वैदिक तथा लौकिक संस्कृत साहित्य में मनुष्यों को ‘‘मानव्यः प्रजाः’’ कहा है। इसका अभिप्राय यह है कि सभी मनुष्य मनु के वंशज हैं अथवा मनु की प्रजाएं हैं। वैदिक संस्कृति में राजा को पिता तथा प्रजा को पुत्रवत् माना जाता था, अतः प्रजाओं को भी सन्तान कहा गया है। राजर्षि मनु भी चक्रवर्ती राजा थे अतः सभी प्रजाएं उनकी सन्तान थीं। मनु का वंश भी अतिविशेष था और महत्त्व भी सर्वोच्च था। इस कारण मनुष्यों के प्रायः सभी मूल संस्कृत नाम ‘मनु’ शद से बने हैं। इसी मान्यता को स्थापित करते हुए वैदिक ग्रन्थ काठक ब्राह्मण तथा तैत्तिरीय संहिता में कहा है-
‘‘ताःइमाः मानव्यः प्रजाः’’
(काठक0 2.30.2 तथा तैत्ति0 सं0 5.1.5.6)
अर्थ-ये साी प्रजाएं (मनुष्य) मनु के वंशज हैं।
(ख) आचार्य यास्क निरुक्त में इसी मान्यता को स्थापित करते हैं- ‘‘मनोरपत्यं मनुष्यः (मानवः)’’(3.4)
अर्थ-‘मनु की सन्तान होने के कारण सबको मनुष्य या मानव कहा जाता है।’
(ग) महाभारत में मानव वंश का प्रवर्तक मनु स्वायंभुव को माना है-
मनोर्वंशो मानवानाम्, ततोऽयं प्रथितोऽभवत्।
ब्रह्मक्षत्रादयः तस्मात्, मनोः जातास्तु मानवाः॥
(आदिपर्व 75.14)
अर्थ-मानव वंश मनु के द्वारा प्रवर्तित है। उसी मनु से यह प्रतिष्ठित हुआ है। सभी मानव मनु की सन्तान हैं अतः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी उसी मनु के वंशज हैं।
(घ) मनु स्वायभुव ब्रह्मा का पुत्र था। महाभारत में लिखा है-
‘‘पैतामहः मनुर्देवः तस्य पुत्रः प्रजापतिः।’’
(आदिपर्व 66.17)
अर्थ-‘पितामह ब्रह्मा का पुत्र मनु था। उसको देव और प्रजापतिाी कहते हैं।’
(ङ) ‘‘स वै स्वायभुवः पूर्वपुरुषो मनुरुच्यते।’’
(ब्रह्माण्ड पुराण 1.2.9)
अर्थ-‘वह स्वायभुव मनु ‘आदिपुरुष’ या ‘पूर्वपुरुष’ माना जाता है।’
इस प्रकार भारतीय प्राचीन साहित्य और इतिहास के अनुसार मनु मानवों के प्रमुख आदिपुरुष हैं। आदिपुरुष होने के कारण वे मानव जाति द्वारा समादरणीय हैं। मनु के इतिहास के रूप में मानव जाति का आदि इतिहास सुरक्षित है, यह प्रसन्नता का विषय है।