*सच्ची रामायण की पोल खोल-3

*सच्ची रामायण की पोल खोल-३ अर्थात्*
*पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक:- *कार्तिक अय्यर
*ओ३म*
धर्मप्रेमी सज्जनों! सादर नमस्ते । पिछले लेख में हमने पेरियार साहब द्वारा लिखी भूमिका का खंडन प्रारंभ किया था। इसी भूमिका में आगे *राम जी पर अनर्गल आरोप लगायें हैं साथ ही आर्य-द्रविड़ राजनीति का कार्ड भी खेला गया है।पाठकवृंद आगे की समीक्षायें पढ़कर आनंद उठाये तथा सत्य को जाने*
निवेदन:-पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें ताकि पेरियारभक्तों का मुखमर्दन तेजी से हो।
*प्रश्न २* पेरियार साहब भूमिका में आगे लिखते हैं *”राम तमिल सभ्यता का कण मात्र भी नहीं था।उसकी स्त्री सीता तमिलनाडु की विशेषताओं से रहित  उत्तरी भारत की निवासिनी थी।तमिल के मनुष्यों को बंदर और राक्षस कहकर उनका उपहास किया जाता है।वही उनकी स्त्रियों के प्रति भी।*
*समीक्षा* :-
१:-लेखक महोदय से पूछना चाहिये कि तमिल नाडु और तमिल नाडु की सभ्यता तथा आर्य संस्कृति में क्या अंतर है?स्पष्ट हो गया कि आपका पुस्तक बनाने का उद्देश्य तमिल-उत्तर भारत में फूट डालने के अलावा कुछ और विदित नहीं होता। पेरियार साहब को बताना चाहिये कि तमिल संस्कृति व सभ्यता की विशेषतायें क्या हैं और सीता राम में तमिल की किन विशेषताओं का अभाव था।
२:-तमिल के मनुष्यों को बंदर और राक्षस नहीं कहा गया। बल्कि वाल्मीकि रामायण में *वानर* शब्द है तथा दुष्टाचरण,पापी,समाज विघातक,आतंककारी आदि का करने वालों का नाम राक्षस,दस्यु,असुर है। वानर और राक्षस दोनों गुणवाचक नाम हैं नाकि जातिवाचक। हम क्रमशः दोनों शब्दों की मीमांसा करते हैं।
*(अ)* *वानर* :- *वने भवं वानरम्,राति गृहणाति ददाति वा।वानं वनं संबंधिनं,फलादिकं गृहणाति ददाति वा।* – जो वन में उत्पन्न होने वाले फलादि खाता है वह वानर है। वानर कोई विशेष जाति नहीं है अपितु वनवासी और वानुप्रस्थ वर्ग इस श्रेणी में आते हैं। इसलिये सुग्रीव,बालि,जामवंत,हनुमान आदि वानर मनुष्य ही थे पूंछवाले बंदर नहीं। और तारा,रुमा आदि भी मानव स्त्रियां थीं।वे ऋष्यमूक पर्व पर रहते थे ,वन में उगने वाले फलादिक खाते थे इसलिये “वानर” कहलाये नाकि पूंछवाले बंदर थे।उनकी पूंछ बंदर जैसी न थी बल्कि वो विलक्षण मानव ही थे। उनकी पूंछ एक यंत्र थी जो उछलने कूदने के काम आती थी। वाल्मीकि रामायण से कुछ प्रमाण हम लिखते हैं:-
*हनुमानजी को  वेदज्ञ तथा राजमंत्री कहा गया है। (  आध्यात्म रामायण किष्किंधाकांड १/१६,१८,३९)
*हनुमान जी व्याकरण के महापंडित थे ( वाल्मीकीय रामायण किष्किंधा-३/२६,२८,२९)
*सुग्रीव का सिंहासन पर बैठना व स्वयं को मनुष्य कहना ( किष्किंधा-२/२२ तथा ३३/६३)
*सोने के घड़े,चंवर आदि (किष्किंधा-२६/२३,३३-३६)
* अंगद का बाली को अग्नि देक अपना यज्ञोपवीत दाहिने कंधे पर रखना( किष्किंधा-२ ५/५) इससे सिद्ध है कि वानर मानव ही थे क्यों कि यज्ञोपवीत यज्ञ करने वाला धारण करता है। यज्ञेपवीत आर्य संस्कृति का चिह्न है अतः वानर क्षत्रिय आर्य थे ।
* बालि की पत्नी तारा को राज संचालन में निपुण कहा गया है। ( किष्किंधा-२ २/१३,१४) क्या कोई बंदरिया राज-संचालन कर सकती है? कदापि नहीं। अतः वानर मनुष्य ही थे जो वनों में रहा करते थे।
पेरियार साहब, यहां ऋष्यमूक पर्वतवासी वानरों को द्रविड़ या तमिलवासी कहकर आपकी दाल नहीं गलेगी। देखिये, जब बालि का वध हुआ तब बाली की भार्या तारा ने उसे *आर्यपुत्र* कहकर संबोधित किया था:- लीजिये प्रमाण-
*समीक्ष्य व्यथिता भूमौ संभ्रांता निपपात ह।*
*सुप्तेवै पुनरुत्थायलआर्यपुत्रेति क्रोशती।।* *(किष्किंधा-१९/२७)*
*अर्थात-् युद्ध में मरे अपने पति को देख विकल और उद्विग्न हो तारा भूमि पर गिर पड़ी।थोड़ी देर बाद सोती हुई के समान उठकर, “हा आर्यपुत्र!” कह और कालकवलित पति को देख रोने लगी।*
अब आपका क्या कहना है पेरियार साहब?यहां तथाकथित “वानर तमिलवासी” बालि को भी “आर्य पुत्र कहा गया है।इससे सिद्ध है कि आर्य एक गुणवाचक नाम है,किसी जातिविशेष का नहीं।जिस समाज में कोई भी श्रेष्ठ गुण वाला वेदानुसार सत्याचरण करने वाला व्यक्ति हो, वो आर्य है।
अब आर्य शब्द की मीमांसा करते हैं :-आर्य का अर्थ है श्रेष्ठ,बलवान,सद्गुणी आदि।
* ऋग्वेद १/१०३/३,१/१३०/८ में श्रेष्ठ व्यक्ति का वाचक आर्य है।
*ऋग्वेद ६/२२/१०- आर्य का प्रयोग बलवान के अर्थ में हुआ।
* ” कृण्वंतो विश्वमार्यम्” विश्व को आर्य बनाओ, यह वेद का आदेश है।
*निरुक्त ६/२६- अर्य ईश्वरपुत्रः। अर्य ईश्वरपुत्र होता है ।इसी से आर्य बना है।
अब डॉ अंबेडकर के भक्त नवबौद्ध भाइयों के लिये विशेष प्रमाण लिखते हैं, अवलोकनकरें:-
* डॉ अंबेडकर अपनी पुस्तक “शूद्र कौन थे” में  शूद्र तक को आर्य कहते हैं।
*धम्मपद अध्याय ६ वाक्य १९/६/४ ममें आया है कि जो आर्यों के मार्ग पर चले वो पंडित है।
*बौद्धग्रंथ “विवेक विलास” में आर्य शब्द आया है *बौधानाम सुगतो देवो च क्षभंगुमार्य सत्वाख्या यावरुव चतुष्यामिद कल्पना त*  अर्थ:- बुद्धवग्ग ने अपने उपदेशों मेॉ तार आर्य सत्य प्रकाशित किये। (अध्याय १४) *चत्वारि आरिय सच्चानि*।।
: *ब * राक्षस मीमांसा*:- राक्षस का प्रयोग विध्वंसकारी,आतंककारी,हत्यारे तथा दुष्ट प्रवृत्ति वालों के लिये किया जाता है। यह भी गुणवाचक नाम है।देखिये:-
*ऋग्वेद ७/१०४/२४- यहां यातुधान (प्रजाजनों को छुपकर मारने वाले)को राक्षस कहा है।*
*ऋग्वेद १०/८३/१९-यहां अनार्य को दस्यु कहा है।*
*ऋग्वेद १०/२२/८-अज्ञानी,अकर्म का , अमानवीय व्यवहार वाला व्यक्ति दास है।*
*निरुक्त ७/१३-कर्मों नाश करने वाला दस्यु है।*
*अष्टाध्यायी ५/१०-हिंसा करने वाले,गलत भाषण करने वाले दास,दस्यु,डाकू हैं।*
अतः पेरियार जी का दास,दस्यु ,असुर आदि शब्दों का द्रविड़ो,आदिनासियों,दलितों के लिये प्रयोग करना अयुक्त है । दस्यु ,दास,राक्षस आदि का प्रयोग अमानवीय, हिंसक,लुटेरों के लिये किया गया है।तब क्या आप आज के सभी द्रविड़ों(तमिल वासियों)को दस्यु आदि कहेंगे?परंतु रावण और लंका के वासी आतंककारी,विध्वंसकारी, हिंसक,मांसभक्षक,मद्यपि,ऋषि मुनियों के हत्यारे आदि होने के कारण राक्षस कहलाने के अधिकारी हैं। परंतु वर्तमान के के तमिललोग राक्षस नहीं कहे जा सकते क्योंकि उनमें उपर्युक्त गुण नहीं हैं।
*निष्कर्ष:- पेरियार साहब का पुस्तक लिखने का उद्देश्य उत्तर और दक्षिण भारत में फूट डालकर राजनीति करने का था,यह स्पष्ट हो गया। द्रविड़,आर्य,दस्यु,राक्षस वानर आदि नाम उछालकर जनता की आंखों में धूल झोंककर अपना मतलब साधना चाहा परंतु हमने इन शब्दों की गुणवाचक व्याख्या कर दी है।
पोस्ट को पूरा पढ़ने के लिये धन्यवाद । अगले लेख में खंडन कार्य आगे बढ़ाया जायेगा।

नोट : यह लेखक का अपना विचार  है |  लेख में कुछ गलत होने पर इसका जिम्मेदार  पंडित लेखराम वैदिक  मिशन  या आर्य मंतव्य टीम  नहीं  होगा |

5 thoughts on “*सच्ची रामायण की पोल खोल-3”

  1. Arthat bali sugriv hanuman kewal jangli fal ful khakr jivit rhte the to fir rajy kaise chaya??
    Periyar ne sachchi ramayan ka case bhi jita .
    Dr. Ambedkar saheb ka adhyayan samaj shastriya v aitihasik adhyayan h.brahmnwad ka chashma utaro pahle.
    Ary ka matalab kewal shrest hota h n ki jati kintu bad me ise jati ka paryay bna diya gya .jaise pandit(vidwan) ko Brahmno ka paryay bna diya gya h.
    Lutere to aap logo k sare pauranik patra
    Hai lekin fir dewta kahe chale jate ho aur pol khul jane pr milawat batate ho.
    Lagta h kekara aur girgit sanskriti ke manne log h aarya smaj.
    Mera yhi kahna h ki ek sahi inshan k liye kisi dharm ki awashyakta hi nhi.kewal
    Man vachan karm se insan hona hi paryapt h.
    Gulamo ki tarah kisi bhi vichardhara me bandhkar n rhe.
    Gulam kuchh nya nhi Kr skta swatantra vykti hi kr skta h.

    1. in sabhi saare sawal kaa jawab kartik iyyer dhud denge intjaar kare aap… itnaa samay nahi ki main aapko jawab du…. waise bhi aapke roj 10 15 comment aa jaa rahe hain

    2. Arthat bali sugriv hanuman kewal jangli fal ful khakr jivit rhte the to fir rajy kaise chaya??
      उत्तर:- वानर का अर्थ है वन में रहने वाला।पहली बात,।जो वन में रहेगा वन की चीजों से ही निर्वाह करेगा।इसका अर्थ ये नहीं कि वो खेती बाड़ी नहीं करते थे।वे वन में रहने के कारण वानर कहलाये।क्यों जी? वन की चीजे खाकर कोई राजा नहीं बन सकता-ये फतवा किसने जारी किया ?महाराणा प्रताप घास फूस की रोटी खाकर अकबर से लड़ते रहे और अंत में अपना राज्य प्राप्त किया। इससे यह सिद्ध नहीं होता कि वन की चीजें खा कर कोई अपना राज्य ना चला सके। उन लोगों का राज्य विस्तृत था। वे आम मानवों जैसा भोजन भी करते थे पर उनकी वानर संज्ञा उनके वन में रहने से पड़ी।
      Periyar ne sachchi ramayan ka case bhi jita .
      उत्तर- महाशय !के जीतने से कोई पुस्तक सकती थोड़ी हो जाती है। धर्म में सत्य सत्य की कसौटी में शास्त्रों में इतिहासोंमें निर्णय लेने की कसौटी तर्क और वेद है। जो बात बुद्धि विरुद्ध वेद विरुद्ध है वह हमारे हैं। पेरियार साहब ने तथ्यों को तोड़ मरोड़कर श्री राम आदि पर दोषारोपण की और इसी प्रकार से केस जीता ।इस प्रकार अनीति छल कपट झूठे गवाह और सबूतों से कई के जीते जाते हैं इससे रामायण गलत सिद्ध नहीं हो जाती
      । एक बात और सत्यार्थ प्रकाश ने भी बहुत से केस जीते हैं तो क्या आप सत्यार्थ प्रकाश को अच्छी पुस्तक मानते हैं?
