टिप्पणी- महामहोपाध्याय श्री पं. आर्यमुनि जी ने यह अष्टक महर्षि का गुणगान करते हुए अपने ग्रन्थ आर्य-मन्तव्य प्रकाश में दिया था। कभी यह रचना अत्यन्त लोकप्रिय थी। ११वीं व १२वीं पंक्ति ऋषि के चित्रों के नीचे छपा करती थी। पूज्य आर्यमुनि जी ने ऋषि जीवन का पहला भाग पद्य में प्रकाशित करवा दिया था, इसे पूरा न कर सके। यह ऐतिहासिक रचना परोपकारी द्वारा आर्य मात्र को भेंट है। – राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’
वेदाभ्यासपरायणो मुनिवरो वेदैकमार्गे रत:।
नाम्ना यस्य दया विभाति निखिला तत्रैव यो मोदते।
येनाम्नायपयोनिधेर्मथनत: सत्यं परं दर्शितम्।
लब्धं तत्पद-पद्म-युग्ममनघं पुण्यैरनन्तैर्मया।।
भाषाछन्द-सवैया
१. उत्तम पुरुष भये जग जो, वह धर्म के हेतु धरें जग देहा।
धन धाम सभी कुर्बान करें, प्रमदा सुत मीतरु कांचन गेहा।
सनमारग से पग नाहिं टरे, उनकी गति है भव भीतर एहा।
एक रहे दृढ़ता जग में सब, साज समाज यह होवत खेहा।।
२. इनके अवतार भये सगरे, जगदीश नहीं जन्मा जग माहीं।
सुखराशि अनाशी सदाशिव जो, वह मानव रूप धरे कभी नाहीं।
मायिक होय यही जन्मे, यह अज्ञ अलीक कहें भव माहीं।
मत एक यही सब वेदन का, वह भाषा रहे निज बैनन माहीं।।
३. धन्य भई उनकी जननी, जिन भारत आरत के दु:ख टारे।
रविज्ञान प्रकाश किया जग में, तब अंध निशा के मिटे सब तारे।
दिन रात जगाय रहे हमको, दु:खनाशकरूप पिता जो हमारे।
शोक यही हमको अब है, जब नींद खुली तब आप पधारे।।
४. वैदिक भाष्य किया जिनने, जिनने सब भेदिक भेद मिटाए।
वेदध्वजा कर में करके, जिनने सब वैर विरोध नसाए।
वैदिक-धर्म प्रसिद्ध किया, मतवाद जिते सब दूर हटाए।
डूबत हिन्द जहाज रहा अब, जासु कृपा कर पार कराए।।
५. जाप दिया जगदीश जिन्हें इक, और सभी जप धूर मिलाए।
धूरत धर्म धरातल पै जिनने, सब ज्ञान की आग जलाए।
ज्ञान प्रदीप प्रकाश किया उन, गप्प महातम मार उड़ाए।
डूबत हिन्द जहाज रहा अब, जासु कृपा कर पार कराए।।
६. सो शुभ स्वामी दयानन्द जी, जिनने यह आर्यधर्म प्रचारा।
भारत खण्ड के भेदन का जिन, पाठ किया सब तत्त्व विचारा।
वैदिक पंथ पै पाँव धरा उन, तीक्ष्ण धर्म असी की जो धारा।
ऐसे ऋषिवर की सज्जनो, कर जोड़ दोऊ अब वंद हमारा।।
७. व्रत वेद धरा प्रथमे जिसने, पुन भारत धर्म का कीन सुधारा।
धन धाम तजे जिसने सगरे, और तजे जिसने जग में सुतदारा।
दु:ख आप सहे सिर पै उसने, पर भारत आरत का दु:ख टारा।
ऐसे ऋषिवर को सज्जनो, कर जोड़ दोऊ अब वंद हमारा।।
८. वेद उद्धार किया जिनने, और गप्प महातम मार बिदारा।
आप मरे न टरे सत पन्थ से, दीनन का जिन दु:ख निवारा।
उन आन उद्धार किया हमरा, जो गिरें अब भी तो नहीं कोई चारा।
ऐसे ऋषिवर को सज्जनो, कर जोड़ दोऊ अब वंद हमारा।।