ओउम्
आसुरीभाव दूर करने को हम आध्यात्मिक बनें
डा.अशोक आर्य
परमपिता परमात्मा को स्मरण करने से, उस प्रभु का स्तवन करने से अधयात्म संग्राम में मानव विजयी होता है तथा उसमें आसुरी प्रवृतियां प्रवेश नहीं करतीं । इस बात पर ही यह मन्त्र प्रकाश डालते हुये उपदेश करता है कि : -=
इमेनरोवृत्रहत्येषुशूराविश्वाअदेवीरभिसन्तुमायाः।
येमेधियंपनयन्तप्रशस्ताम्॥ ऋ07.1.10
१ प्रभु भक्त से शत्रु भयभीत
इस मन्त्र मे प्रभु उपदेश करते हुये कहते हैं कि मन जो भी प्राणी ज्ञान पूर्वक मेरी प्रशस्त स्तुति का उच्चारण करता है , जो भी मुझे स्मरण करता है, जो भी मेरा स्तवन सच्चे मन से करता है ,एसे मानव विभिन्न प्रकार के संग्रामों में , युद्धों मे शत्रुओं को दहला देने वाले, कम्पा देने वाले, परास्त कर देने वाले होते हैं ।
हम जानते हैं कि मनोबल अर्थात् का बल मानव जीवन में विशेष महत्त्व रखता है | जिस का यह मानसिक बल द्दृढ है , वह आने वाले बड़े से संकट , आने वाली भयंकर से भयंकर विपति में भी घबराता नहीं , अपने मनोबल को छोड़ता नहीं | बड़े साहस से उस का सामना करता है | शक्ति कम होते हुए भी वह अपने मन की अपार शक्ति , जो उस ने प्रभु भक्ति से प्राप्त की होती है , के कारण उस संकट से पार पा लेता है |
मनोबल से हम अपनी आन्तरिक शक्तियों को भी विजय करने में साल होते हैं | हम कभी किसी भी प्रकार के संकट में घबराते नहीं बड़े साहस से संकट का प्रतिरोध करते हैं, इसका मुकाबला करते हैं | हमारे यह पुरुषार्थ उतम परिणाम दी हैं और इस संकट से पार पाने में हम सफल होते हैं | संकट के समय यदि हमारा मन साथ नहीं देता | हमारा मन कठोर नहीं होता , साहस खो बैठता है तो हम बुद्धि विहीन से हो जाते हैं | कुछ सोचने की शक्ति हमारे पास नहीं रहती | हम कुछ भी उपाय विचारने से रहत हो जाते हैं | इस कारण हम पुरुषार्थ कर ही नहीं पाते तो फिर संकट से पार कैसे हों | बस कुछ भी नहीं कर पाते और हाथ पर हाथ धर कर सब कुछ प्रभु हाथ सौंप कर बैठ जाते हैं जबकि यह पुरुषार्थ ही है जो सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला है | हम ने इस पुरुषार्थ को ही छोड़ दिया तो फिर प्रभु सफलता ही कैसे दे सकता है ? अर्थात हमें किसी कार्य में फिर सफलता नहीं मिल पाती | हम निराश हो जाते हैं , हताश होआ जाते हैं और जीवन के युद्धों में निरंतर पराजित होते चले जाए हैं |
निरन्तर पराजित होता रहता है | हम जानते हैं कि मुग़ल बादशाह अकबर के पास अपार सेना थी | उसे गर्व था अपनी इस टीडी दल सरीखी सेना के भण्डार पर किन्तु दृढ मनोबल से लबालब महाराणा प्रताप को वह परस्त करने में सफल होने के स्थान पर निरंतर उस वीर योद्धा से मार खाता रहा और रण छोड़ कर भागता रहा | इस का कारण क्या था ? यही कि वह प्रताप सरीखा मनोबल अपने अन्दर उत्पन्न न कर सका | चाहे महाराणा अनेक बार युद्ध में परस्त भी हुए , अपने बहुत से क्षेत्र मुगलों के हाथों खो बैठे किन्तु उन्होंने अपने साहस ,अपनी वीरता ,अपने शोर्य के आधार इस मनोबल को कभी नहीं खोया | इस मनोबल का ही परिणाम था कि मुट्ठी भर सेना की सहायता से विशाल सेना के छक्के छुडाते रहे , उसे परास्त कर पाने में सफल होते रहे |
२ आसुरी प्रवृतियों का नाश
इतना ही नहीं जितनी भी असुरी मायायें होती हैं ,आसुरी प्रवृतियां होती हैं , राक्षसी व्यवहार होते हैं , उन सब को छ्ल छिद्र कर देते हैं , परास्त कर देते हैं, जीर्ण शीर्ण कर देते हैं । कमजोर मन से किसी भी कार्य की सिधी नहीं हो पाती | जब आसुरी प्रवृति वाले व्यक्ति से सामना होता है तो क्या होता है ?
आसुरी प्रवृति के लोगों की यह विशेषता होती है कि शक्तिशाली के सामने झुक कर अपना काम निकालने के लिए उसकी दया के पात्र बनाने का प्रयास करो और यदि सामने वाले का मन दुर्बल हो तो उस पार बाज कि भाँति टूट पडो , उसे संभलने
का अवसर ही न दो और एक दम से दबोच लो | बस यह ही तो है जीवन का व्यवहार ! जीवन के इस व्यवहार में सफलता का एकमेव मार्ग है मनोबल की अपार शक्ति ! मनोबल की शक्ति के सामने आसुरी प्रवृतियां टिक ही नहीं पाती | इस लिए जीवन में कभी मनोबल को गिराने न दो | बड़े से बड़े संकट काल में भी मनोबल को बनाए रखो | यदि मनोबल दृढ है तो रक्षसी प्रवृति के लोग हमारा कुछ बिगाड़ न पावेंगे और हम बिना किस भय के समाज की सेवा करने में सदा सक्षम रहेंगे |
वास्तव में जो लोग प्रभु से प्रेम करते हैं , इस प्रभु प्रेम के ही कारण वह तेजस्वी हो जाते हैं , उनमें विशेष प्रकार का तेज आ जाता है । इस तेज से ही उन्हें एक विषेश प्रकार की अमोघ शक्ति प्राप्त हो जाती है, एक विशेष प्रकार का अमोघ अस्त्र मिल जाता है तथा वह सब प्रकार के आसुरीभावों , आसुरी प्रवृतियों का विनाश कर देते हैं तथा अपने जीवन को पवित्र कर लेते हैं ।
इसलिए ही यह मन्त्र उपदेश कर रहा है कि हमें अल को कभी नहीं छोड़ना चाहिए | इसे निरंतर आए रखना चाहिए | इस मनोबल की प्राप्ति प्रभु भक्त को सरलता से हो जाती है | इस लिए हमें सदा परम पिता परमात्मा का आशीर्वाद पाने का प्रयास करते रहना चाहिए |
डा. अशोक आर्य