(क) व्यक्तिगत उदाहरणों के अतिरिक्त, इतिहास में पूरी जातियों का अथवा जाति के पर्याप्त भाग का वर्णपरिवर्तन भी मिलता है। महाभारत में और मनुस्मृति में कुछ पाठभेद के साथ पाये जाने वाले निन-उद्धृत श्लोकों से ज्ञात होता है कि निन जातियां पहले क्षत्रिय थीं किन्तु अपने क्षत्रिय-कर्त्तव्यों के त्याग के कारण और ब्राह्मणों द्वारा बताये शास्त्रोक्त प्रायश्चित्त न करने के कारण वे शूद्रकोटि में अथवा वर्णबाह्य परिगणित हो गयीं-
शनकैस्तु क्रियालोपादिमा क्षत्रियजातयः।
वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च॥
पौण्ड्रकाश्चौड्रद्रविडाः काबोजाः यवनाः शकाः।
पारदाः पह्लवाश्चीनाः किराताः दरदाः खशाः॥
(मनु0 10.43-44)
अर्थात्-अपने निर्धारित कर्त्तव्यों का त्याग कर देने के कारण और फिर ब्राह्मणों द्वारा बताये प्रायश्चित्तों को न करने के कारण धीरे-धीरे ये क्षत्रिय जातियां शूद्र कहलायीं- पौण्ड्रक, औड्र, द्रविड़, कबोज, यवन, शक, पारद, पह्लव, चीन, किरात, दरद, खश॥ महाभारत अनु0 35.17-18 में इनके अतिरिक्त मेकल, लाट, कान्वशिरा, शौण्डिक, दार्व, चौर, शबर, बर्बर जातियों का भी उल्लेख है।
(ख) बाद तक भी वर्णपरिवर्तन के उदाहरण इतिहास में मिलते हैं। जे.विलसन और एच.एल. रोज के अनुसार राजपूताना, सिन्ध और गुजरात के पोखरना या पुष्करण ब्राह्मण और उत्तरप्रदेश में उन्नाव जिला के आमताड़ा के पाठक और महावर राजपूत वर्णपरिवर्तन से निन जाति से ऊंची जाति के बने (देखिए, हिन्दी विश्वकोश भाग 4, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी)