रमज़ान के दौरान मैथुन की अनुमति
उपवास की कठोरता को पैगम्बर इस घोषणा द्वारा बहुत-कुछ सौम्य बना देते हैं कि ”भूल से खा-पी लेने पर उपवास नहीं टूटता“ (2475)। चुम्बन और आलिंगन की भी अनुमति है (2436-2450)। मुहम्मद की बीवियां-आयशा, हफ्सा और सलमा, सभी बतलाती हैं कि पैगम्बर उपवास के दौरान उन्हें चूमते थे और आलिंगन में बांध लेते थे। आयशा बतलाती हैं-”रोजे के दौरान अल्लाह की रसूल ने अपनी बीवियों में से एक को चूम लिया और तब वे (आयशा) मुस्कुरा उठी“ (2436)।
अनुवादक व्याख्या करते हैं-”मानवजाति पर अल्लाह की यह बहुत बड़ी मेहरबानी है कि उसने अपने पैगम्बर मुहम्मद के जरिए हमारे जीवन के हर क्षेत्र में हमारा पथ-प्रदर्शन किया। इस्लाम से पहले लोग उपवास की अवधि में अपनी बीवियों से पूरी तरह परहेज़ करते थे। इस्लाम ने इस रीति का अनुमोदन नहीं किया“ (टि0 1502)।
उपवास वाली रात में मैथुन की भी अनुमति है। उसको दैवी स्वीकृति दी गई है। कुरान का कहना है-”रोजों की रातों में तुम्हारे लिए अपनी औरतों के पास जाना जायज़ कर दिया गया है“ (2/187)। यहां तक कि यदि कोई वीर्य-स्राव की दशा में सोकर उठता है और वह, विधिविहित स्नान कर पाए, इसके पहले ही सूर्योदय हो जाता है, तब भी उसे उपवास जारी रखना चाहिए। जनवह की दशा में भी (जिसमें व्यक्ति ”अस्वच्छ“ होता है और कोई मज़हबी काम नहीं कर सकता अथवा मज़हबी सभाओं में नहीं जा सकता) रोज़ा टूटता नहीं।
मुहम्मद की बीवियां, आयशा और सलमा बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल रमज़ान के महीने में कई बार मैथुन, के उपरान्त, जुनुब की दशा में सुबह उठते थे और रोज़ा रखते थे“ (2454)। इसी विषय पर अन्य अहादीस भी हैं (2451-2456)।
रमज़ान के महीने में दिन में मैथुन किया जाए तो उसके प्रायश्चित का विधान है-या तो एक गुलाम को आजाद कर देना, या ऐसा न हो जाए तो दो महीने रोज़ा रखना, या वह भी न हो जाए तो साठ गरीब लोगों को खाना खिला देना। पर पैगम्बर की जिन्दगी में ही इस निषेध का उल्लंघन करने वाले एक गरीब का प्रायश्चित मुफ्त में हो गया। मुहम्मद ने उसे खजूर की एक डलिया दी और कहा-”जाओ और इसे अपने घर वालों को खिलाओ“ (2457)।
जो रोज़े छूट जायें, वे बाद में साल के भीतर कभी भी पूरे किए जा सकते हैं। औरतें माहवारी के दिनों में रोज़े नहीं रखतीं, पर अगले साल का रमज़ान आने के पहले (शावान के महीने में) कभी भी वे उतने दिन के उपवास पूरा कर लें।
author : ram swarup