राजा गर्भस्थ माता के सामान प्रजा का पालन करे
डा. अशोक आर्य
राजा अपनी प्रजा का पिटा के समान पालन करता है इस लिए पिटा कहा गया हैकिन्तु राजा अपनी प्रजा का पालन माता के सामान भी करता है | वह बाल्याकालसे ही माता के सां प्रत्येक कदम पर अपनी प्रजा के प्रत्येक अंग रूप नागरिक को अपनी अंगुली पकड़ने के लिए देता है तथा पग पग पर उसका मार्ग दर्शन करता है | यहाँ तक कि जिस प्रकार माता अपनि संतान को नोऊ महीने तक अपने गर्भमें रखती है | उस प्रकार ही प्रजा के लिए राजा माता के सामान होता है तथा यह सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र उसके गर्भके समान्ही होता है , जिसमें रहते हुए उसकी प्रजा ठीक उस प्रकार विकास कराती है जिस प्रकार माता के गर्भ में उसकी संतान विकास को प्राप्त होती है | इस सम्बन्ध में वेद का मन्त्र इस प्रकार उपदेश कर रहा है :-
विश्वस्य केतुर्भुवनस्य गर्भSआ रोदसीSअपृणाज्जायमान: |
विडू चिदद्रिमभिनत् परायञ्जाना यदग्निमयजंत || यजु.१२.२३ ,ऋग्. १०.८५.६ ||
मन्त्र इस सम्बन्ध में उपदेश करते हुए कह रहा है कि हमारे इस जगत् रूपी ब्रह्माण्ड में सूर्य अपने आकर्षण का केंद्र होता है | इस कारण ही वह सब का धारक होता है अर्थात् सब लोग उसे धारण करते हैं | सब लोग सूर्य को क्यों धारण करते हैं ? इस का कारण है कि सूर्य प्रकाश का स्रोत होता है | जिस प्रकाश में हमारी आंख देखने की शक्ति प्राप्त करती है , वह प्रकाश हमें सूर्य से ही मिलता है | यदि सूर्य न हो तो हमारी आँख चाहे
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कितनी भी सुन्दर हो , साफ़ हो, उसमें देखने की शक्ति हो किन्तु सूर्य के प्रकास्श के बिना यह आँख देख ही नहीं पाती | मानो उसमें देखने की शक्ति ही न हो | सूर्य के प्रकाश के बिना आँख कुछ भी तो नहीं देख सकती | इसलिए ही मन्त्र कह रहा है कि सूर्य अपने प्रकाश से सब के लिए धारक है |
मन्त्र कहता है कि प्रजा में से जिस व्यक्ति में सूर्य के सामान गुण हों , उसेही राजा के पद पर आसीन करना चाहिए | अर्थात् जो व्यक्ति सूर्य के सामान तेजस्वी हो | ब्रह्मचारी से जिसने अपने शरीर को खूब तपा लिया हो | उस के मुख से,उसके आभा मंडल से एक विशेष प्रकार की आभा , एक विशेष प्रकार का तेज टपक रहा हो | एक एसा तेज टपक रहा हो , जिस के पास आने से सब प्रकार के दुरित इस प्रकार सूर भाग जावें जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश में आने से सब प्रकार के रोगों के कीटाणु जला कर भस्म हो जाते हैं | इस प्रकार के व्यक्ति को ही अपना राजा चुनना चाहिए |
मन्त्र आगे कहता है कि राजा पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का सेवन करते हुए सब प्रकार की विद्याओं को पा गया हो अर्थात् वह सब प्रकार की विद्याओं का ज्ञाता हो | कोई एसी विद्या न हो जिसका उसे ज्ञान न हो | उसने इतने विशाल राज्य की प्रजा का पालन करना होता है और प्रजा भी वह जो अलग अलग विषयों को जानती हो , अलग अलग कार्य करती हो तथा राजा से यह आशा करती हो कि राजा उसके क्षेत्र को उन्नत करने , विकसित करने का कार्य करे ताकि उसका व्यवसाय आगे बढ़ सके | यदि राजा किसी एक विद्या को नहीं जानता होगा तो वह उस एक विद्या को उन्नत करने का कार्य कैसे कर सकेगा ? इसलिए मन्त्र के अनुसार राजा सब विद्याओं का ज्ञाता हो तथा उन विद्याओं के प्रसार में उसकी रूचि हो |
राजा के लिए यह भी आवश्यक है कि वह राज्य का धारक हो | इसका भाव यह है कि जिस व्यक्ति को हम राज सत्ता सौंपने जा रहे हैं उस में इतनी शक्ति हो कि वह जब इस सत्ता को धारण करे तो उसका कोई विरोधी न हो ,उसे सता ग्रहण करते समय कोई ललकारने वाला न हो | वह शक्ति से संपन्न हो | यदि कोई व्यक्ति उसकी सत्ता को ललकारने का दुस्साहस करे तो उसमें इतनी शक्ति होनी चाहिए , इतना साहस होना चाहिए की वह इस प्रकार के व्यक्ति कुचल कर रख दे | सब प्रकार के शत्रुओं का नाश करने की
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उसके पास शक्ति का होना आवश्यक होता है | इसा प्रकार की शक्ति के बिना उसका शासक रह पाना संभव हिनहिन होता |
इस शक्ति से ही राजा सब प्रकार के सोखों का उत्पादक तथा सब प्रकार के सुखों की वर्षा कर सकता है | यदि शत्रु को देख कर राजा चूहे के सामान अपने बिल में घुस जावे तो शत्रु का सामना , शत्रु का मुकाबला कौन करेगा | राजा के अभाव में प्रजा छिन्न भिन्न हो जावेगी तथा शत्रु इस राज्य पर अपना अधिपत्य जमा लेगा | जब राज्य पर शत्रु आसीन हो जावेगा तो प्रजा सुखों के लिए तरसने लगेगी | सुख उसके लिए दिया स्वपन बन जावेंगे | जिस प्रकार मुगलों तथा अंग्रेज के राज्य के समय भारत की जनता दू:खों से भर गयी थी उस प्रकार की अवस्था आ जावेगी | इसलिए राजा के पास इतनी शक्ति होना आवश्यक है कि जिस से वह अपनी प्रजा के सुखों को बढ़ा कर उसे प्रसन्न रख सके |
इस सब के प्रकाश में मन्त्र कहता है कि माता अपने गर्भस्थ शिशु का पालन करने के लिए बड़ी सावधानी से चलती है , बड़ी सावधानी से बोलती है तथा बड़ी सावधानी से अपने जीवन का सब व्यापार करती है ताकि उसके गर्भ में पल रहे बालक को किसी प्रकार का कष्ट न हो तथा समय आने पर पूर्ण स्वास्थ्य के साथ इस संसार को देखे , इस संसार में जन्म ले | ठीक इस प्रकार ही राजा की प्रत्येक क्रिया प्रजा के सुख के लिए होती है | वह अपना प्रत्येक कार्य आराम्भ करने से पूर्व ही सोच लेता है कि उसके इस कार्य से प्रजा के किसी अंग को कष्ट तो नहीं होगा | किसी का अहित तो नहीं होगा | इसलिए प्रजापालक राजा का विद्वान्, गुणों से सपन्न होना आवश्यक होता है ताकि वह अपनी प्रजा के हितों के अनुसार कार्य करे तथा मातृवत ही गर्भस्थ शिशु के समान अपनी प्रजा का रक्षक हो |
मन्त्र स्पष्ट संकेत करता है कि अपने राजा का चुनाव करते समय प्रजा यह अवश्य देख परख ले कि जिस व्यक्ति को वह अपना राजा चुनने जा रही है , उसमें कितनी मातृत्व शक्ति है ? वह माता के समान कितने गुणों का धारक है ? उसमें अपनी प्रजा से माता के समान स्नेह होगा या नहीं ? इस प्रकार के गुणों की परख करने के पश्चात यदि वह उसकी कसौटी पर खरा उतरता है , तब ही उसे राजा चुना जावे अन्यथा जनता को कभी सुख प्राप्त नहीं होगा |
डा. अशोक आर्य