सच्ची रामायण का खंडन- १०

*सच्ची रामायण की पोल खोल-१०

अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*

-लेखक कार्तिक अय्यर ।

*प्रश्न १० आगे लिखा है-लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न आदि राजा दशरथ से पैदै न होकर कथित पुरोहितों द्वारा पैदा हुये तथापि आर्यधर्म के अनुसार कोई पाप नहीं था।उन पुरोहितों के नाम होता,अर्ध्वयु,उद्गाता लिखा है।महाभारत का संदर्भ लेकर नियोग संबंधी आरोप लगाये हैं।व्यास जी का उल्लेख करके कहा है कि धृतराष्ट्र और पांडु इसी कोटि की संतान थीं।*
*क्या श्रीरामादि नियोग से उत्पन्न हुये थे अथवा महाराज दशरथ की औरस संतान थे?*
*नोट*-यह लेख लंबा है क्योंकि आरोप गंभीर है। हममे इस लेख में सिद्ध करने का प्रयासकिया है कि श्रीरामादि महाराज दशरथ की औरस संतान थे।कृपया पाठकगण लेख को आद्योपांत पढे़ें एवं सत्य को स्वीकार करें।इस लेख को तीन भागों में विभक्त करते हैं:-
१:-नियोग का सत्य स्वरूप
२:- राजा दशरथ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ तथा श्रीरामादि की उत्पत्ति
३:- श्रीरामादि के दशरथपुत्र होने की रामायण की अंतःसाक्षी।
४:- ललई सिंह जी के प्रमाणों की परीक्षा।
*समीक्षा*-  *१ नियोग का सत्य स्नरूप*यहां पेरियार साहब की एक और धूर्तता तथा चालबाजी की हद पार कर दी।बिना किसी आधार के एक तो श्रीराम आदि को नियोग की संतान बता दिया ,ऊपर इसे अपनी धूर्तता छिपाने के लिये व्यासजी का महाभारतोक्त वर्णन और पांडुआदि का जन्म वर्णन लिख दिया।*क्यों जी!राम पर आक्षेप लगाने के लिये वाल्मीकि आदि रामायण ग्रंथ कम थे जो बारंबार आप महाभारत और पुराण में जा छिपते हैं?खैर,आप चाहें जितने पर्दे में सच को छिपायें,हम उसको उधेड़कर निकालेंगे।
पेरियार साहब!पहले आपको बता दूं कि नियोग एक आपद्धर्म है।जब कोई स्त्री बिना संतान के विधवा हो जाती है,तब उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव युक्त पुरुष से वीर्यदान करवाकर  गर्भधारण द्वारा संतान प्राप्त कर सकती है।संतान देने के बाद *नियुक्त* पति का स्त्री से संबंध नहीं रहता तथा संतान को माता का नाम मिलता है।यदि विधवा या विधुर हो तो पुनर्विवाह कर लें अन्यथा नियोगकर ले।यदि नहीं,तो संतान गोद ले ले।
*नियोग की आज्ञा दोनों पक्ष तथा परिवारों की सहमति से हो,तभी उचित है।पंचायत के समक्ष दोनों पक्षों को निर्धारित करना होगा कि वे नियोग कर रहे हैं।संतान हो जाने के बाद दोनों के बीच कोई संबंध नहीं होता।*
प्राचीनकाल में जब राजाओं को वंशपरंपरा चलाने वाला कोई वारिस नहीं होता था,तब रानियां उत्तम वर्ण के पुरुष से नियोग करती थीं।उस समय में वंश और देश को बचाने हेतु नियोग आवश्यक था।व्यास जी ने विचित्रवीर्य की स्त्रियों :-अंबिका और अंबालिका को पुत्रदान किया।यदि ऐसा न होता,तो राष्ट्र में अराजकता,मार-काट,विदेशी आक्रमण होने का भय था।अतः नियोग आपदा का धर्म है। इस विषय पर अधिक जानकारी लेने के लिये पढ़ें – सत्यार्थप्रकाश चतुर्थसमुल्लास।
*२ राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ एवं पुत्रों की प्राप्ति*:-
अब आते हैं *पेरियार एंड कंपनी* के मूल आरोप पर। *हम डंके की चोट पर यह कहते हैं कि श्रीरामादि राजा दशरथ के ही औरस(वीर्य से उत्पन्न) संतान थे।*
वाल्मीकि रामायण में पूरा वर्णन इस प्रकार है:-
*तस्य चैवं प्रभावस्य धर्मज्ञस्य महात्मनः।सुतार्थं तप्यमानस्य नासीद्वशकरः सुतः।।* (बालकांड ८:१)
 अर्थ:- ‘ऐसे प्रभावशाली,धर्मज्ञ,महात्मा के पुत्र के लिये पीड़ित महाराज दशरथ के लिये वंश को चलाने वाला कोई पुत्र नहीं था।’
तब राजा दशरथ ने अपनी प्राणप्रिया पत्नियों से कहा कि ‘मैं पुत्र-प्राप्ति के लिये यज्ञ करंगा।तुम यज्ञ की दीक्षा लो।इस प्रकार ऋष्यश्रृंग ऋषि से दशरथ मिलते हैं तथा सात-आठ दिन बाद रोमपाद जी ( ऋष्यश्रृंग के श्वसुर)से यज्ञ के विषय में वार्तालाप करते हैं। ऋष्यश्रृंग मुनि अपनी पत्नी शांता के साथ अयोध्या पधारते हैं।उनके आगमन के कुछ समय बाद वसंत ऋतु का आगमन हुआ।तब महाराज को यज्ञ करने की इच्छा हुई। वे बोले:- *कुलस्य वर्धनं त्वं तु कर्तुमर्हसि सुव्रत।* (बालकांड १४:५८) अर्थात् ‘हे सुव्रत!आप मेरे कुल की वृद्धि के लिये उपाय कीजिये।तब मेधावी ऋष्यश्रृंग ऋषि ने,जो वेदों के ज्ञाता थे,ने थोड़ी देर ध्यान लगाकर अपने भावी कर्तव्यों का निश्चय किया और महाराज दशरथ से बोले:-
*इष्टि ते$बं करिष्यामि पुत्रीयां पुत्रकारणात्।अथर्वशिरसि प्रोक्तैर्मंत्रैः सिद्धां विधानतः।।* (बाल*१५:१२)
‘महाराज!आपको पुत्र प्राप्ति कराने हेतु मैं अथर्ववेद के मंत्रों से *पुत्रेष्टि* नामक यज्ञ करूंगा।वेदोक्त विधि से अनुष्ठान करने से यह यज्ञ अवश्य सफल होगा।’
[अथर्ववेद के निम्न मंत्र में पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन है *शमीमश्वत्थ आरूढस्तत्र पुंसवनंकृतम्।तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत् स्त्रीष्वाभरामसि।।* (६:११:१)
अर्थ:- *’शमी(छौंकड़) वृक्ष पर जो पीपल पर उगता है वह पुत्र उत्पन्न करने का साधन है।यह पुत्र-प्राप्ति का उत्तम साधन है।यह स्त्रियों को देते हैं। ]
उसके बाद ऋषि ने विधिवत् पुत्रेष्टि यज्ञ प्रारंभ किया तथा विधिवत् मंत्र पढ़कर आहुति देना शुरू किया।थोड़ी देर बाद ऋषि ने पुत्रोत्पादक रूप गुणयुक्त खीर देकर राजा से कहा :-
*इदं तु नृपशार्दूल पायसं देवनिर्मितं।प्रजाकरं गृहाण त्वं धन्यमारोग्यवर्धनम्।।* (बाल* १६:१९)
 *’नृपश्रेष्ठ!यह देवताओं(=विद्वानों)द्वारा निर्मित खीर है।यग पुत्रोत्पादक, प्रशस्त तथा आरोग्यवर्धक है।इसे ग्रहण कर रानियों को खिलाइये।आपको निस्संदेह पुत्रों की प्राप्ति होगी।’*
तब राजा ने खीर पाकर प्रसन्नता प्रकट की,मानो निर्धन को धन मिल गया।तब खीर लेकर वे रनिवासमें गये तथा रानियों को पृथक-पृथक खीर बाँटी।महाराज दशरथ की सुंदर स्त्रियों ने खीर खाकर स्वयं को भाग्यवती माना।
*ततस्तु ताः प्राश्य तमुत्तमस्त्रियो महीपतेरुत्तमपायसं पृथक्।हुताशनादित्यसमानतेजसो$चिरेण गर्भान्प्रतिपेदिरे तदा।।*
( बाल* १६:३१)
‘ तदनंतर तीनों उत्तमांगनाओं ने महाराज दशरथ द्वारा पृथक-पृथक प्रदत्त खीर खाकर अग्नि और सूर्य के समान तेजवाले गर्भों को धारण किया।’ यज्ञ समाप्ति पश्चात् राजा लोग अपने-अपने देशों को लौटे। ऋष्यश्रृंग भी अपनी पत्नी शांता सहित महाराज से विदा लेकर अपने स्थान को चले।
*तते यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः।ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावभिके तिथौ।।*
‘यज्ञ-समाप्ति के पश्चात् छः ऋतुयें व्यतीत होने पर बारहवें मास में चैत्र की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच में कौसल्या जी ने श्रीराम को जन्म दिया।फिर कैकेयी न पुष्य नक्षत्र में भरत को,सुमित्रा मे अश्लेषा  नक्षत्र और कर्कलग्न में सूर्योदय होने पर लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।’
इस वर्णनको पढ़कर पाठक समझ गये होंगे कि पेरियार जी के आरोप निराधार हैं। यहां स्पष्ट वर्णन है कि ‘तीनों रानियों ने महाराज दशरथ द्वारा पृथक-पृथक गर्भों को धारण किया’। इससे साफ सिद्ध है कि श्रीराम,लक्ष्मण, भरत,शत्रुघ्न- चारों पुत्र महाराज दशरथ के औरस पुत्र थे।
*पुत्रेष्टि यज्ञ क्या होता है*- पुत्रेष्टि यज्ञ में समिधाओं द्वारा हवन करके एक विशेष खीर का निर्माण किया जाता है।यह खीर आयुर्वेदिक औषधियों से युक्त होती है।इससे गर्भ संबंधी विकार दूर होते हैं तथा स्त्री गर्भधारण के योग्य बनती है। महाराज दशरथ ने भी औषधी युक्त पायस (खीर) खिलाकर रानियों से वीर्यदान किया तथा पुत्रों को उत्पन्न किया।
हमने पेरियार साहब के आरोपोंका युक्तियुक्त सप्रमाण खंडन कर दिया है । अगले लेख में हम *ललई सिंह यादव के दिये साक्ष्यों की परीक्षा तथा रामायण की अंतःसाक्षी द्वारा अपने पक्ष को सत्य सिद्ध करेंगे।*
पूरा लेख पढ़ने के लिये धन्यवाद ।
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्रकी जय।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य  टीम  या पंडित लेखराम वैदिक मिशन  उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |

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