पुस्तक – समीक्षा
पुस्तक का नाम– सङ्कलचिता एवं अनुवादक श्री आनन्द कुमार
सपादक – प्रदीप कुमार शास्त्री
प्रकाशक – आचार्य सत्यानन्द नैष्ठिक, सत्यधर्म प्रकाशन
मूल्य – 50/- पृष्ठ संया – 112
परमपिता परमात्मा की अति अनुकमपा से जिसके कारण अनेक जन्म-जन्मान्तरों के बाद यह मनुष्य जीवन अनुपम रूप से सद्कर्मों के कारण मिला है। वह भी आर्यावृत की भारतभूमि में जन्म मिला। यहाँ अनेक शास्त्रों में प्रथम वेद ततपश्चात्, वेदांग, दर्शन आदि ग्रन्थों के नाम, अध्ययन का लाभ पठन-पाठन से प्राप्त होता है। धन्य है वे जो आर्ष ग्रन्थों का चिन्तन-मनन करते हैं। ऐसे में संकलकर्त्ता श्री आनन्द कुमार जी का स्थान भी महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने अथक प्रयास कर 65 ग्रन्थों में मानवोपयोगी, जीवन के मोड़ के लिए अनुपम सामग्री पाठकों को परोसी है।
आज के भौतिकवादी युग के चकाचौंध में में सभी वर्गों के लिए मार्गदृष्टा के रूप में सुभाषित है। हृदय ग्राही एवं जीवनोपयोगी है। जीवन अमूल्य है। इसकी सार्थकता इन सुभाषितों को जीवन में उतारना, श्रेष्ठ मार्ग की ओर बढ़ना आवश्यक है। प्रारमभ में सरस्वती वन्दना एवं शिवपूजा वैदिक धर्म के विरुद्ध की बात है, शेष सभी सुभाषित अनुकरणीय है।
नाविरतो दुश्चरितान्नाशान्तो नासमाहितः।
नाशान्तमानसो वापि प्रज्ञानेनैनमाप्रुयात्।।
-कठोपनिषद् 1.2.23
क्षमया दयया प्रेणा सुनृतेनार्जवेन च।
वशीकुर्याज्जगत् सर्वं विनयेन च सेवया।।
-चाणक्य
हिन्दी अनुवाद से सभी को समझने में सरलता होगी। पाठक अधिक से अधिक संखया में पठन-पाठन कर, अपने को श्रेष्ठ बनाए। आज के युग की अत्यन्त आवश्यकता है, उसी अनुकूल परम आवश्यक विविध व्यंजन हृदयङ्गम करने योग्य है।
– देवमुनि, ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर