीट्स नाम का भोजनालय मिला, यहाँ गोरे और भारतीय शाकाहारी भोजन के लिये आते हैं। होटल वाले ने कहा- भोजन एक घण्टा देर से मिलेगा, क्योंकि उसे नबे पराठों का ग्राहक मिला है, पहले उसका काम पूरा करूँगा। भोजन करके मुखय बाजार में आये। विश्व प्रसिद्ध हॉलीवुड स्थान देखा। यहाँ की सड़कों की दोनों पटरियों पर पीतल के पट्टे पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर हॉलीवुड के प्रसिद्ध हस्तियों के नाम लिखकर लगाये हुए हैं। वह विशाल भवन देखा, जिसमें ऑस्कर पुरस्कार दिये जाते हैं। एक वाहन लेकर नगर भ्रमण किया, जिसमें उसने हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता-अभिनेत्रियाँ जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ का भ्रमण कराया। मार्गदर्शक ने प्रसिद्ध लोगों के घर बाहर से बताये। सायंकाल होटल खोजते हुए एक उपनगर में गये, वहाँ कमरा लेकर विश्राम किया।

16 अप्रैल को श्री सुरेन्द्र मेहता जी के घर कार्यक्रम था, उनसे सपर्क किया, दोपहर दिल्ली वाला भोजनालय पर मिलने का निश्चय हुआ। हम यथासमय पहुँच गये। मेहता जी भी पत्नी के साथ पहुँच गये, परिचय हुआ, भोजन करके उनके साथ घर पहुँचे। घर में दोनों प्राणी एकाकी रहते हैं। दो बेटे हैं, दोनों बाहर काम करते हैं। सायं पाँच बजे परिवार में सत्संग रखा था, 30-40 व्यक्ति आ गये थे, श्री सुधीर आनन्द जी भी पहुँच गये थे। योग विषय पर चर्चा हुई, दो घण्टा कार्यक्रम चला, सबने भोजन किया, कार्यक्रम समाप्त कर घरेलू बातें की, विश्राम किया। दोनों पति-पत्नी आर्य समाज के अच्छे कार्यकर्त्ता हैं। आपने लॉस एंजिलिस में स्वामी रामदेव जी के योग शिविर का आयोजन किया था। आज भी नियमित योग कक्षा लेते हैं। रात्रि विश्राम किया।

आपने बताया कि यूरोपियन और अमेरिकी विद्वानों और राजनीतिज्ञों को भारत की कोई भी अच्छी बात स्वीकार करने का साहस नहीं। अपनी निनता को छिपाकर वे दूसरे को अपने से नीचा करके अपनी उच्चता प्रदर्शित करने का यत्न करते हैं। आजकल अमेरिका में एक विवाद चल रहा था। वहाँ की सरकार अपने इतिहास के पाठ्यक्रम में यह नहीं पढ़ाना चाहती कि भारत को इस काल में स्वतन्त्रता मिली। देश का उल्लेख करने से उसका अस्तित्व और इतिहास पर दृष्टि जाती है, इसके स्थान पर वे बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं कि साऊथ ईस्ट एशिया को स्वतन्त्रता कब मिली? भारतीय लोगों ने वहाँ इसका इतना विरोध किया कि इस प्रस्ताव को समाप्त तो नहीं किया गया, परन्तु इसको स्थगित कर दिया गया है। ऐसे प्रयासों का उद्देश्य यही रहता है कि वहाँ रहने वाले भारतीय का अपने मूल से सबन्ध समाप्त हो जाये।

एक घटना का उल्लेख करना उचित होगा, जिससे मुस्लिम मानसिकता का पता चलता है। वे अमेरिका में रहकर भी हिन्दू विरोधी मानसिकता से कितना पीड़ित और प्रताड़ित है कि अमेरिका भी उसे आधुनिक नहीं बना सका। लॉस एञ्जिलिस में सुरेन्द्र कुमार मेहता बता रहे थे, ह्यूस्टन के एक मुसलमान ने समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाया कि कोई मुस्लिम युवक किसी हिन्दू लड़की से विवाह करके उसे एक साल बाद तलाक दे देगा तो उस युवक को वह पन्द्रह हजार डॉलर का पुरस्कार देगा। इस घटना में हिन्दू को मुसलमान बनाने से अधिक हिन्दू को अपमानित करने का भाव अधिक है।