      Dr. Ambedkar saheb ka adhyayan samaj shastriya v aitihasik adhyayan h.brahmnwad ka chashma utaro pahle.
      Ary ka matalab kewal shrest hota h n ki jati kintu bad me ise jati ka paryay bna diya gya .jaise pandit(vidwan) ko Brahmno ka paryay bna diya gya h.
      उत्तर:- अंबेडकर साहब को ना संस्कृत का ज्ञान था ना वैदिक ग्रंथों का उन्होंने विदेशियों के बनाए हुए अनुवादों द्वारा वैदिक धर्म पर आक्षेप किए। अंबेडकर ने यह बात खुद स्वीकार की है कि वह संस्कृत के प्रामाणिक विद्वान नहीं थे। यह सत्य है कि आर्य का मतलब श्रेष्ठ होता है लेकिन आपके पेरियार साहब ही मानते हैं कि आर्य एक जाति विशेष है और आप सब भी यही मानते हैं। इसके विपरीत अंबेडकर साहब भी आर्य को जातिवाचक नहीं अपितु गुणवाचक मानते हैं। हम यह मानते हैं कि वर्णव्यवस्था गुण कर्म स्वभाव से होती है।
      Lutere to aap logo k sare pauranik patra
      Hai lekin fir dewta kahe chale jate ho aur pol khul jane pr milawat batate ho.
      उत्तर:- हमारे यहां कोई भी पौराणिक पात्र लुटेरा नहीं है अभी तो 14०० साल पहले मुसलमान और अंग्रेज जैसी बर्बर जातियां भारत पर हमला करती आई है जो लुटेरे थे। हां एक बात है कुछ समय पहले बीबीसी न्यूज़ ने मूल निवासियों के पूर्वज अफ्रीका से आए थे ऐसी खबर छापी थी। इससे यह सिद्ध होता है कि खुद को मूल निवासी कहने वाले ही अफ्रीकन निवासी विदेशी हैं। क्यों भाई साहब हम झूठ क्यों बोले यदि ग्रंथों में प्रक्षेप हुए हैं तो यह बात सत्य है और आपके जैसे ही वाममार्गी उन्हें प्रक्षेप किए। हां लेकिन आपके बौद्ध ग्रंथों में उस भाग को प्रक्षिप्त कहकर जान छुड़ाने की कला मूल निवासी ही जानते हैं।
      Lagta h kekara aur girgit sanskriti ke manne log h aarya smaj.
      उत्तर:- केकड़ा और गिरगिट के समान तो मूलनिवासी लोग होते हैं जो मार्क्सवादियों के सामने खुद को वामपंथी कहते हैं चीनियों के सामने लेनिनवादी बन जाते हैं, श्रीलंका आदि के मामले में बहुत बन जाते हैं मुसलमानों से रोटी बेटी का रिश्ता कायम करते हैं और जाति पत्र में हिंदू बन जाते हैं। आर्य समाज तो सत्य को सत्य और असत्य को असत्य ही कहता है।
      Mera yhi kahna h ki ek sahi inshan k liye kisi dharm ki awashyakta hi nhi.kewal
      Man vachan karm se insan hona hi paryapt h.
      उत्तर:- मन वचन कर्म से इंसान होना पर्याप्त है इसी को धर्म कहा जाता है। भाई साहब धर्म अनेक नहीं होते धर्म एक ही होता है अनेक तो इस आयत इस्लाम जैसे मजहब होते हैं।
      Gulamo ki tarah kisi bhi vichardhara me bandhkar n rhe.
      Gulam kuchh nya nhi Kr skta swatantra vykti hi kr skta h.
      उत्तर:- क्यों जी किसी विचारधारा को मारना गुलामी कैसे कही जा सकती है यदि इसे गुलामी कहोगे तो सारे नवबौद्ध और अंबेडकरवादी गुलाम है। यह बात सही है कि गुलाम कुछ नया नहीं कर सकते परंतु नया करने की स्वतंत्रता वैदिक धर्म ही देता है। बाकी किसी भी मत में कुछ नया करना या नया सोचना इसकी कोई गुंजाइश नहीं है वहां पर तो जो मान्यता है उसे बस मान लो। उस पर तर्क करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जबकि केवल वेद और वैदिक धर्म ही तर्क करने की स्वतंत्रता देता है।
      ओ३म शम्।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *