आचार्य सत्यानन्द नैष्ठिक
आपका जन्म १९३९ में जिला करनाल के गांव कत्तलेहडी में मराठा कुल के एक किसान परिवार में हुआ। लगभग २५ वर्ष की आयु में आपने पास के गांव गोन्दर में आर्यसमाज का वेदप्रचार कार्यकम सुना। इतने प्रभावित हुए की आपने घर ही छोडऩे का फैसला लिया। आर्यसमाज के लिए आजीवन नैष्ठिक ब्रह्मïचारी का संकल्प लेकर स्वामी भीष्म के गुरुकुल घरौंड़ा से प्रथम कक्षा से पढऩा शुरू किया एम०ए० संस्कृत , व्याकरण, आचार्य तक की शिक्षा ग्रहण की । बड़ी आयु में शिक्षा ग्रहण करके यहाँ तक पहुँचना आपने एके मिशाल बनाई।
आपका प्रारम्भिक रूझान आयुर्वेद में रहा, फिर साहित्य के क्षेत्र उतरे। स्वामी जी ने अपने पुरुषार्थ व कर्मठता से आर्यसामाजिक साहित्य की रूप देख ही बदल दी। आकर्षक रंगीन टाइटलों सहित ग्रन्थों का कम्प्यूटरीकरण, सुन्दर प्रिटिंग व बढिय़ा लगाने कागज परम्परा आपने ही सर्वप्रथम शुरू की बाद में अन्य सभी प्रकाशको ने भी यह रास्ता अपनाया। सत्यधर्म प्रकाशन के नाम से २०० से अधिक ग्रन्थों का प्रकाशन किया वेदों सहित अभी लगभग ३० ग्रन्थों का प्रकाशन के लिए कार्य चल रहा था। वैदिका साहित्य की सेवा आपके जीवन सबसे बड़ी उपलब्धि रही।
पिछले ६ महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे। २ अप्रैल २०१७ को देहरादून अस्पताल में आपने अन्तिम श्वास ली। इससे १५ दिन पूर्व पतंजलि योगग्राम में चिकीत्सा होती रही। बहुत लाभ मिला, बहुत प्रसन्न थे। दो दिन पूर्व अचानक स्वास्थ्य गिरने लगा और गिरते ही चला गया। अस्पताल में डाक्टर भी कोई विशेष सहायता नहीं कर सके और वे चले ही गये। प्रभु इच्छा पूर्ण हुई।
आर्यसमाज के लिए यह बहुत बड़ी क्षति है। उनके पुरुषार्थ व तप को हमेशा याद रखेगा।
(द्वारा—महेन्द्र सिंह आर्य, करनाल)