यहां प्रसंगवश यह स्पष्ट कर देना उपयोगी रहेगा कि मनु गुणों के प्रशंसक हैं और अवगुणों के निन्दक। गुणियों को समानदाता हैं, अवगुणियों को दण्डदाता। यदि उन्होंने गुणवती यिों को पर्याप्त समान दिया है, तो अवगुणवती यिों की निन्दा की है और दण्ड का विधान किया है। मनु की एक विशेषता और है, वह यह कि वे नारी की असुरक्षित तथा अमर्यादित स्वतन्त्रता के पक्षधर नहीं हैं, और न उन बातों का समर्थन करते हैं जो परिणाम में अहितकार हैं। इसीलिए उन्होंने यिों को चेतावनी देते हुए सचेत किया है कि वे स्वयं को पिता, पति, पुत्र आदि की सुरक्षा से अलग न करें, क्योंकि एकाकी रहने से दो कुलों की बदनामी होने की आशंका रहती है (5.149; 9.5-6)। देखिए एक प्रमाण-
पित्रा भर्त्रा सुतैर्वापि नेच्छेद् विरहमात्मनः।
एषां हि विरहेण स्त्री गर्ह्ये कुर्यादुभे कुले॥ (5.149)
अर्थ-‘किसी भी स्त्री को अपने पिता, पति या पुत्र के संरक्षण से रहित अपने आपको एकाकी रखने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि इनसे पृथक् एकाकी रहने से दो कुलों के (अपने और पति के) अपयश की आशंका बनी रहती है।’ कारण यह है कि एकाकी रूप में रहते हुए स्त्री अपराधियों से अपनी रक्षा नहीं कर सकती। किसी स्त्री को पुरुष-संरक्षण के बिना एकाकी रहते देखकर अपराधी उसकी ओर कुदृष्टि रखने लगते हैं।
इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि मनु यिों की स्वतन्त्रता के विरोधी हैं। इसका निहितार्थ यह है कि नारी की सर्वप्रथम सामाजिक आवश्यकता सुरक्षा की है। वह सुरक्षा उसे, चाहे शासन-कानून प्रदान करे अथवा कोई पुरुष या स्वयं का सामर्थ्य। भोगवादी आपराधिक प्रवृत्तियां उसके स्वयं के सामर्थ्य को सफल नहीं होने देतीं। उदाहरणों से पता चलता है और यह व्यावहारिक सच्चाई है कि शधारिणी डाकू यिों तक को भी पुरुष-सुरक्षा की आवश्यकता रहती है। मनु के उक्त कथन को आज की राजनीतिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में देखना सही नहीं है। आज देश में एक शासन है और कानून उसका रक्षक है। फिर भी हजारों नारियां अपराधों की शिकार होकर जीवन की बर्बादी की राह पर चलने को विवश हैं। प्रतिदिन बलात्कार, अपहरण, नारी-हत्या जैसे जघन्य अपराधों की अनेक घटनाएं होती हैं। जब राजतन्त्र में उथल-पुथल होती है, कानून शिथिल पड़ जाते हैं, तब क्या परिणाम होगा, उस स्थिति में मनु के वचनों का मूल्यांकन करके देखना चाहिये। तब यह मानना पड़ेगा कि वे शतप्रतिशत सही हैं।