राजा अपनी प्रजा के पिता समान हो
डा. अशोक आर्य
राजा और प्रजा दोनों ही एक दुसरे को यशस्वी, तेजस्वी बनाने वाले होते हैं | वेद का आदेश है कि राजा अपनी प्रजा का पालक होता है | प्रजा अपने राजा का चुनाव कर बनती है | अपने राजा को स्थिर बनाती है | इसलिए राजा के लिए भी बहुत से कर्तव्य हो जाते हैं | जिस प्रजा ने बड़ी श्रद्धा से, बड़े आदर से , बहुत सा सम्मान देते हुए उसे सिंहासनारूढ़ किया है , उस प्रजा के लिए राजा ने भी कुछ कर्तव्यों का पालन करना होता है | इन कर्तव्यों में मुख्य रूपा से प्रजा के भरण पोषण की व्यवस्था, मकान कपडे की आवश्यकता की पूर्ति , प्रजा की शिक्षा की व्यवस्था, प्रजा की सुरक्षा की व्यास्था आदि अनेक कार्य होते हैं , जो राजा को अपनी प्रजाके लिए करने होते हैं | इन सब क्लार्ताव्यों को जब राजा पूर्ण करने का यत्न करता है तो उसे हम प्रजा के पिता स्वरूप जानते हैं | इसलिए वेद ने राजा को पिता के सामान ही स्वीकार करते हुए कहा है कि : –
त्वामग्ने प्रथाममायुमायवे देवा अकृण्वन्नहुषम्य विश्वपतिम् |
इळ मकृण्वन्मनुषस्य शासनीं पितुर्यत्पुत्रो ममकस्य जयति || ऋग्वेद १.३१. ||
राजा की नियुक्ति प्रजा के चुनाव से होती है | हम किसी भी सभा के सभापति को भी राजा कह सकते हैं और शासन के मुखिया को बी कह सकते हैं | यह ही वेद की भावना होती है | वेद जब राजा के कर्तव्यों की व्याक्ल्ह्या कर रहा है तो इसके अन्दर इन सब को समाविष्ट किया जाता है | अत: राजा के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए मन्त्र कह रहा है कि हे विज्ञान युक्त सभाध्यक्ष ! अर्थात् ससब प्रकार की शिक्षाओं का संचालक इन्हें मानने वाला तथा इन शिक्षाओं का विस्तारक होने के कारण मन्त्र राजा को विग्यन्युक्त सभाध्यक्ष कहते हुए उपदेश करता है कि :-
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हे सब प्रकार की विज्ञानों को उन्नत करने वाले विज्ञान से युक्त हमारी सभा के सभाद्यक्ष अर्थात् राजन् ! आप विद्वानों में सस्बा से अग्रणी हो , सबके अग्रगंता हो | आप अपने उत्तम न्याय से , अपनी न्यायशीलता से दोषियों को दण्डित करने वाले होने से इस प्रजा के आप ही नियंत्रण करने वाले हो | हम सब प्रजा ने मिलकर आप को अपना स्वामी बनाया है | यह सब इसलिए किया गया है कि आप हम सब की उन्नति के साधन हमें उपलब्ध करावें |
इतना ही नहीं मनुष्य मात्र की विज्ञान सम्बन्धी उन्नति के लिए , प्रजा की प्रगति के लिए आप ने वेदवाणी के स्वाध्याय की व्यवस्था की है , अनेक प्रकार के गुरुकुल, विद्यालय तथा महा विद्यालय आराम्भ्किये हैं , जीना में जा कर यह प्रजा वेदवाणी का स्वाध्याय कर सके अपने सब प्रकार की विज्ञान सम्बन्धी क्षुधा को दूर कर सके | इस प्रकार यह प्रजा भी आप ही के सामान ससब प्रकार के ज्ञानों को प्राप्त कर उन्नति की और अग्रसर हो सके |
वेदवाणी सब सत्यों को आगे बढाने वाली होती है | वेदवाणी का प्रकाशन अर्थात् मानव मात्र केकल्याण के लिए परमपिता परमात्मा ने व्दवानी का प्रकाश किया | इसा ज्ञान को सामान्य मानव तक पहुंचाया ताकि वह इस सत्य ज्ञान को पाकर अपना तथा जन जन का कल्याण करने में समर्थ हो सके | हे राजन् प्रभु के इस ज्ञान का न केवल तूं ही स्वाध्याय कर अपितु अपनी प्रजा में भी इस सत्य ज्ञान को बांटने की व्यवस्था कर इससे तेरा तो कल्याण होगा ही तेरे साथ तेरी प्रजा का भी यश फैलेगा | प्रजा तेरे लिए अपने ह्रदय में आदर पूर्ण स्थान देगी , जो तेरी शक्ति बनेगा | यह ही मानव की सत्य निति है | सका प्रकाशन भी पिटा ने ही किया है | इसा सत्य निति को अपना |
जिस प्रकार मानव अपनी संतान का पिता होता है | अह अपनी संतान का पालन पौशन करता है | अपनी संतान के लिए वह खाने पिने की व्यवास्था अर्थात् उसके भरण – पौषण की व्यवस्था करता है | वह उसके वस्त्राभूषण की भी व्यवशा करता है , उसे निवास के लिए एक भवन भी बनाता है , उसकी उत्तम शिक्षा के साधन भी उसे देता है | सदा उससे से प्यार , उससे स्नेह बनाए रखता है |
ठीक इस प्रकार ही राजा भी प्रजा का पिता होता है | जिस प्रकार से एक परिवार का पिता अपनी संतान के पालन पौषण तथा उन्नति की सब व्यवस्था काटा है , उस प्रकार
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भी राजा भी अपनी प्रजा की सब सत्य आवश्यकताएं पूर्ण करने में सदा लगा रहता है | वह अपनी प्रजा के खाने पीने की , उसके पहनने , खेलने , व्यायाम करने के स्थान , निवास करने के लिए मकान , भरण पौषण , वेद स्वाध्याय या उतम शिक्षा आदि के अतिरिक्त शत्रुओं से भी रक्षा का कार्य करता है |
जब राजा अपनी प्रजा की ससब प्रकार की आवह्याकताओं को पूर्ण करते हुए अपने राज्य में अनेक प्रकार के उद्योग लगाता है , गुरुकुल, विद्यालय व महाविद्यालयों की व्यवस्था करता है , उन्नत खेती तथा गाय आदि की व्यवस्था करता है और कभी किसी वास्तु का उस के देश में अभाव हो जावे तो उस वास्तु को विदेश से मंगवा कर भी इस अभाव को पूर्ण करने का कार्य करता है | जब राजा इस प्रकार के कार्य करता हो जो एक परिवार में एक पिता किया करता है तो स्पष्ट है कि जिस प्रकार एक परिवार का मुखिया पिटा होता है तो एक देश , एक राष्ट्र भी तो एक परिवार ही तो है | इस राष्ट्र रूपी परिवार का मुखिया होने के कारण राजा भी अपनी प्रजा का पिता ही तो हुआ | अत: स्पष्ट है कि राजा अपनी प्रजा का पिता होता है | वह अपनी प्रजा का पालन पानी ही संतान के सामान करता है | इस प्रकार भी प्रजा भी उसे अपने ही पिटा के समान आदर देती है |
डा. अशोक आर्य