मेरी अमेरिका यात्रा
– डॉ. धर्मवीर
पिछले अंक का शेष भाग…..
8 अप्रैल को आर्य समाज के पुरोहित पं. वेदश्रमी जी ने घर पर नववर्ष का आयोजन रखा था, यज्ञ के पश्चात् प्रवचन किया। भोजन कर घर लौटे। सायंकाल का कार्यक्रम आर्य समाज के संस्थापक और संरक्षक दीनबन्धु चन्दौरा जी के घर था। आप डॉक्टर हैं, जोधपुर के निवासी थे, बहुत समय से अमेरिका में हैं। डॉ. ओप्रकाश अरोड़ा और आप सहपाठी थे, यहाँ फिर मिल गये। मिलकर और लोगों को साथ लेकर आर्य समाज की स्थापना की। पहले समाज घरों पर चलता था, फिर स्थान लेकर भवनाी बना लिया। आपने अनेक लोगों को पुरोहित के रूप में बुलाया, बाद में किसी कारण से विवाद हुआ, वे लोग पृथक् होकर कार्य करने लगे। लाभ यह हुआ कि इस बहाने आर्य समाज के अनेक प्रचारक अटलाण्टा में हो गये। सायंकाल का कार्यक्रम श्री चन्दौरा जी के घर पर हुआ। मैंने कुछ चर्चा की फिर प्रश्नोत्तर व भोजन हुआ, लौटकर विश्राम किया।
9 अप्रैल को विश्रुत जी ने तेलुगु लोगों के साथ कार्यक्रम रखा था। स्थान दूर था, पहुँचने में एक घण्टा लगा। परिवार में कार्यक्रम था 30-40 स्त्री-पुरुष थे। तेलुगु अनुवाद की व्यवस्था थी। कार्य 11 बजे से चार बजे तक चला, मध्य में भोजन हुआ। इस चर्चा में ईश्वर, वेद, मूर्त्तिपूजा आदि दार्शनिक विषयों पर खूब चर्चा हुई, सबने उत्साह से भाग लिया। पश्चात् घर तक पहुँचा गये। रात्रि आर्य समाज में कार्यक्रम था, एक घण्टा व्याखयान और आधा घण्टा प्रश्नोत्तर हुए। भोजन के साथ कार्यक्रम समपन्न हुआ। यहाँ आर्य विद्वान् श्री आशीष जी देहरादून वालों की मौसी जी डॉ. विजय अरोड़ा रहती हैं। वे और उनके पति डॉ. ओप्रकाश अरोड़ा आर्य समाज का बहुत कार्य करते हैं, निर्माण के कार्य की देखरेख आप ही करते हैं। बच्चे बाहर रहते हैं। घर में दो ही प्राणी हैं।
10 अप्रैल रविवार था, तैयार होकर प्रातराश किया। श्रीमती अरोड़ा भोजन बनाने में व्यस्त रही, क्योंकि आर्य समाज के भोजन में सब सदस्य कार्य बाँट लेते हैं, किसे क्या-क्या लाना है और डॉ. अरोड़ा समाज पहुँचे, प्रथम यज्ञ हुआ फिर प्रवचन, विषय था ‘समय का जीवन पर प्रभाव’ पश्चात् प्रश्नोत्तर हुए। भोजन के साथ कार्यक्रम समपन्न हुआ। कार्यक्रम के बाद डॉ. चन्दौरा जी के साथ उनके घर गया, आर्य समाज के विषयों पर चर्चा हुई। सायं विश्रुत के घर लौटा। 6 बजे डॉ. वीरदेव बिष्ट आ गये, उनके साथ उनके घर गये, उन्हें अपने मित्रों का आतिथ्य करने में बड़ा आनन्द आता है। वैसा ही स्वभाव उनकी श्रीमती का है। वे परिवार सहित अजमेर की यात्रा कर चुके हैं। डॉ. वीरदेव मूलरूप से नेपाल के नागरिक हैं, वे पूरे नेपाल देश के प्रथम पी-एच.डी. हैं। आपकी शिक्षा का प्रारमभ गुरुकुल चित्तौड़ से हुआ फिर गुरुकुल झज्जर से व्याकरणाचार्य कर गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय से एम.ए., पी-एच.डी. किया। नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने, वहाँ से दक्षिण अफ्रीका गये, जहाँ से डॉ. चन्दौरा के माध्यम से अमेरिका आये। कुछ मतभेद होने पर स्वतन्त्र रूप से वैदिक धर्म के प्रचार में संलग्न हैं। वे बता रहे थे कि उन्होंने अभी तक अमेरिका में 11 हजार कार्यक्रम किये हैं। आपकी दो पुत्रियाँ हैं, बड़ी पुत्री ने अमेरिका में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से चिकित्सा में एम.डी. किया है तथा छोटी पुत्र प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर फ्रान्स में राजदूत हैं। आपके साथ गुरुकुल की पुरानी स्मृतियाँ दोहराने का अवसर मिला। सायंा्रमण करते यहाँ का प्रसिद्ध अक्षरधाम मन्दिर देखा, आकर भोजन कर विश्राम किया।
11 अप्रैल प्रातः परिवार के साथ यज्ञ किया। आज उनको इस घर में आये 20 वर्ष हो गये थे। भोजन करके विदा ली, विश्रुत के घर गया, वहाँ से चन्दौरा जी के छोटे भाई श्री ब्रह्मदत्त चन्दौरा जी मध्याह्न भोजन के लिये अपने घर ले गये। आप आर्य वीर दल के स्वयं सेवक रहे हैं। घर में दृढ़ शाकाहारी हैं, बच्चे भी शाकाहारी हैं, आपकी पत्नी भोजन की पवित्रता का बहुत ध्यान रखती हैं। सभा के पुराने सहयोगी हैं। भोजन करके विश्रुत के घर लौटा। सायं डॉ. दीनबन्धु चन्दौरा जी के साथ पं. गिरी जी के घर गये, आपको भी डॉक्टर जी ही अमेरिका लाये थे। कुछ मतभेद होने से पण्डित जी ने स्वतन्त्र कार्य प्रारमभ किया। आप भी आर्य समाज के प्रचार-प्रसार में तन-मन से लगे हैं। स्वभाव से सरल एवं सहयोगी हैं। आपने अपने घर यज्ञ एवं सत्संग का आयोजन रखा था, पड़ौस में मुस्लिम परिवार रहता है, वह भी प्रेम से सत्संग में भाग लेता है। आज बालकों के लिये प्रवचन किया, भोजन कर विश्रुत के यहाँ लौटकर विश्राम किया।
12 अप्रैल को प्रस्थान का दिन था, परन्तु सभी बन्धुओं का अपने-अपने घर चलने का आग्रह था, सबकी इच्छा तो पूरी नहीं हो सकती थी। पहले श्रीमती रूपा लूथरा पधारीं, उनके घर प्रातराश करके अटलाण्टा का दर्शनीय स्थल देखा, यह पूरा पर्वत ग्रेनाइट पत्थर का है, इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है, इस पर्वत में खोद करके तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों की मूर्त्तियाँ बनाई गई हैं। उद्यान है, वन है, मनोरञ्जन के स्थान हैं। वहाँ से बाजार देखते हुए घर लौटकर भोजन किया, फिर आर्य समाज में पं. वेदश्रमी जी के यहाँ पहुँचा। उनके साथ भारत जी के घर गये, आप भी इञ्जीनियर हैं, स्वतन्त्र रूप से काम करते हैं। विश्रुत विराट के साथ मिलकर अमेरिका से शाकाहार का आन्दोलन चलाते हैं। आधा घण्टा बात करके पं. वेदश्रमी जी के साथ हवाई अड्डे पहुँचा, वहाँ पर पहले विश्रुत धर्मपत्नी स्वाति तथा श्री श्याम चन्दोरा की धर्मपत्नी श्रीमती प्रवीण चन्दौरा सहित उपस्थित थे, घर से सायं का भोजन भी बनाकर साथ लाये थे। छः बजे हवाई अड्डे के अन्दर गया, सुरक्षा जाँच के बाद यान में बैठा, यथा समय चल कर यहाँ के समय अनुसार 10 बजे सैनहोजे पहुँच गया। सुयशा भास्कर आ गये थे, वहाँ घर पहुँचकर विश्राम किया।
13 अप्रैल का समय स्वाध्याय और लेखन कार्य में व्यतीत किया।
14 अप्रैल प्रातराश करके लॉसएञ्जिलिस के लिये निकले। सुयशा भास्कर ने दो दिन का अवकाश ले लिया था, गाड़ी से मार्ग के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करते घर से निकले, जाने का मार्ग समुद्रतट वाला चुना। 17 मील होते हुए, समुद्र के किनारे पहाड़ी पर बने हुये एक महल के पास पहुँचे, इसको हर्स्ट कैसल कहते हैं। इस महल में बहुत से कक्ष, तरणताल, पुस्तकालय सभी कुछ हैं। यह व्यक्ति समाचार पत्र समूह का संचालक था, जिसने पूरे विश्व से साढ़े बाइस हजार वस्तुओं का संग्रह किया था। यह महल मरते समय वह व्यक्ति सरकार को दे गया था, जो एक संग्रहालय के रूप में देखा जाता है। उसको यह महल बनाने की प्रेरणा माता से प्राप्त हुई थी, जिसके साथ यूरोप की यात्रा पर गया था, उससे उस क्षेत्र की गाय का मांस बहुत प्रसिद्ध है, जिसे कैसल की दुकानों से बेचा जाता है। दो घण्टे तक इन वस्तुओं को देखकर आगे चले। इस महल से सब ओर समुद्र और पर्वतों के सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं। इसको बनाते समय एक भी पेड़ काटा नहीं गया, स्थानान्तरित किये गये हैं।
फिर समुद्र के साथ-साथ सान्ता बारबरा पहुँचे। समुद्र किनारे का सुन्दर नगर, समुद्र के अन्दर दृश्य देखने के स्थान को पीयर कहते हैं, यह लकड़ी का बना होता है, इसके ऊपर चलकर समुद्र के अन्दर दूर तक जाया जा सकता है। वहाँ दृश्य देखकर रहने का स्थान खोजा, पूरे नगर में कोई स्थान नहीं मिला। दस मील दूर जाके होटल में स्थान मिला, रात्रि विश्राम किया।
15 अप्रैल प्रातः होटल से निकलकर समुद्र का किनारा पकड़ा, मार्ग में खेत, पहाड़ों का सौन्दर्य देखते हुये लॉसएञ्जिलिस के उपनगर सैण्टा मोनिका पहुँचे। यहाँ का समुद्रतट सुन्दर और मनोरञ्जन से भरपूर है, पहले रेलगाड़ी का अनुभव लिया। दोपहर लॉसएञ्जिलिस पहुँचकर शाकाहारी भोजनालय की खोज की। इण्डियन स्वीट्स नाम का भोजनालय मिला, यहाँ गोरे और भारतीय शाकाहारी भोजन के लिये आते हैं। होटल वाले ने कहा- भोजन एक घण्टा देर से मिलेगा, क्योंकि उसे नबे पराठों का ग्राहक मिला है, पहले उसका काम पूरा करूँगा। भोजन करके मुखय बाजार में आये। विश्व प्रसिद्ध हॉलीवुड स्थान देखा। यहाँ की सड़कों की दोनों पटरियों पर पीतल के पट्टे पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर हॉलीवुड के प्रसिद्ध हस्तियों के नाम लिखकर लगाये हुए हैं। वह विशाल भवन देखा, जिसमें ऑस्कर पुरस्कार दिये जाते हैं। एक वाहन लेकर नगर भ्रमण किया, जिसमें उसने हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता-अभिनेत्रियाँ जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ का भ्रमण कराया। मार्गदर्शक ने प्रसिद्ध लोगों के घर बाहर से बताये। सायंकाल होटल खोजते हुए एक उपनगर में गये, वहाँ कमरा लेकर विश्राम किया।
16 अप्रैल को श्री सुरेन्द्र मेहता जी के घर कार्यक्रम था, उनसे सपर्क किया, दोपहर दिल्ली वाला भोजनालय पर मिलने का निश्चय हुआ। हम यथासमय पहुँच गये। मेहता जी भी पत्नी के साथ पहुँच गये, परिचय हुआ, भोजन करके उनके साथ घर पहुँचे। घर में दोनों प्राणी एकाकी रहते हैं। दो बेटे हैं, दोनों बाहर काम करते हैं। सायं पाँच बजे परिवार में सत्संग रखा था, 30-40 व्यक्ति आ गये थे, श्री सुधीर आनन्द जी भी पहुँच गये थे। योग विषय पर चर्चा हुई, दो घण्टा कार्यक्रम चला, सबने भोजन किया, कार्यक्रम समाप्त कर घरेलू बातें की, विश्राम किया। दोनों पति-पत्नी आर्य समाज के अच्छे कार्यकर्त्ता हैं। आपने लॉस एंजिलिस में स्वामी रामदेव जी के योग शिविर का आयोजन किया था। आज भी नियमित योग कक्षा लेते हैं। रात्रि विश्राम किया।
आपने बताया कि यूरोपियन और अमेरिकी विद्वानों और राजनीतिज्ञों को भारत की कोई भी अच्छी बात स्वीकार करने का साहस नहीं। अपनी निनता को छिपाकर वे दूसरे को अपने से नीचा करके अपनी उच्चता प्रदर्शित करने का यत्न करते हैं। आजकल अमेरिका में एक विवाद चल रहा था। वहाँ की सरकार अपने इतिहास के पाठ्यक्रम में यह नहीं पढ़ाना चाहती कि भारत को इस काल में स्वतन्त्रता मिली। देश का उल्लेख करने से उसका अस्तित्व और इतिहास पर दृष्टि जाती है, इसके स्थान पर वे बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं कि साऊथ ईस्ट एशिया को स्वतन्त्रता कब मिली? भारतीय लोगों ने वहाँ इसका इतना विरोध किया कि इस प्रस्ताव को समाप्त तो नहीं किया गया, परन्तु इसको स्थगित कर दिया गया है। ऐसे प्रयासों का उद्देश्य यही रहता है कि वहाँ रहने वाले भारतीय का अपने मूल से सबन्ध समाप्त हो जाये।
एक घटना का उल्लेख करना उचित होगा, जिससे मुस्लिम मानसिकता का पता चलता है। वे अमेरिका में रहकर भी हिन्दू विरोधी मानसिकता से कितना पीड़ित और प्रताड़ित है कि अमेरिका भी उसे आधुनिक नहीं बना सका। लॉस एञ्जिलिस में सुरेन्द्र कुमार मेहता बता रहे थे, ह्यूस्टन के एक मुसलमान ने समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाया कि कोई मुस्लिम युवक किसी हिन्दू लड़की से विवाह करके उसे एक साल बाद तलाक दे देगा तो उस युवक को वह पन्द्रह हजार डॉलर का पुरस्कार देगा। इस घटना में हिन्दू को मुसलमान बनाने से अधिक हिन्दू को अपमानित करने का भाव अधिक है।
अमेरिका के हिन्दू संगठनों ने इसका विरोध किया और इस विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगवाया।
17 अप्रैल रविवार था, प्रातः घर पर मेहता जी से ‘दर्शन’ विषय पर चर्चा हुई। प्रातराश करके मेहता जी के साथ आर्य समाज पहुँचे। आर्य समाज का सत्संग एक क्लब में होता है, जो चार घण्टे के लिये मास में एक बार किराये पर लिया जाता है। पहले समाज का भवन था, परन्तु आपसी झगड़े में बिक गया। प्रथम यज्ञ हुआ फिर श्री सुधीर आनन्द जी ने मेरा परिचय दिया। मैंने ‘आज के युग में वेदों की आवश्यकता’ विषय पर व्याखयान दिया, फिर प्रश्नोत्तर हुए। भोजन के बाद कार्यक्रम समाप्त हुआ। विश्रुत के भाई विराट यहाँ कार्य करते हैं, वे भी यहाँ कार्यक्रम में उपस्थित थे। सबसे विदा लेकर छोटे रास्ते से लौटे, यह मार्ग यद्यपि खेतों और फलों के उद्यानों का था, परन्तु वर्षा के अभाव में सर्वत्र सूखे का साम्राज्य दीख रहा था। मार्ग में पहाड़ों के बीच सुन्दर झील थी। इस प्रकार पाँच सौ किलोमीटर की यात्रा कर रात्रि को घर पहुँच गये। गाड़ी चलाने का काम भास्कर ने किया।
इन दिनों अधिकांश समय स्वाध्याय और लेखन कार्य में लगाया।
23 अप्रैल की सुयशा और भास्कर के साथ सनफ्रान्सिस्को देखने का विचार किया, नगर पुराना और बहुत सुन्दर है। जहाँ से भी देखें स्वच्छता, सुन्दरता व्यवस्था सब ओर दिखाई देती है। हम पहले गोल्डन गेट पार्क देखने गये। यह उद्यान नगर के मध्य में होने पर भी कहीं कोई अतिक्रमण नहीं है। उद्यान एक हजार एकड़ में फैला हुआ है। इसमें संग्रहालय, खुला रंगमञ्च, विभिन्न उद्यान, खेल के मैदान, उल्लास यात्राओं के अनेक स्थान बने हुए हैं। अवकाश के दिन माता-पिता और बच्चे तथा पर्यटकों का मेला लगा रहता है। एक घण्टे से अधिक समय गाड़ी खड़ी करने का स्थान खोजने में लगा। दो घण्टे उद्यान के अनेक भाग देखे। प्रकृति का संरक्षण बहुत अच्छे प्रकार से किया हुआ है।
उद्यान देखकर नगर का प्रसिद्ध स्थान लोबर्ड स्ट्रीट गये। नगर समुद्र के तट पर पहाड़ी पर बसा हुआ है। नगर के मार्ग बहुत ऊँचे-नीचे हैं। यहाँ पर एक दर्शनीय स्थल है, जिसे क्रुकेड स्ट्रीट कहते हैं। एक सड़क ऊपर से आते हुए एकदम नीचे सड़क से मिलती है, उस ऊँचाई पर एक सर्पाकार मार्ग कारों के उतरने के लिये बनाया है। सड़क के दोनों ओर उतरने-चढ़ने के लिये कम ऊँचाई की सीढ़ियाँ बनी हुई है। उनकी संया चार सौ के लगभग लिखी थी। इस मार्ग पर गाड़ी चलाने का अनुभव रोमाञ्च भरा होता है। हम सीढ़ियों से उतरे और चढ़े। यह स्थान एक सौ बासठ वर्ष पूर्व का बना हुआ है। दर्शकों की उत्कण्ठा और प्रसन्नता देखते ही बनती है। लौटकर सायं घर पहुँच कर विश्राम किया।
24 अप्रैल को स्वदेश प्रस्थान का दिन था, विमान के चलने में विलब की सूचना थी। समय का उपयोग कर के साप्ताहिक बाजार गये, सामान क्रय कर लौटे। 11 बजे घर से निकल सनफ्रांसिस्को हवाई अड्डे पर पहुँचे। सुरक्षा जाँच तक सुयशा भास्कर ने प्रतीक्षा की फिर नमस्ते कर अन्दर पहुँच गया, दो बजे के बाद वायुयान ने उड़ान भरी, सोलह घण्टे निरन्तर उड़ते हुए, जापान के मार्ग से अगले दिन 6 बजे दिल्ली इन्दिरा गाँधी हवाई अड्डे पर उतरा। विशेष बात यह रही कि तकनीकी दृष्टि से यात्रा में 25 घण्टे लगे। वास्तव में 16 घण्टे लगे। दिन में चलकर दिन में ही दिल्ली पहुँच गया, बिना मध्य में रात्रि आये दो दिन हो गये। विपरीत दिशा में चलते हुए ऐसा हुआ।
हवाई अड्डे पर ज्योत्स्ना और ऋचा पहुँच गये थे। उनके साथ घर पहुँच गया और अगले दिन अजमेर, इस प्रकार उक्ति सार्थक हुई- ‘बेताल फिर डाल पर।’