Tag Archives: वेदों में मनु का उल्लेख

वेदों में मनु का उल्लेख: डॉ. सुरेन्द कुमार

पाश्चात्य विद्वान् एवं पाश्चात्य विचारधारा के अनुगामी आधुनिक विद्वान् मनु पर विचार करते समय उसका उल्लेख एवं जीवन-परिचय वेदों में खोजते हैं। उनका कथन है कि ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर व्यक्तिवाचक मनु शद आया है। कहीं उसे पिता कहा है, कहीं प्रारभिक यज्ञकर्त्ता, तो कहीं अग्निस्थापक के रूप में उसका वर्णन है।4

इस चर्चा का उत्तर मनु के मन्तव्य के अनुसार दिया जाये तो अधिक प्रामाणिक होगा। मनु वेदों को ईश्वरप्रदत्त अर्थात् अपौरुषेय मानते हैं। सृष्टि के प्रारभ में ईश्वर ने अग्नि, वायु, आदित्य के माध्यम से वेदों का ज्ञान दिया। अपौरुषेय होने के कारण वेदज्ञान पूर्णतः ज्ञेय नहीं है, वह अपरिमित है।1 प्रारभ में वेदों से ही शद ग्रहण करके व्यक्तियों और वस्तुओं का नामकरण किया गया।2 मनु द्वारा वेदों को अपौरुषेय घोषित करने के उपरान्त उसी मनु का वेद में इतिहास ढूंढना मनु के विपरीत विचार है, और मनु से पूर्व वेदों का रचनाकाल होने से कालविरुद्धाी है।

वेदों में मनु शद विभिन्न अर्थों में आया है। कहीं वह ईश्वर का पर्यायवाची है,3 कहीं मनुष्य के लिये है,4 कहीं मननशील विद्वान् के लिये है।5 विचारकों को जहां इसके व्यक्तिवाचक होने का आभास होता है, वह वस्तुतः ईश्वरवाचक प्रयोग है। अधिक विस्तार में न जाते हुए, इस विषय में मनुस्मृति का ही एक प्रमाण देकर इस बात को प्रमाणित किया जाता है। ईश्वर का वर्णन करते हुए मनु स्वयं कहते हैं कि उस परमेश्वर को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जिनमें एक नाम ‘मनु है-

एतमेके वदन्त्यग्निं मनुमन्ये प्रजापतिम्।

इन्द्रमेके परे प्राणमपरे ब्रह्म शाश्वतम्॥ 12। 123॥

    इस प्रकार मनु के मन्तव्य के अनुसार वेदों में ‘प्रजापति’ ‘पिता’ आदि विशेषणों से संबोधित मनु ईश्वर ही है। इस आधार पर वेद में मनु का परिचय खोजना मनु के दृष्टिकोण के विरुद्ध है।