क्या जादूगरी आँखों का धोखा होता है?

हाँ है, क्योंकिः-
स एक नियम है – ‘कारण और कार्य का सि(ांत’। घर में आटा नहीं होगा तो क्या रोटी बनेगी? नहीं। अगर लकड़ी नहीं होगी तो क्या फर्नीचर बनेगा? नहीं। यह ‘कारण-कार्य सि(ांत’ है। इसी तरह से मैं जेब में हाथ डालूँ और बिल्ली निकल आए तो इसका मतलब जेब में बिल्ली थी। बस, इसी का नाम जादूगरी है। वो थी कहीं न कहीं, इधर-उधर छुपा रखी थी।
स सृष्टि के कारण-कार्य सि(ांत के बिना कुछ नहीं हो सकता। सृष्टि का नियम है। एक नियम याद कर लीजिए – सृष्टि क्रम के विरु( कोई कार्य नहीं हो सकता, और यहाँ तक मैं कह दूँ कि – ईश्वर भी नहीं कर सकता, मनुष्य तो क्या करेगा।
अच्छा बताइए, अग्नि गरम है। क्या इस गरम अग्नि को ईश्वर ठंडा कर सकता है? नहीं। ईश्वर भी ठंडा नहीं कर सकता, सृष्टि नियम के विरु( कार्य ईश्वर भी नहीं कर सकता, तो ये मनुष्य लोग क्या करेंगे। इतने में ही आप समझ लीजिए कि यह सब चालाकी और धोखा है।
स कारण-कार्य सि(ांत के विरु( जादूगरी कुछ चीज नहीं, केवल आँखों का धोखा है। सब चालाकी और धोखेबाजी है। हर आदमी पकड़ नहीं पाता, वो ऐसी चतुराई से काम कर लेते हैं।
स जादूगरी में या तो हाथ की सफाई होती है या कोई साइंस की बात होती है।
ऐसे दो चार हाथ जादूगरी के मैं भी जानता हूँ। मंत्र बोलकर मैं आग लगाना जानता हूँ। पर वो कोई जादूगरी नहीं है। आग लगाने वाले कहते हैं – यह गाय का घी है और मैं अभी कटोरी में घी टपकाऊँगा और मंत्र बोलूँगा और इसमें आग लग जाएगी।
असल में उस चम्मच में गाय का घी नहीं होता। वो ग्लिसरीन होती है। एक दूसरी पोटैशियम परमैग्नेट (लाल दवा) होती है। वो दाँत के डॉक्टर कुल्ला करने के लिए देते हैं। पोटैशियम परमैग्नेट का पाउडर कटोरी में पहले से रखा होता है। वो जनता को दिखता नहीं और वो ऊपर से दो बूँद ग्लिसरीन टपका देते हैं। जब तक मंत्र बोलते हैं, तब तक उन दोनों में रिएक्शन हो जाता है। पोटैशियम परमैग्नेट में दो बूँद ग्लिसरीन टपकायेंगे तो उसमें आग लगेगी। वो लोग यह चतुराई करते हैं।
स मंत्र बोलने से कोई आग नहीं लगती। अगर मंत्र बोलने से आग लगती हो तो पहले मन्त्र बोलने वाले के मुँह में लगनी चाहिए। पर मुँह में लगती नहीं।
स ऐसे ही भूत-प्रेत की बात करते हैं। कहते हैं कि – शीशी के अंदर मैंने भूत-प्रेत बंद कर रखा है। छोटी सी एक शीशी (दो ढ़ाई इंच की शीशी) का ढक्कन खोल देंगे और हॉरिजोंटल (आड़ी) स्थिति में उस शीशी को रखेंगे। हम चॉक से बोर्ड पर लिखते हैं। उस चॉक के टुकड़े को उस शीशी के मुँह पर रख देंगे और फिर किसी व्यक्ति को बुलाएंगे। कहेंगे कि – ”आइए, जरा फूँक मारकर, हवा मारकर इस टुकड़े को इस शीशी के अंदर डालिए।” जब वो फूँक मारकर अंदर डालने का प्रयास करेगा तो वो चॉक का टुकड़ा अन्दर नहीं जाएगा बल्कि बाहर गिरेगा। जब वो बाहर गिरेगा तो कहेगा- ”इसमें मैंने एक भूत आत्मा, प्रेत-आत्मा बंद कर रखी है, वो इसको बाहर फेंकती है, अंदर घुसने नहीं देती।” यह सब चालाकी है, झूठ है, धोखा है। अब उस शीशी को आप वर्टीकल (सीधी) खड़ी कर दीजिए। अब वही टुकड़ा डालिए, तो वो तुरंत अंदर चला जाएगा। अब क्यों चला गया। ऐसे क्यों नहीं जा रहा था? यह साइंस की बात है।
चॉक का टुकड़ा भारी है, हवा उससे हल्की है। जब शीशीे हॉरिजोन्टल रखी जाती है, फिर वहाँ चॉक का टुकड़ा रखते हैं और जब हम चॉक के टुकड़े को अंदर फेंकने के लिए फूंक मारते हैं तो हवा हल्की होने की वजह से वो टुकड़े से पहले अंदर चली जाती है। बाहर की हवा शीशी के अंदर जाती है और अंदर की हवा धक्का खाकर बाहर आती है। जब अंदर की हवा बाहर आती है तो बाहर आती हवा के धक्के से टुकड़ा बाहर ही तो गिरेगा, अंदर थोड़े ही जाएगा। जब शीशी सीधी खड़ी कर देते हैं और तब वो टुकड़ा रखते हैं तो तुरंत अन्दर चला जाता है। अब वहाँ ग्रेविटेशन-फोर्स (गुरुत्वाकर्षण) का नियम लागू होता है। कहाँ गया भूत-प्रेत? खामखां धोखा है। जादूगरी के चक्कर में नहीं आना।