शूद्र द्वारा उच्च वर्ण की प्राप्ति का मनुप्रोक्त विधान: डॉ सुरेन्द्र कुमार

वैदिक अर्थात् मनु की वर्णव्यवस्था और जातिव्यवस्था में एक बहुत बड़ा अन्तर यह है कि व्यक्ति को आजीवन वर्णपरिवर्तन की स्वतन्त्रता होती है। वर्णव्यवस्था में वर्णपरिवर्तन हो सकता है जबकि जातिव्यवस्था में जहां जन्म हो गया, जीवनपर्यन्त वही जाति रहती है। मनु की व्यवस्था वर्णव्यवस्था थी, क्योंकि उसमें व्यक्ति को आजीवन वर्ण-परिवर्तन की स्वतन्त्रता थी। इस विषय में पहले मनुस्मृति का एक महत्त्वपूर्ण श्लोक प्रमाणरूप में उद्धृत किया जाता है जो सभी सन्देहों को दूर कर देता है-

(अ)    शूद्र से ब्राह्मणादि और ब्राहमण से शूद्र आदि बनना-

शूद्रो ब्राह्मणताम्-एति, ब्राहमणश्चैति शूद्रताम्।

क्षत्रियात् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात्तथैव च॥ (10.65)

    अर्थात्-‘ब्राह्मण के गुण, कर्म, योग्यता को ग्रहण करके शूद्र, ब्राह्मण बन जाता है और हीन कर्मों से ब्राह्मण शूद्र बन जाता है। इसी प्रकार क्षत्रियों और वैश्यों से उत्पन्न सन्तानों में भी वर्णपरिवर्तन हो जाता है।

(आ) शूद्र द्वारा उच्च वर्ण की प्राप्ति का मनुप्रोक्त विधान-

(क) श्रेष्ठ गुणों को ग्रहण और श्रेष्ठाचरण का पालन करके शूद्र उच्च वर्णों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का अधिकारी बन जाता है-

    शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुः       मृदुवागनहंकृतः।

    ब्राह्मणाद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते॥       (9.335)

    अर्थ-तन और मन से शुद्ध-पवित्र रहने वाला, उत्कृष्टों के सान्निध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्तम वर्णों-वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मणों के यहां सेवाकार्य करने वाला शूद्र अपने से उत्कृष्ट=वैश्य, क्षत्रिय या ब्राह्मण वर्ण को प्राप्त कर लेता है, अर्थात् वह जिस वर्ण की योग्यता अर्जित कर लेगा उसी वर्ण को धारण करने का अधिकारी बन जायेगा। (यहां जाति शब्द का अर्थ ‘वर्ण’ है। प्रमाण के लिए इसी अध्याय में देखिए-‘मनुस्मृति में जाति शब्द वर्ण और जन्म का पर्याय’ शीर्षक पृ0 90-91 पर)

(ख) मनुस्मृति में, उपर्युक्त सिद्धान्त को नष्ट करने के लिए इससे पहले एक श्लोक प्रक्षिप्त कर दिया है जिसमें यह दिााया गया है कि वर्णपरिवर्तन सातवीं पीढ़ी में होता है। ऐसा विचार मनु की मान्यता के विरुद्ध है। पीढ़ियों का हिसाब संभव भी नहीं है।

वर्णपरिवर्तन के उदाहरण भी भारतीय प्राचीन इतिहास में मिलते हैं और इस सिद्धान्त की पुष्टि-परपरा भी। मनुस्मृति के उक्त श्लोकों के भावों को यथावत् वर्णित करने वाले श्लोक महाभारत में भी उपलध होते हैं। यहां उस प्रसंग की कुछ पंक्तियां उद्धृत की जा रही हैं जिनसे मनुस्मृति की परपरा की पुष्टि होती है-

‘‘कर्मणा दुष्कृतेनेह स्थानाद् भ्रश्यति वै द्विजः।’’

‘‘ब्राह्मण्यात् सः परिभ्रष्टः क्षत्रयोनौ प्रजायते।’’

‘‘स द्विजो वैश्यतां याति वैश्यो वा शूद्रतामियात्।’’

‘‘एभिस्तु कर्मभिर्देवि,   शुभैराचरितैस्तथा।’’

शूद्रो ब्राह्मणतां याति वैश्यः क्षत्रियतां व्रजेत्।

(महाभारत, अनुशासन पर्व अ0 143, 7, 9, 11, 26)

    अर्थात्-दुष्कर्म करने से द्विज वर्णस्थ अपने वर्णस्थान से पतित हो जाता है।……क्षत्रियों जैसे कर्म करने वाला ब्राह्मण भ्रष्ट होकर क्षत्रिय वर्ण का हो जाता है।……..वैश्य वाले कर्म करने वाला द्विज वैश्य और इसी प्रकार शूद्र वर्ण का हो जाता है। हे देवि! इन अच्छे कर्मों के करने और शुभ आचरण से शूद्र, ब्राह्मणवर्ण को प्राप्त कर लेता है और वैश्य, क्षत्रिय वर्ण को। इसी प्रकार अन्य वर्णों का भी परस्पर वर्ण-परिवर्तन हो जाता है।

(ग) महाभारत का एक अन्य श्लोक जो दो स्थानों पर आया है मनुस्मृति की कर्माधारित वर्णव्यवस्था की पुष्टि करता है तथा कर्मानुसार वर्णपरिवर्तन के सिद्धान्त को प्रस्तुत करता है-

शूद्रे तु यत् भवेत् लक्ष्म द्विजे तच्च न विद्यते।

न वै शूद्रो भवेत् शूद्रो ब्राह्मणो न च ब्राह्मणः॥

(वनपर्व 180.19; शान्तिपर्व 188.1)

    अर्थात्-शूद्र में जो लक्षण या कर्म होते हैं वे ब्राह्मण में नहीं होते। ब्राह्मण के कर्म और लक्षण शूद्र में नहीं होते। यदि शूद्र में शूद्र वाले लक्षण न हों तो वह शूद्र नहीं होता और ब्राह्मण में ब्राह्मण वाले लक्षण न हों तो वह ब्राह्मण नहीं होता। अभिप्राय यह है कि लक्षणों और कर्मों के अनुसार ही व्यक्ति उस वर्ण का होता है जिसके लक्षण या कर्म वह ग्रहण कर लेता है।

(घ) यह परपरा सूत्र-ग्रन्थों में भी मिलती है। आपस्तब धर्मसूत्र में बहुत ही स्पष्ट शदों में उच्च-निन वर्णपरिवर्तन का विधान किया है-

धर्मचर्यया जघन्यो वर्णः पूर्वं पूर्वं वर्णमापद्यते जातिपरिवृत्तौ।

अधर्मचर्यया पूर्वो वर्णो जघन्यं वर्णमापद्यते जातिपरिवृत्तौ॥

(1.5.10-11)

    अर्थ-निर्धारित धर्म के आचरण से निचला वर्ण उच्च वर्ण को प्राप्त कर लेता है, उस-उस वर्ण की वैधानिक दीक्षा लेने के बाद। इसी प्रकार अधर्माचरण करने पर उच्च वर्ण निचले वर्ण में चला जाता है, आचरण के अनुसार वर्णपरिवर्तन की वैधानिक स्वीकृति या घोषणा होने के बाद।

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