अमेरिका के हिन्दू संगठनों ने इसका विरोध किया और इस विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगवाया।

17 अप्रैल रविवार था, प्रातः घर पर मेहता जी से ‘दर्शन’ विषय पर चर्चा हुई। प्रातराश करके मेहता जी के साथ आर्य समाज पहुँचे। आर्य समाज का सत्संग एक क्लब में होता है, जो चार घण्टे के लिये मास में एक बार किराये पर लिया जाता है। पहले समाज का भवन था, परन्तु आपसी झगड़े में बिक गया। प्रथम यज्ञ हुआ फिर श्री सुधीर आनन्द जी ने मेरा परिचय दिया। मैंने ‘आज के युग में वेदों की आवश्यकता’ विषय पर व्याखयान दिया, फिर प्रश्नोत्तर हुए। भोजन के बाद कार्यक्रम समाप्त हुआ। विश्रुत के भाई विराट यहाँ कार्य करते हैं, वे भी यहाँ कार्यक्रम में उपस्थित थे। सबसे विदा लेकर छोटे रास्ते से लौटे, यह मार्ग यद्यपि खेतों और फलों के उद्यानों का था, परन्तु वर्षा के अभाव में सर्वत्र सूखे का साम्राज्य दीख रहा था। मार्ग में पहाड़ों के बीच सुन्दर झील थी। इस प्रकार पाँच सौ किलोमीटर की यात्रा कर रात्रि को घर पहुँच गये। गाड़ी चलाने का काम भास्कर ने किया।

इन दिनों अधिकांश समय स्वाध्याय और लेखन कार्य में लगाया।

23 अप्रैल की सुयशा और भास्कर के साथ सनफ्रान्सिस्को देखने का विचार किया, नगर पुराना और बहुत सुन्दर है। जहाँ से भी देखें स्वच्छता, सुन्दरता व्यवस्था सब ओर दिखाई देती है। हम पहले गोल्डन गेट पार्क देखने गये। यह उद्यान नगर के मध्य में होने पर भी कहीं कोई अतिक्रमण नहीं है। उद्यान एक हजार एकड़ में फैला हुआ है। इसमें संग्रहालय, खुला रंगमञ्च, विभिन्न उद्यान, खेल के मैदान, उल्लास यात्राओं के अनेक स्थान बने हुए हैं। अवकाश के दिन माता-पिता और बच्चे तथा पर्यटकों का मेला लगा रहता है। एक घण्टे से अधिक समय गाड़ी खड़ी करने का स्थान खोजने में लगा। दो घण्टे उद्यान के अनेक भाग देखे। प्रकृति का संरक्षण बहुत अच्छे प्रकार से किया हुआ है।

उद्यान देखकर नगर का प्रसिद्ध स्थान लोबर्ड स्ट्रीट गये। नगर समुद्र के तट पर पहाड़ी पर बसा हुआ है। नगर के मार्ग बहुत ऊँचे-नीचे हैं। यहाँ पर एक दर्शनीय स्थल है, जिसे क्रुकेड स्ट्रीट कहते हैं। एक सड़क ऊपर से आते हुए एकदम नीचे सड़क से मिलती है, उस ऊँचाई पर एक सर्पाकार मार्ग कारों के उतरने के लिये बनाया है। सड़क के दोनों ओर उतरने-चढ़ने के लिये कम ऊँचाई की सीढ़ियाँ बनी हुई है। उनकी संया चार सौ के लगभग लिखी थी। इस मार्ग पर गाड़ी चलाने का अनुभव रोमाञ्च भरा होता है। हम सीढ़ियों से उतरे और चढ़े। यह स्थान एक सौ बासठ वर्ष पूर्व का बना हुआ है। दर्शकों की उत्कण्ठा और प्रसन्नता देखते ही बनती है। लौटकर सायं घर पहुँच कर विश्राम किया।

24 अप्रैल को स्वदेश प्रस्थान का दिन था, विमान के चलने में विलब की सूचना थी। समय का उपयोग कर के साप्ताहिक बाजार गये, सामान क्रय कर लौटे। 11 बजे घर से निकल सनफ्रांसिस्को हवाई अड्डे पर पहुँचे। सुरक्षा जाँच तक सुयशा भास्कर ने प्रतीक्षा की फिर नमस्ते कर अन्दर पहुँच गया, दो बजे के बाद वायुयान ने उड़ान भरी, सोलह घण्टे निरन्तर उड़ते हुए, जापान के मार्ग से अगले दिन 6 बजे दिल्ली इन्दिरा गाँधी हवाई अड्डे पर उतरा। विशेष बात यह रही कि तकनीकी दृष्टि से यात्रा में 25 घण्टे लगे। वास्तव में 16 घण्टे लगे। दिन में चलकर दिन में ही दिल्ली पहुँच गया, बिना मध्य में रात्रि आये दो दिन हो गये। विपरीत दिशा में चलते हुए ऐसा हुआ।

हवाई अड्डे पर ज्योत्स्ना और ऋचा पहुँच गये थे। उनके साथ घर पहुँच गया और अगले दिन अजमेर, इस प्रकार उक्ति सार्थक हुई- ‘बेताल फिर डाल पर।’

 

मेरी अमेरिका यात्रा – डॉ. धर्मवीर

मेरी अमेरिका यात्रा

– डॉ. धर्मवीर

      पिछले अंक का शेष भाग…..

20 मार्च 2016 को रविवार था, नियमानुसार सत्संग में प्रथम पं. सूर्यकुमार जी ने यज्ञ कराया, श्रीमती श्रीवास्तव ने भजन गाये। फिर मेरा व्याखयान हुआ। आज का विषय था ‘आधुनिक पीढ़ी को वैदिक संस्कर कैसे दिये जायें?’। व्याखयान के बाद प्रश्नोत्तर हुए। आर्य समाज में विद्यालय चलता है, बच्चों के साथ होली का पर्व बहुत उत्साह के साथ मनाया गया।

भोजन के साथ कार्यक्रम समपन्न हुआ। कार्यक्रम में श्री मनीष गुलाटी जी नहीं आ पाये थे, उनका हालचाल पूछने उनके घर गये। पहले से स्वास्थ्य में सुधार था। श्री हरिश्चन्द्र जी के घर बैठकर अमेरिका आर्यसमाज के कार्य में कैसे प्रगति हो सकती है? क्या बाधायें हैं? आदि विषयों पर विचार विमर्श चलता रहा। रात्रि का भोजन श्री प्रवीण जी के घर था। वे पक्षाघात से पीड़ित हैं, कहीं आना-जाना समभव नहीं है, उनके घर जाकर भोजन किया। समाज के कार्यक्रम की बातें हुईं। रात्रि जसवीरसिंह जी के घर लौटकर विश्राम किया।

21 मार्च भोजन करके जसवीर जी के साथ नासा केन्द्र के लिये प्रस्थान किया। यह अमेरिका का अन्तरिक्ष अनुसन्धान केन्द्र है, इसकी शाखाएँ अनेक स्थानों पर है, पर कार्यालय ह्यूस्टन में है।

नासा जाकर पहले नासा का परिचय देने वाली एक फिल्म देखी, उसमें भेजे जाने वाले उपग्रहों के विषय में परिचय दिया गया था। फिर संग्रहालय में रखे हुये उपग्रह देखे, जो अन्तरिक्ष की यात्रा करके लौटे हैं। जनता उनके अन्दर जाकर उपग्रह कैसे काम करता है, देख सकती है। वहाँ से लौटते हुए डॉ. राजसिंह छिकारा जी के घर जाकर उनसे भेंट की, ये जूआँ सोनीपत के निवासी हैं। विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं, आपका परिचय सोनीपत यज्ञ समिति के समारोह के अवसर पर रणधीरसिंह जी ने दिया था, उन्होंने आपसे बात भी कराई थी। उनसे भेंट की, उनके यहाँ भोजन कर, भारत व वहाँ चल रहे आर्य समाज के कार्य की चर्चा की। वहाँ से लौटकर श्रीमती बेला जैन के घर गये, घर पर उनके पति आनन्द जैन और शेखर अग्रवाल व श्रीमती अग्रवाल भी मिले। श्रीमती बेला सभा के वरिष्ठ उपप्रधान शत्रुघ्न आर्य जी की पुत्री हैं तथा संरक्षक गजानन्द जी आर्य की भांजी हैं। मिलकर प्रसन्नता हुई तथा घर-परिवार की चर्चा हुई। उनका यहाँ आर्य समाज से समपर्क है।

वहाँ से लौटते हुए श्री अमृत बहन जी की छोटी बहन श्रीमती रजनी कोहली आर्य समाज के कार्यक्रम में मिली थी और उन्होंने घर आने का आग्रह किया था। उनके घर पहुँचे, घर पर उनके पति और पुत्र थे। बहन केन्या रहती हैं। ह्यूस्टन में उनका बेटा पढ़ता है। बेटे की आयुर्वेद और अध्यात्म में रुचि है। आयुर्वेद औषध वनस्पतियों के उत्पादन का उसका प्रयास है। बहन जी के यहाँ भोजन करके जसवीर जी के साथ घर लौट कर अगले दिन की यात्रा की सज्जा की। विश्राम किया।

22 मार्च आज सनफ्रान्सिस्को के लिये प्रस्थान किया। जसवीर जी आज कार्यालय के कार्य में व्यस्त थे, डॉ. हरिश्चन्द्र जी तथा डॉ. कविता जी आ गये। 8 बजे उनके साथ हवाई अड्डे के लिये निकले। मार्ग लबा था, समय आर्य समाज के प्रचार-प्रसार की चर्चा में निकला। जार्जबुश हवाई अड्डे पहुँचकर आपने सुरक्षा जाँच पूर्ण होने तक प्रतीक्षा की। जाँच पूर्ण होने की सूचना देने पर वे विदा हुए। साढ़े चार घण्टे की यात्रा कर साढ़े तीन बजे यान सनफ्रांसिस्को पहुँचा। अड्डे पर भास्कर और सुयशा दोनों आ गये थे। औपचारिकता करके हम सुयशा के घर सनीवेल पहुँच गये। यह क्षेत्र खाड़ी का क्षेत्र है, हरा-भरा होने के साथ सम तापमान वाला है, यहाँ अधिक गर्मी-सर्दी नहीं होती। यहाँ सभी सूचना तकनीकी के बड़े संस्थान कार्यरत हैं। सभी के मुखय कार्यालय इसी स्थान पर हैं। घर पर थोड़ा विश्राम कर सुयशा के साथ यहाँ के हिन्दू मन्दिर में जाना हुआ। इस मन्दिर की विशेषता है। इस क्षेत्र में रहने वाले भारतीय जितने देवी-देवता मानते हैं, सभी एक मन्दिर में स्थापित हैं, किसी भी देवता के लिये अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं। इस क्षेत्र में भारतीय बाजार हैं, जिसमें सभी प्रकार का भारतीय सामान मिल जाता है। लौट कर संगणक पर समाचार देखे, रात्रि विश्राम किया।

23 मार्च को सुयशा के साथ स्थानीय पुस्तकालय देखा। एक गाँव का पुस्तकालय भी ऐसा है, जैसा हमारे विश्वविद्यालयों में नहीं होता। आज डॉ. सोनी जी और श्री विश्रुत प्रधान प्रतिनिधि सभा अमेरिका से वार्ता हुई। दोनों का आग्रह था कि यहाँ का भी कार्यक्रम अवश्य बनायें।

24 मार्च को दोपहर बाद यहाँ का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय देखने गये। इसका नाम स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय है। इसके संस्थापक ने अपने पुत्र की मृत्यु के पश्चात् उसके स्मारक के रूप में इसका निर्माण कराया था। यह एक सौ पच्चीस वर्ष पुराना विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय के द्वार पर बहुत विशाल सुन्दर चर्च बना हुआ है। पुराने भवन एक ही शैली में बने हुये हैं। आधुनिक विषयों के भवन अत्याधुनिक ढंग से बने हैं। बहुत बड़ी और बहुत ऊँची वेधशाला बनी हुई है। विश्वविद्यालय, हरे-भरे मैदान और ऊँचे-ऊँचे वृक्ष विशाल क्षेत्र तक दिखाई देते हैं। पुस्तकालय भी विशाल है। परिसर में अधिकांश लोग पैदल और साइकिल पर ही चलते दिखाई देते हैं।

25 मार्च को प्रथम विश्रुत से बात हुई तो अटलाण्टा का कार्यक्रम बनाकर टिकिट ले लिये। डॉ. सोनी जी से देर से सपर्क हुआ, उनका भी आग्रह रहा, तो अलग टिकिट लेना पड़ा, क्योंकि पहले टिकट के पैसे मिलने नहीं थे। इस प्रकार जो यात्रा एक दौर में हो सकती थी, वह दो दौर की हो गई। सनफ्रान्सिस्को से शिकागो, शिकागो से सनफ्रान्सिस्को एवं सैनहोजे से अटलाण्टा-सैन होजे।

26 मार्च शनिवार था, अतः आज भ्रमण के लिये यहाँ का प्रसिद्ध स्थान रेड वुड राष्ट्रीय उद्यान जाने का कार्यक्रम बना। सनीवेल से सनफ्रांसिस्को, वहां समुद्र पर पुल बना है, जिसे गोल्डन ब्रिज के नाम से जाना जाता है। यहीं समुद्र में एक पुरानी जेल है, जिसमें खूँखार कैदियों को रखा जाता था। यहाँ से समुद्र पार कर एक जंगल में गये, जो सुरक्षित वन है। यह बहुत बड़ा नहीं है फिर भी पर्याप्त बड़ा है। इस में तीन सौ फुट ऊँचे वृक्षों को संरक्षित रखा गया है। इस जंगल में चारों ओर पहाड़ियाँ हैं। पर्यटक पगडण्डियों से पहाड़ों पर चढ़कर जंगल का सौन्दर्य देखते हैं। इसमें पानी के छोटे-छोटे झरने हैं। अभी अनेक वर्षों से इस प्रदेश में वर्षा नहीं हुई है। पर्वत पर घूमते हुए वापस घर पहुँच गये।

27 मार्च का रविवार था। आज एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल की ओर गए, यह समुद्रतट है। प्रशान्त महासागर के किनारे-किनारे सत्रह मील तक मध्य-मध्य में दर्शनीय स्थल हैं, जहाँ समुद्र का तथा समुद्री जीवों को देखने का आनन्द पर्यटक उठाते हैं। यह स्थल किसी का निजी है। टिकिट लेकर यहाँ भ्रमण किया जा सकता है। इन स्थानों पर पेड़-पौधे व अन्य जीवों की सुरक्षा एवं संरक्षण की उत्तम व्यवस्था की गई है। पेड़ों को छूना भी मना है। इस क्षेत्र को मॉण्टे 17 माइल ड्राइव के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार समुद्र, वन, पर्वतों के दृश्य देखते हुए सायंकाल घर लौटे आये।

28 मार्च के दिन स्वाध्याय किया और पुस्तकालय जाकर वहाँ के साहित्य का अवलोकन किया।

29 मार्च का दिन लेख लिखने और सपर्क करने में व्यतीत हुआ।

30 मार्च को इस क्षेत्र में एक जापानी पार्क जो सुन्दर उद्यान है, वह देखा। उसमें जापानी वातावरण दिखाई देता है, उद्यान बहुत बड़ा नहीं, परन्तु बहुत सुन्दर और स्वच्छता वाला है।

31 मार्च के दिन स्थानीय विद्वानों से विचार-विमर्श किया तथा अगले दिन शिकागो जाना था, उसकी सज्जा में व्यतीत किया।

1 अप्रैल 2016 को प्रातः 6 बजे घर से सुयशा भास्कर के साथ हवाई अड्डे के लिये निकले, आधा घण्टे में सन्फ्रासिस्को हवाई अड्डे पहुँच गये, सुरक्षा जाँच तक दोनों ने प्रतीक्षा की, फिर मैं अन्दर चला गया, दोनों घर लौट गये। वायुयान 10 बजे चला और वहाँ के समयानुसार 3 बजे शिकागो पहुँच गया। वहाँ पर आर्य समाज की ओर से श्री भूपेन्द्र शाह और उनकी धर्मपत्नी लेने आये हुए थे। शाह पहले इंजीनियर थे। अब सामाजिक कार्यों में समय देते हैं। हम सब किरीटभाई शाह के घर पहुँचे, वहाँ डॉ. सोनी और श्रीमती सोनी जी आ गये थे। प्रथम सबने कुछ स्वल्पाहार लिया, फिर धार्मिक संवाद चला, दो घण्टे ईश्वर की साकारता-निराकारता, मूर्त्तिपूजा की निस्सारता आदि पर बातें हुई। भोजन करके अन्य सब लोग अपने घर लौट गये। मैं किरीटभाई शाह का अतिथि रहा। वहीं रात्रि विश्राम किया।

2 अप्रैल प्रातः 10 बजे डॉ. सोनी पधारे, उनके साथ सबने प्रातराश किया, फिर डॉ. सोनी जी ने साथ चलने को कहा। वहाँ से निकल कर सबसे पहले स्वामी विवेकानन्द केन्द्र गये। पुस्तकालय, कार्यालय, सभा भवन देखा। मुय स्वामी जी केन्द्र से बाहर व्याखयान देने गये थे। केन्द्र का बड़ा मन्दिर और भवन बनने वाला है। जानकारी मिली कि इनके कई केन्द्रों पर मांसाहारी-शाकाहारी दोनों भोजन बनते हैं, क्योंकि स्वामी विवेकानन्द ने दोनों को उचित माना है। औरों के लिये कोई तर्क हो सकता है, परन्तु संन्यासी के साथ इसकी संगति नहीं बैठती। यहाँ से चिन्मय मिशन गये, वहाँ कोई नहीं था, सब कहीं शिविर में गये हुए थे। फिर हिन्दू मन्दिर गये, वहाँ एक ओर सभा चल रही थी, भक्त लोग मन्दिर में पूजा अर्चना में लगे थे। दोपहर का समय हो रहा था, डॉक्टर जी की बहन के घर पहुँचे, भोजन किया, कुछ चर्चा हुई। वहाँ से निकल कर शिकागो नगर केन्द्र में जाकर मिशिगन झील देखी, यहाँ पहले संसार का सबसे ऊँचा भवन कहा जाने वाला सी.एस. टावर देखा। अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उमीदवार का ट्रप टावर देखा। नक्षत्र मण्डल, कला संग्रहालय आदि पर बाहर से एक दृष्टि डाली, लौटते हुये एक संस्था क्रिया योग केन्द्र देखा। साधु स्वामी सहजानन्द और उनके साथी साधु से मिलकर संन्यास-योग सबन्धी बातचीत हुई, लौटकर घर पहुँचे। भोजन कर भ्रमण का विचार किया, वर्षा हो रही थी। यहाँ का मौसम विचित्र है, कहने को तो बसन्त का समय है, प्रातः हिमपात हो रहा था, दिन में धूप खिली थी, सायंकाल वर्षा हो रही थी। वर्षा के कारण गाड़ी में घूमने निकले, लौटते हुए मार्ग में बहुत बड़ा जुआघर था, देखने के लिये अन्दर गये। हजारों स्त्री-पुरुष बड़ी-छोटी सभी आयु के अलग-अलग तरीकों से खेलने में लगे थे। यहाँ के लोगों का अपने अकेलेपन को दूर करने का यह सामाजिक केन्द्र है। लौटकर घर पहुँचे। डॉक्टर जी के श्वसुर डॉ. ओप्रकाश वर्मा वाले पुराने आर्य और कर्मठ कार्यकर्त्ता थे, वे परोपकारी पत्रिका के आजीवन पाठक रहे। उन्होंने बर्मा, अमेरिका में बहुत सारे लोगों को परोपकारी पत्रिका का ग्राहक बनाया था। डॉक्टर जी ने शिकागो में एक बड़ा भवन, जिसमें पहले चर्च था, क्रय करके यहाँ आर्य समाज मन्दिर बनाया है। आपके सहयोग से संघ के लिये बहुत बड़ी भूमि आर्य समाज के साथ ही दी हुई है। संघ की सौ से अधिक शाखायें अमेरिका में चलती हैं। आप यहाँ संगठन के अध्यक्ष हैं। आपके श्वसुर दृढ़ आर्य थे, उन्हीं ने आपको आर्य समाज की ओर प्रेरित किया। विपश्यना के प्रवर्तक गोयनका डॉ. ओप्रकाश जी के साथ बर्मा में आर्य समाज के कामों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे।  अमेरिका में बने विपश्यना भवन की भूमि का दान भी डॉ. सोनी जी ने ही किया था। डॉ. सोनी कैन्सर विशेषज्ञ हैं, अब 80 वर्ष की आयु हो गई है, अतः चिकित्सा कार्य छोड़ दिया। अधिक समय आर्य समाज के काम में लगाने का प्रयास करते हैं। आर्य समाज में डॉ. दिलीप वेदालंकार की मृत्यु के बाद योग्य विद्वान् की कमी बनी हुई है।

3 अप्रैल को प्रातराश करके डॉ. सोनी, श्रीमती सोनी के साथ आर्य समाज के लिये निकले, लगभग एक घण्टे का मार्ग है, कुछ पहले पहुँच गये थे तो एक चक्कर गुजराती मन्दिर अक्षरधाम  का लगाकर आये, रविवार के कारण पर्याप्त भीड़ थी। लौटकर समाज मन्दिर पहुँचे। प्रथम यज्ञ हुआ, एक बालक और उसके पिता का साथ जन्मदिन था। विशेष आहुतियाँ दिलाकर आशीर्वाद दिया। फिर एक भजन और मेरा व्याखयान हुआ। एक घण्टा प्रवचन और आधा घण्टा प्रश्नोत्तर हुए, सबने मिलकर भोजन किया। वहाँ से मैं पटेल जी के साथ उनके घर आया। पटेल जी का घर हवाई अड्डे के निकट है। डॉक्टर जी के घर से हवाई अड्डा बहुत दूर है और अवस्था बड़ी होने से शारीरिक श्रम अधिक समभव नहीं है। सायं पटेल जी के साथ शिकागो के हिन्दू मन्दिर गया। यह विशाल एवं भव्य बना हुआ है। यहाँ अधिकांश गुजराती समुदाय के लोग दिखाई दे रहे थे। आज सत्यनारायण कथा का आयोजन था। कथा के बाद सबसे भेंट की, भोजन किया और घर पर लौटे। यहाँ एक पत्रकार श्री सीताराम पटेल मिलने आये, भारत की परिस्थिति के बारे में चर्चा की, प्रातः जाना था, वार्ता समाप्त कर विश्राम किया।

4 अप्रैल प्रातः जागरण, यात्रा की सज्जा की, श्रीमती पटेल ने भोजन तैयार करके रखा था। वे एक डाकखाने में काम करती हैं। श्री पटेल सेवानिवृत्त हैं। डॉ. सोनी जी के साथ समाज सेवा का कार्य करते हैं। गुजरात में आपके पिता विधानसभा के सदस्य थे। श्री पटेल के साथ हवाई अड्डे पहुँचा, उनका धन्यवाद किया, नमस्ते कर अन्दर गया। सुरक्षा जाँच के बाद यान में बैठा, यान यथासमय चला और यहाँ के समयानुसार सनफ्रांसिस्को 11 बजे पहुँच गया। भास्कर और सुयशा आ गये थे, उनके घर पहुँच कर स्वाध्याय व लेखन कार्य कर विश्राम किया।

5 अप्रैल को यहाँ के बाजारों में भ्रमण किया। स्वाध्याय और लेखन कार्य किया।

6 अप्रैल को अटलान्टा की यात्रा की सज्जा की। सुयशा भास्कर के साथ सैन होजे हवाई अड्डा पहुँचे, सुनसान लग रहा था। मुझे पहुँचाकर दोनों लौट गये। यान के प्रस्थान में समय था, धीरे-धीरे लोगों की संखया बढ़ने लगी। यान के प्रस्थान तक पूरा यान भर गया। सारे सहयात्री अभारतीय थे, अतः किसी से कोई बात नहीं हो सकी।

7 अप्रैल को प्रातः सात बजे यान अटलाण्टा पहुँच गया। यहाँ के समय में अन्तर था, सनफ्रान्सिसको में सुबह 4 बजे थे। दूरभाष में कुछ खराबी आ रही थी, कोई नहीं मिला। एक गोरे युवक से सहायता ली, पहले उसकी समझ में भी कुछ नहीं आया, उसने फिर प्रयास किया और दूरभाष ठीक हुआ। विश्रुत से सपर्क  किया, विश्रुत अपनी पत्नी और पुरोहित जी के साथ अड्डे पर पहुँच गये थे, थोड़ी देर में सब मिल गये। गाड़ी से विश्रुत के घर पहुँचकर आवश्यक कार्य सपन्न किये। परिवार में श्री सुभाष वेदालंकार का प्रयास फलित हो रहा है, सभी बच्चों के साथ संस्कृत बोलने का प्रयास करते हैं, बच्चे भी उत्साह से उत्तर देते हैं। इनके परिवार में विश्रुत उनकी धर्मपत्नी स्वाति और पुत्र हविष्कृत है तथा छोटे भाई विराट, पत्नी अनन्या तथा बेटा अनुभव व बेटी ऋचक्षा है। यह अतिशय प्रसन्नता की बात है। वैसे भारत में भी हमारा अंग्रेजी प्रेम उबाल खाता है, परन्तु भारतीय अमेरिका में तो अपने को गोरा ही समझते हैं, बच्चों को हिन्दी या मातृभाषा से दूर रखने में ही गौरव समझते हैं। विश्रुत के बेटे हविष्कृत ने मुझसे कहा- दादा जी, आप जब तक यहाँ रहें, मेरे साथ संस्कृत में ही बोलें। हम दोनों ने ऐसा ही किया। उसे कुछ संस्कृत के श्लोक भी स्मरण कराये। आज आर्य समाज से श्री विद्याधर शर्मा मिलने आये, वे बीकानेर के निवासी हैं, भारत की चर्चा होती रही। सायंकाल आर्य समाज भवन में सत्संग हुआ, आज का विषय था- ‘संस्कारों की आवश्यकता’ पश्चात् प्रश्तोत्तर हुए। भोजन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। श्री गिरीश खोसला जी को पधारना था, वे रुग्णता के कारण नहीं आ सके।

शेष भाग अगले अंक में…..