सोम की रक्शा से हम इन्द्र व शक्त बनेंगे

औ३म
सोम की रक्शा से हम इन्द्र व शक्त बनेंगे
डा. अशोक आर्य
हम शत्रुओं का वारण करने वाले संहार करने वाले बनें । इनका वारण करते हुये हम अपने अन्दर सोम की रक्शा करें । यह सोम का रक्शण ही उस परमपिता को पाने का साधन होता है । जब हम सोम का रक्शन करते हैं तो हम भी इन्द्र बनते हैं , सशक्त बनते हैं । इस तथ्य को ही रिग्वेद के मण्डल संख्या ८ के सुक्त संख्या ९१ के प्रथम मन्त्र में इस प्रकार बताया गया है : –
कन्या३ वारवायती सोममपि स्त्रुताविदत ।
अस्तं भरन्त्यब्रवीदिन्द्राय सुनवै त्वाश्क्राय सुन्वै त्वा ॥ रिग्वेद *.९१.१ ॥
मन्त्र कहता है कि शत्रुओं का वारण करने वाली , शत्रुओं का नाश करने वाली यह कन्या ( कन दीप्तो ) अर्थात कणों को दीप्त करने वाली अथवा सोम कणों को बटाने वाली अथवा दैदिप्यमान जीवन वाली यह बनती है । यह सोम से सुरक्शित होने के कारण काम क्रोध आदि से,( गति करती हुइ ) दूर होती चली जाती है । काम क्रोध से यह सदैव दूर ही रहती है । यह सोम शक्ति काम क्रोध के साथ तो निवास कर ही नहीं सकती । इस कारण इन शत्रुओं से सदा ही दूर रहती है । जहां काम क्रोध आदि शत्रु निवास करते हैं, वहां सोम का सदा नाश ही होता रहता है । शक्ति आ ही नहीं सकती । इस कारण ही यह एसे शत्रुओं से सदा दूर रहती है । यह शक्ति निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहती है । इस कारण ही यह सोम को भी प्राप्त करने में सफ़ल हो जाती है । सोम नामक कणों को यह शक्ति अपने अन्दर रक्शित करती है ।
यह शरीर इस शक्ति का निवास है , घर है । अत: यह अपने इस घर रुपि शरीर को सोम कणों से निरन्तर पुशट करती रहती है । सोमकणों से शरीर को निरन्तर पुश्ट करती रहती है । अपने शरीर को इन सोम कणॊं की सहयता से सदा शक्तिशाली बनाते हुये यह सम्बोधन करते हुये कहती है कि हे सोम ! मैं परमएशवर्यशाली को पाना चाहती हूं । उसे पाने के लिये ही मैं तुझे पैदा करती हुं , उत्पन्न करती हुं । जब मेरे में सोम कण रम जावेंगे तो मुझे उस प्रभु को पाने में सरलता होगी । इस लिये मैं तुझे अपने शरीर में अभिशूत करती हू ताकि मुझे (तेरे इस शरीर में रमे होने के कारण ) वह सर्वशक्तिमान प्रभु मिल जावे ।

डा.अशोक आर्य

3 thoughts on “सोम की रक्शा से हम इन्द्र व शक्त बनेंगे”

  1. OUM..
    ARYAVAR, NAMASTE..
    AAP KI LAKH BAHOOT SATIK OH JYAAN VARDHAK VISHLESHAN SE BHARPUR HOTE HAI JI…SADAA AISE HI PADHNE AUR JAANNE KO MILE…
    DHANYAVAAD…

  2. यएकश्चर्षणीनांवसूनामिरज्यति।
    इन्द्रःपञ्चक्षितीनाम्॥ hme iska matlab jaanna hai hkya aap aache se samza skte h ?

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